________________
पडिसिद्ध - पडिस्सुय
डिसिद्ध व [दे] १भीत, डरा हुआ। २ भग्न, त्रुटित (दे ६, ७१ ) । पडिसिद्ध वि [प्रतिषिद्ध] निषिद्ध, निवारित ( पाय उक, श्रोध १ टी सण ) । डिसिद्धि स्त्री [] प्रतिस्पर्धा (षड् ) । पडिसिद्धि स्त्रो [प्रतिसिद्धि] १ अनुरूप सिद्धि । २ प्रतिकूल सिद्धि ( हे १, ४४; षड् ) । पडिसिद्धि देखो पडिएफद्धि ( संक्षि १६) । पडिसिलोग पुं [प्रतिश्लोक ] श्लोक के उत्तर में कहा गया श्लोक ( सम्मत्त १४६ ) । सिविण पुं [प्रतिस्वप्नक ] एक स्वप्न का विरोधी स्वप्न स्वप्न का प्रतिकूल स्वप्न (कप्प) ।
(पू) २ [प्रतिशीर्षक] १ शिरोसिर के प्रतिरूप सिर, पिसान (आटा) आदि का बनाया हुआ सिर ( परह १, २ -- पत्र ३० ) । ss [प्रतिश्रुति] १ ऐरवत वर्ष के एक भावी कुलकर (सम १५३) । २ भरतक्षेत्र में उत्पन्न एक कुलकर पुरुष का नाम (पउम ३, ५० ) ।
डीस}
पडिसीसक
1 वकृ.
पडिमुण सक [ प्रति + श्रु] १ प्रतिज्ञा करना । २ स्वीकार करना । पडिसुरगड, पsिes ( श्रप कपः उवा) पडिसुणमाग ( जव १ पि ५०३ ) । संकु. पडिणित्ता, पडिसुणेत्ता ( मात्र ४ कप ) । कृ. पडिसुणेत्तए (पि ५७८ ) । पडिसुणण न [ प्रतिश्रवण ] अंगीकार (उप ४९३) । पडिसुणण स्त्री न [प्रतिश्रवण ] १ सुनाना, सुनकर उसका जवाब देना, प्रत्युत्तर (पव २) । स्त्री. ॰णा (पत्र २) । २ श्रवरण (पंचा १२,
१५) ।
पडिसुणणा स्त्री [प्रतिश्रवण] १ अंगीकार, स्वीकार । २ मुनि भिक्षा का एक दोष, श्राधाकर्म-दोषवाली भिक्षा लाने पर उसका स्वीकार और अनुमोदन ( धर्मं ३ ) । पडिसुण्ण वि [ प्रतिशून्य ] खाली, रिक्त, शून्यः 'नय निलया निश्चपडिपुराणा' (ठा १ टी-पत्र २९ ) । पडित्ति व [दे] प्रतिकूल (दे ६, १८ ) ।
Jain Education International
पाइअसहमणवो
पडिसुद्ध वि [परिशुद्ध ] अत्यन्त शुद्ध (चेश्य ८०७) ।
पडिसुय वि [प्रतिश्रुत] १ स्वीकृत, अंगीकृत (उप पृ १८४) । २ न. अंगीकार, स्वीकार ( उत्त २५ ) | देखो डिस्सुय । पडिसुया देखो पडंसुआ = प्रतिश्रुत् (पह १, १ -पत्र १८ ) । पडिया a [ प्रतिता] प्रवज्या - विशेष १० टी -पत्र
४७४) । पडसुहड पुं [ प्रतिसुभट ] प्रतिपक्षी योद्धा (काल) ।
पडिसूयग [प्रतिसूचक ] गुप्तचरों की एक श्रेणी, नगर-द्वार पर रहनेवाला जासूस ( वव १ ) ।
पडिसूर वि [ दे] प्रतिकूल (दे ६, १६, भवि । पडिसूर पुं [प्रतिसूर्य ] सूर्य के सामने देखा जाता उत्पातादि-सूचक द्वितीय सूर्य (अर १२०)।
|
पडिसूर पुं [ प्रतिसूर्य ] इन्द्र-धनुष (राज) । पडिसेज्जा स्त्री [प्रतिशय्या ] शय्या-विशेष, उत्तर- शय्या (भग १, ११ पि १०१ ) । पडिसेग पुं [प्रतिपेक] नख के नीचे का भाग ( राय ε४) ।
पडिसेवक [प्रति + से ] १ प्रतिकूल सेवा करना निषिद्ध वस्तु की सेवा करना । २ सहन करना । ३ सेवा करना । पडिसेवइ, परिसेवए, पडिलेवंति (कस, वव ३, उत्र ) । a. पडिसेवंत, पडिसेवमाण (पंचू ५ सम ३६; पि १७ ); 'पडिसेवमारणो फरसाईं अचले भगवं रीइत्या' (प्राचा) । कृ. पडिसेवियव्य ( वव १) । पडि सेवग देखो पडि सेवय (निचू १) । पडिसेवण न [प्रतिषेत्रण] निषिद्ध वस्तु का सेवन ( कस) ।
पडिसेवणा स्त्री [प्रतिपेवणा] ऊपर देखो (भग २५, ७; उव; प्रोघ २ ) । पडिसेवय वि [प्रतिपेवक] प्रतिकूल सेवा
करनेवाला, निषिद्ध वस्तु का सेवन करनेवाला (भग २५, ७) । पडि सेवा स्त्री [प्रतिषेवा] १ निषिद्ध वस्तु का सेवन (उप ८०१ ) । २ सेवा ( कुप्र ५२) ।
For Personal & Private Use Only
५२७
पडिसेवि वि [ प्रतिषेविन् ] शास्त्र - प्रतिषिद्ध वस्तु का सेवन करनेवाला ( उवः पउम ५; २८) ।
पडिसेविअ वि [प्रतिषेवित] जिस निषिद्ध वस्तु का श्रासेवन किया गया हो वह (कप्प श्रौप ) ।
पडि सेवेतु वि [प्रतिषेवितृ] प्रतिषिद्ध वस्तु की सेवा करनेवाला (ठा ७) । पडिसेह सक [प्रति + सिध्] निषेध करना, निवारण करना । कृ. पडि सेहेअव्व (भग) | पडिसेह पुं [प्रतिषेध ] निषेध, निवारण, रोक (ओघ भा पंचा ६) । पडिसेहग वि [प्रतिषेधक ] निषेध-कर्ता ( धर्मंसं ४०; ९१२ ) ।
डिसेण न [प्रतिषेधन ] ऊपर देखो (वि २७५१; श्रा २७ ) 1
पडिसेहिय वि [ प्रतिषेधित ] जिसका प्रतिषेध किया गया हो वह, निवारित ( विपा १, ३) ।
पडसे हे अब देखो पडिसेह् = प्रति + सिध् । पडिसोअ ] पुं [प्रतिस्रोतस ] प्रतिकू पडिसोत्त प्रवाह उलटा प्रवाह (ठा ४, ४ हे, २, ६८ उप २५२ प ६१) । डिसोत्त [ ] प्रतिकूल (षड् ) । पडिरसंत देखो परिस्संत (नाट — मृच्छ १८८) ।
पडिस्संति स्त्री [परिश्रान्ति ] परिश्रम (नाट - मृच्छ ३२१) ।
पडिस्सय पुं [प्रतिश्रय ] जैन साधुयों को रहने का स्थान, उपाश्रय ( श्रोध ८७ भा; उप ५७१ स ६८७ ) 1 परिसर देखो पडिसर (पंचा ८, ४९ ) । डिस्साव सक [प्रति + श्रावय् ]१ प्रतिज्ञा कराना । २ स्वीकार कराना। वकृ. पडिरसाव अन्त (नाद - वेणी १८ ) |
पडिस्सावि वि [ प्रतिस्राविन् ] भरनेवाला,
टपकनेवाला (राज) ।
पडिस्गुण सक [प्रति + श्रु ] १ सुनना । २ अंगीकार करना । पडिस्सुरांति ( सू २, ६, ३०) । पडिस्सुणेज्जा (सूम १, १४, ९ ) । पडिस्सुणे (उत्त १, २१) । पडिस्सुय वि [ प्रतिश्रुत] १ प्रतिज्ञात । २ स्वीकृत (महा; ठा १० ) । देखो पडिसुय ।
www.jainelibrary.org