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पडिवाइ-पडिसंधया पाइअसद्दमहण्णवो
५२५ पडिवाइ वि [प्रतिवादिन प्रतिवाद करने- पडिवायण न [प्रतिपादन] निरूपण (कप्र पडिविसज्जिय वि [प्रतिविसर्जित] बिदा वाला, वादी का विपक्षी (भवि ५१, ३)। ११६)।
किया हुआ, विसर्जित (गाया १,१-पत्र पडिवाइ वि [प्रतिपादिन] प्रतिपादन करने- पडिवारय देखो परिवार; “पडिवारयपरि- ३.)। वाला (भवि ५१, ३)। यरियों (महा)।
पडिविहाण न [प्रतिविधान] प्रतीकार (स पडियाइ वि [प्रतिपातिन] १ विनश्वर, नष्ट पडिवाल सक [प्रति + पालय ] १ प्रतीक्षा
५६७)। होने के स्वभाववाला (ठा २, १ ओघ करना, बाट जोहना। २ रक्षण करना। पडिवज्झमाण देखो पडिबह:प्रति + वह.। ५३२: अ पृ ३५८)। २ अवधिज्ञान का पडिवालेइ (हे ४, २५६)। पडिवालेदु (शौ), पडिवत्त वि [प्रत्युक्त] १ जिसका उत्तर एक भेद, फूंक से दीपक के प्रकाश के समान (स्वप्न १००)। पडिवालह (अभि १८५)। दिया गया हो वह (अन ३; उप ७२८ टी)। एकाएक नष्ट होनेवाला प्रवधिज्ञान (ठा ६
ठा ६ वकृ. पांडवालअंत, पडिवालेमाण (नाट- वकृ. पाडवालअत, पाडवालमाण (नाट- २ न. प्रत्युत्तर (उप ७२८ टी)।
न कम्म १, ८)। रत्ना ४८ पाया १, ३)।
पडिवुद (शौ) वि [परिवृत्त] परिकरित पडिवाइअ वि [प्रतिपातित] १ फिर से पडिवालण न [प्रतिपालन] १ रक्षण । २
(अभि ५७ नाट-मृच्छ २०५)। गिराया हुआ । २ नष्ट किया हुआ (भवि)। प्रतीक्षा, बाट (नाट–महा ११८; उप
पडिवृह पुं [प्रतिव्यूह] व्यूह का प्रतिपक्षी पडिवाइअ वि [प्रतिपादित] जिमका प्रति- ६६६)।
व्यूह, सैन्य-रचना-विशेष (प्रौप)। पादन किया हो वह, निरूपित (अच्चु ५; पडिवालिअ वि [प्रतिपालित] १ रक्षित ।
२ प्रतीक्षित, जिसकी बाट देखी गई हो वह स ४६, ५४३)।
पडिबूण वि [प्रतिबृहण] १ बढ़नेवाला
। (प्राचा १, २, ५, ५)। २ न. वृद्धि, पुष्टि पडिवाइअ वि [प्रतिवाचित ] १ लिखने के (महा)।
(प्राचा १, २, ५, ४)। बाद पढ़ा हुमा । २ फिर से बाँचा हुआ पाडवास पुं[प्रतिवास] औषध बादि को (कुप्र १६७)।
विशेष उत्कट बनानेवाला चूर्ण आदि (उर पडिवेस पुं[दे] विक्षेप, फेंकना (दे ६, २१)। पाडवाइऊण । देखो पडिवाय =प्रति + ८,५; सुपा ६७)।
पडिवेसिअ वि [प्रातिवेश्मिक] पड़ोसी, पडिवाइयव्व वाचय ।
पडिवासर न [प्रतिवासर] प्रतिदिन, हर पड़ोस में रहनेवाला (दे ६, ३, सुपा ५५२) । पडिवाइय देखो पडिवाइ = प्रतिपातिन (णंदि रोज (गउड)।
पडिवोह देखो पडिवोह (सरण)। ८१)।
पडिवासुदेव [प्रतिवासुदेव] वासुदेव का पडिसंका स्त्री [प्रतिशङ्का ] भय, शंका पडिवाडि देखो परिवाडि (गा ५३०)। प्रतिपक्षी राजा (पउम २०, २०२)।
(पउम ६७, १५)। पडियाद (शौ) सक [प्रति + पादय] पडिविक्किण सक [प्रतिवि + क्री] बेचना।
पडिसंखा सक [प्रतिसं + ख्या] व्यवहार प्रतिपादन करना. निरूपण करना । पडिवादेदि पडिविक्किरणइ (पाक ३३; पि ५११) ।
करना, व्यपदेश करना । पडिसंखाए (प्राचा)। (नाट-रत्ना ५७)। कृ. पडिवादणिज पडिविज्जा स्त्री [प्रतिविद्या] प्रतिपक्षी विद्या, (अभि ११७)।
पडिसंखिव सक [ प्रतिसं + क्षिप] संक्षेप विरोधी विद्या (पिंड ४६७) । पडिवादय वि [प्रतिपादक] प्रतिपादन
करना । संकृ. पडिसंखिविय (भग १४,७)। पडिवित्थर प्रतिविस्तर] परिकर, विस्तार करनेवाला । स्त्री.दिआ (नाट-चैत ३४)।
पडिसंखेव सक [प्रतिसं + क्षेपय] (सूत्र २, २, ६२ टी; राज)। पडिवाय सक[ प्रति + वाचय ] १ लिखने
तिमि विनाश.
सकेलना, समेटना। वकृ, पडिसंखेवेमाण के बाद उसे पढ़ लेना । २ फिर से पढ़ लेना।
(राय ४२)। ध्वंस (राज)। संकृ. पडिवाइऊण (कुप्र १६७)। कृ. पडिविप्पियन [प्रतिविप्रिय अपकार का ।
| पडिसंचिक्ख सक [प्रतिसम् + ईक्ष ] पडिवाइयव्य (कुप्र १६७) । बदला, बदले के रूप में किया जाता अनिष्ट
चिन्तन करना । पडिसंचिक्खे (उत्त २, ३१)। पडिवाय सक[प्रति + पादय] प्रतिपादन (महा)।
पडिसंजल सक [प्रतिसं + ज्वालय ] करना, निरूपण करना। पडिवाययंति (सूम पडिविरइ स्त्री [प्रतिविरति] निवृत्ति (पएह उद्दीपित करना । पाडसजलज्जास (माचा)। १,१४,२६)।
पडिसंत वि [परिशान्त] शान्त, उपशान्त पडिवाय पुं[प्रतिपात १ पुनः-पतन, फिर पडिविरय वि [प्रतिविरत] निवृत्त (सम (से ६, ६१)। से गिरना (नव ३६)। २ नाश, ध्वंस ५१ सन २.२.७५. प्रौपः उव)।
पडिसंत वि[प्रतिश्रान्त विश्रान्त (बृह १)। (विसे ५७७)।
पडिविसज्ज सक [प्रतिवि + सर्जय] पडिसंत वि [दे] १ प्रतिकूल । २ अस्तमित, पडिवाय पुं [प्रतिवाद] विरोध (भवि)। विसर्जन करना, बिदा करना । पडिविसज्जेइ अस्त-प्राप्त (दे ६, १६)। पडिवाय पुं [प्रतिवात] प्रतिकूल पवन ( कप्पः प्रौप) । भवि. पडिविसज्जेहिति पडिसंध सकप्रतिसं+धा] १ फिर (भावम)। (प्रौप)।
पडिसंधया । से साधना। २ उत्तर देना।
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