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पडियाइक्ख-पडिलेहि
पाइअसद्दमहण्णवो कत्तो पुराणेहि विणा,
रुंभइ (से ८, ३६)। वकु. पडिरुंधंत (से पडिलग्गल न [दे] वल्मीक, कीट-विशेष-कृत वेसा पडियव्व संपडइ, ११, ५)।
मृत्तिका-स्तूप (दे ६, ३३)। (वजा ११६)। पडिरुद्ध वि [प्रतिरुद्ध] रोका हुमा, अटकाया पडिलभ सक [प्रति + लभा प्राप्त करना। पडियाइक्ख सक [प्रत्या + ख्या] त्याग हुआ (सुपा ८५ वजा ५०)।
पडिलभेज (उत्त १, ७)। संकृ. पडिलब्भ करना । पडियाइक्खे (पि १६६)
पडिरूअ विप्रतिरूप] १ रम्य, सुन्दर, (सूप १, १३, २)। पडियाइक्खिय वि [प्रत्याख्यात] त्यक्त, पडिरूव चारु, मनोहर (सम १३७ उवाः
पडिलाभ) सकप्रति+लाभय् .लम्भय] परित्यक्त, छोड़ा हुमाः (ठा २, १; भगः उवा
प्रौप)। २ रूपवान्, प्रशस्त रूपवाला, श्रष्ठ पडिलाह साधु प्रादि को दान देना । पडिकस विपा १, १ प्रौप)। प्राकृतिवाला (ोप)। ३ असाधारण रूपवाला।
लाहेज्जह (काल)। वकृ. पडिलामेमाण पडियाणय न [दे. पर्याणक] पर्याण के ४ नूतन रूपवाला (जीव ३)। ५ योग्य,
(णाया १, ५; भगः उवा) । संकृ. पडिलाउचित (स ८७; भग १५दस ६,१)। नीचे दिया जाता चमं प्रादि का एक उपकरण
भित्ता (भग ८,५)। ६ सदृश, समान (णाया १,१-पत्र ६१)। पडिलाहाण न [प्रतिलाभन] दान देना (णाया १,१७-पत्र २३०) ।
७ समान रूपवाला, सदृश आकारवाला (उत्त पडियाणंद [प्रत्यानन्द] विशेष आनन्द,
। (रंभा)। २६, ४२)। ८ न. प्रतिबिम्ब, प्रतिमूत्ति;
पडिलिहिअ विप्रतिलिखित] लिखा हुआ, प्रभूत पाहाद, बहुत आनंद (प्रौप)। 'कइयावि चित्तफलए कइया वि पडम्मि तस्स
‘सम्मं मंत दुवारि पडिलि हिनं' (ति १४)। पडियाणय न [दे. पटतानक, पर्याणक]
पडिरूवं लिहिऊरण' (सुर ११, २३८ राय)। पर्याण के नीचे रखा जाता वस्त्र प्रादि का
पडिलीण वि [प्रतिलीन] अत्यन्त लोन ६ समान रूप, समान प्राकृति; 'तुम्हपडिरूवएक घुड़सवारी का उपकरण (गाया १,
(धर्मवि ५३)। धारि पासइ पिज्जाहरसुदाढ' (सुपा २६८)। १७-पत्र २३२ टी)। १० पुं. इन्द्र-विशेष, भूत-निकाय का उत्तर
पडिलेह सक[प्रति + लेखय ] १ निरीक्षण पडियारणा स्त्री [प्रतिवारणा] निषेध (पंचा दिशा का इन्द्र (ठा २, ३–पत्र ८५)। ११
करना, देखना । २ विचार करना । पडिलेहेइ १७, ३४)। विनय का एक भेद (वव १)।
उव; कस; भग); "एतेसु जाणे पडिलेह सायं, पडियासूर प्रक [दे] चिड़ना, गुस्सा होना। पडिरूवंसि वि [प्रतिरूपिन् ] रमणीय,
एतेण कारण य प्रायदंडे (सूत्र १,७, २)। कृ. 'पडियासूरेयव्वं न कयाइवि पाण
संकृ. भूएहिं जाणं पडिलेह सायं' (सूत्र १, सुन्दर (प्राचा २, ४, २, १)। चाएवि' (आक २५, १४)।
७, १६); पडिलेहित्ता (भग) । हेकृ. पडि| पडिरूवग पुन [प्रतिरूपक] प्रतिबिम्ब, पडिर वि [पतित] गिरनेवाला (कुमा)।
लेहित्तए, पडिलेहेत्तए (कप्प) । कृ. पडिप्रतिमाः 'तिदिसि पडिरूवगा य देवकया' (प्राव; पडिरअ देखो पडिरव (गा ५५ प्रा से ७,
लेहियव्व (ोघ ४ कप्प)। बृह)।
पडिलेह पुं [प्रतिलेख] देखो पडिलेहा | पडिरूवणया स्त्री [प्रतिरूपणता] १ समापडिरंजिअ वि [दे] भग्न, टूटा हुआ (दे |
(चेइय, २६६)। नता, सदृशता या सादृश्य । २ समान वेष
पडिलेहग देखो पडिलेय (राज)। धारण (उत्त २६, १)। पडिरक्खिय वि [प्रतिरक्षित] जिसकी रक्षा पडिरूवा श्री [प्रतिरूपा] एक कुलकर पुरुष
पडिलेहण न [प्रतिलेखन] निरीक्षण (प्रोष की गई हो वह (भवि)। की पत्नी का नाम (सम १५०) ।
३ भाः अंत)। पडिरव [प्रतिरव] प्रतिध्वनि, प्रतिशब्द पडिरोव पुं [प्रतिरोप] पुनरारोपण (कुप्र |
पडिलेहणया देखो पडिलेहणा (उत्त २६, (गउड गा ५५, सुर १, २४४) । पडिराय पुं[प्रतिराग] लाली, रक्तपन; पडिरोह पु [प्रतिरोध] रुकावट (गउड;
पडिलेहणा स्त्री [प्रतिलेखना] निरीक्षण, 'उव्वहइ दइयगहियाहरो?झिज्जतरोसपडिरायं। गा ७२४) ।
निरूपण (भग)। पाणोसरंतमहर व फलिहचसयं इमा वयणं' पडिरोहि वि [प्रतिरोधिन् ] रोकनेवाला
| पडिलेहणी स्त्री [प्रतिलेखनी] साधु का एक
उपकरण, 'पुंजणी' (पव ६१)। (गउड)।
(गउड)। पडिरिग्गअ [दे] देखो पडिरंजिअ (षड्)। पडिलंभ सक [प्रति + लभ् ] प्राप्त करना। पडिलंभ सक [प्रति + लभ ] प्राप्त करना। पडिलेहय वि [प्रतिलेखक ] निरीक्षक,
देखनेवाला (ोघ ४)। पडिरु प्रक [प्रति+स] प्रतिध्वनि करना, संकृ. पडिलंभिय (सूम १, १३)। प्रतिशब्द करना । वकृ. पडिरुओं (से १२, पडिलंभ [प्रतिलम्भ] प्राप्ति, लाभ (सूप पडिलेहा स्त्री [प्रतिलेखा] निरीक्षण, अब
लोकन (प्रोघ ३; ठा ५, ३ कप्प)। & पि ४७३)। पतिसंध) सक प्रति + मध 12 रोकना, पडिलग्ग वि [प्रतिलग्न] लगा हुमा, सम्बद्ध पडिलेहि वि [प्रतिलेखिन् ] निरीक्षक पडिरुंभ । अटकाना । २ व्याप्त करना । पडि- I (से ६, ८६)।
(सूत्र १, ३, ३, ५)।
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