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पाइअसहमहण्णवो
पच्चोणियत्त-पच्छाअ
(प्रौप)।
पच्चोणियत्त वि प्रत्यवनिवृत्त] ऊँचा बाद की क्रिया । २ यतियों की भिक्षा का एक कडुअविवागा' (राज)। ३ पिछला भाग, उछल कर नीचे गिरा हुआ (पएह १, ३- दोष, दातृ-कर्तृक दान देने के बाद की पात्र पृष्ठ । ४ चरम, शेष (हे २,२१)। ५ पश्चिम पत्र ४५)।
को साफ करने मादि क्रिया (प्रोघ ५१९)। दिशा (णाया १, ११)। उत्त वि पञ्चोणिवय प्रक[प्रत्यवनि + पत् ] उछल त्ता पुं[ताप] अनुताप (वजा १४२)। [°आयुक्त] जिसका प्रायोजन पीछे से किया कर नीचे गिरना। वकृ. पच्चोणिवयंत द्ध न [ अर्ध] पोछला प्राधा, उत्तरार्ध गया हो वह (कप्प)। कड पुं[कृत
(गउड; महा)। वत्थुक्क न ["वास्तुक साधुपन को छोड़कर फिर गृहस्थ बना हुआ पच्चोणी [दे] देखो पच्चोवणी (स २३५; पिछला घर, घर का पिछला हिस्सा (पएह (द्र ५०; बृह १)। कम्म देखो पच्छ
३०२: सुपा ६१; २२४० २७६) । २, ४–पत्र १३१)। याव पुं[ताप] कम्म (पि ११२)। णिवाइ देखो 'निवाइ पच्चोयड न [दे] १ तट के समीप का ऊँचा |
पश्चात्ताप, अनुताप (प्रावम)। देखो पच्छा = (राज)। णुताव पुं[अनुताप] पश्चात्ताप, प्रदेश (जीव ३)। २ वि. आच्छादित (राय)। पश्चात् ।
अनुताप; 'पच्छाणुतावेण सुभज्झवसारणेण' पच्छइ (अप) अ [पश्चात् ] ऊपर देखो (प्रावम)। °णुपुव्वी स्त्री [ आनुपूर्वी ] पच्चोयर सक [प्रत्यव+तु] नीचे उतरना।
पच्छए (हे ४, ४२०; षड्; भवि) । ताव उलटा क्रम (अरण; कम्म ४, ४३)। ताव पच्चोयरइ (प्राचा २, १५, २८)। संकृ.
पुं[ताप] अनुताप, अनुशय (कुमा)। पुं[ताप] अनुताप (भाव ४)। ताविय पच्चोयरित्ता (प्राचा २, १५, २८)।
पच्छंद सक [गम् ] जाना, गमन करना । वि [तापिक] पश्चात्तापवाला (पराह २, पच्चोरुभ । सक [प्रत्यव + रुह ] नोचे पच्छंदइ (हे ४, १६२)।
३)। निवाइ वि ["निपातिन] १ पीछे पच्चोरुह उतरना । पचोरुभइ (णाया १, पच्छंदि वि [गन्तु गमन करनेवाला (कुमा)। से गिर जानेवाला। २ चारित्र ग्रहण कर १)। पच्चोरुहइ (कप्प)। संकृ. पच्चोरुहित्ता
पच्छंभाग पुं [पश्चाद्भाग] १ दिवस का बाद में उससे च्युत होनेवाला (प्राचा)। (कप्प)।
पिछला भाग (राज)। २ पुंन. नक्षत्र-विशेष, भाग पुं [ भाग] पिछला हिस्सा (णाया पच्चोवणिअ वि[दे] संमुख पाया हुआ (दे चन्द्र पृष्ठ देकर जिसका भोग करता है वह
१,१)। मुह वि [मुख] परांमुख, जिसने ६, २४)। नक्षत्र (ठा )।
मुँह पीछे की तरफ फेर लिया हो वह (श्रा पच्चोवणी स्त्री [दे] संमुख प्रागमन (दे ६, | पच्छण स्त्रीन [प्रतक्षण] त्वक् का बारीक
१२)। यव, याव देखो ताव (पउम विदारण, चाकू मादि से पतली छाल ६५, ६६; सुर १५, १४५; सुपा १२१, पचोसक्क अक [प्रत्यव + ध्वष्क्] १ नीचे निकालनाः 'तच्छणेहि य पच्छणेहि य' (विपा महा)। यावि वि [तापिन् पश्चात्ताप उतरना । २ पीछे हटना । पच्चोसक्कइ, पच्चो- १, १); 'तच्छणाहि य पच्छणाहि य' (णाया
करनेवाला (उप ७२८ टो)। वाय पुं सकंति (उवाः पि ३०२, भग)। संकृ. पच्चो
[°वात] पश्चिम दिशा का पवन। २ पीछे का सक्कित्ता (उवा; भग)। पच्छण्ण वि [प्रच्छन्न] गुप्त, अप्रकट, (गा
पवन (णाया १, ११)। संखडि स्त्री [दे. पच्छ सक [प्र + अर्थय] प्रार्थना करना ।। १८३)। पइ पुं[पति] जार, उपपति,
संस्कृति १ पिछला संस्कार । २ मरण के कवकृ. पच्छिज्जमाण (कप्प, औप)। यार (सूअ १, ४, १)।
उपलक्ष्य में ज्ञाति-कुटंबी वगैरह प्रभूत मनुष्यों
के लिए पकायी जाती रसोई (प्राचा २, १, पच्छ वि [पथ्य] १ रोगी का हितकारी पच्छद देखो पच्छय (प्रौप)।
३, २)। संथव पुं[ संस्तव] १ पिछला आहार (हे २, २१; प्रातः कुमाः स ७२४; | पच्छदण न [प्रच्छदन] पास्तरण, चादर
संबन्ध, स्त्री, पुत्री वगैरह का संबन्ध । २ जैन सुपा ५७६)। २ हितकारक, हितकारी; शय्या के ऊपर का पाच्छादन-वस्त्र; 'सुप्पच्छद
मुनियों के लिए भिक्षा का एक दोष, श्वशुर 'पच्छा वाया (गाया १,११-पत्र १७१)। पाए सय्याए णि ण लभामि' (स्वप्न ६०)।
पादि पक्ष में अच्छी भिक्षा मिलने की लालच पच्छ न [पश्चात् ] १ चरम, शेष (चंद पच्छन्न देखो पच्छण्ण (उवः सुर २,१८४)।
से पहले भिक्षार्थ जाना (ठा ३, ४) । संथुय १)। २ पीछे, पृष्ठ भाग। ३ पश्चिम दिशा; पच्छय पुं [प्रच्छद] वन-विशेष, दुपट्टा,
वि [ संस्तुत पिछले संबन्ध से परिचित 'पुन्वेण सणं पच्छेण वंजुला दाहिणेण पिछौरी (गाया १,१६)।
(प्राचा २, १, ४, ५)। हुत्त वि ["दे] वडविडो' (वजा १६)। ओ प्र[तस् ] पच्छयण देखो पत्थयण (...
पीछे की तरफ काः 'थलमत्ययम्मि पच्छापीछे, पीठ की पोरः 'हत्थी वेगेण पच्छनो पच्छयण देखो पत्थयण (मोह ८०)।
हुत्ताई पयाई तीए दट् ठूण' (सुपा २८१)। लग्गो' (महा); 'वहइ व महीपलभरिमो पच्छलिउ (अप) देखो पच्चलिउ (षड्)। पच्छा स्त्री पथ्या] हरें, हरीतकी (हे २, णोल्लेइ व पच्छनो घरेइ व पुरओं से १०, पच्छा म [ पश्चात् ] १ अनन्तर, बाद, पीछे २१)। ३०); 'तो चेडयामो तक्षणमारणावेऊरण (सुर २, २४४; पापः प्रासू ५७); 'पच्छा | पच्छाअ सक [प्र+छदय् ] १ ढकना । पच्छमो बाहं बद्धं दसई' (सुपा २२१) । तस्स विवागे रुअंति कलुणं महादुक्खा' (प्रासू | २ छिपाना। वकृ. पच्छाअंत (से १, ४६; कम्म न [कर्मन] १ अनन्तर का कर्म, १२६)। २ परलोक, परजन्म; 'पच्छा । ११, ९)। कृ. पच्छाइज (वसु)।
२४)।
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