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पाइअसहमहण्णवो
पज्जत्त-पजिआ [नामन] मनन्तर उक्त कर्म-विशेष (राज; पज्जरय [प्रजरक] रत्नप्रभा-नामक नरक- (शौ), (मा ३९)। पज्जवत्यावेहि (पि
पृथिवी का एक नरकावास (ठा ६-पत्र ५५१)। पजस ने पर्याप्त लगातार चौतीस दिन ३६५) । मज्झ पुं [ मध्य] एक नरकावास पज्जवसाण न [पर्यवसान] अन्त, अवसान का उपवास (संबोध ५८)।
(ठा ६-पत्र ३६७ टो)। विट्ट [वर्त] (भग)।
नरकावास-विशेष (ठा ६) । सिट्ठ पुं पज्जवसिअ न [पर्यवसित] अवसान, अन्तः पजत्तर [दे] देखो पज्जतर (षड्-पत्र
[विशिष्ट ] एक नरकावास, नरक-स्थान- 'अपज्जवसिए लोए' (प्राचा)। २१०)। विशेष (ठा ६)।
पज्जा देखो पण्णा (हे २,८३)। पजत्ति श्री [पर्याप्ति १ शक्ति, सामर्थ्य
पज्जल देखो पजल । पज्जलेइ (महा)। वक. पज्जा स्त्री [पद्या मार्ग, रास्ताः 'भेनं च (सूत्र १, १, ४)। २ जीव की वह शक्ति, पज्जलंत (कप्प)।
पडुच्च समा भावाणं पन्नवणपज्जा' (सम्म जिसके द्वारा पुद्गलों को ग्रहण करने तथा
१५७ दे ६, १; कुप्र १७६)। पज्जलण वि [प्रज्वलन] जलानेवाला (ठा उनको आहार, शरीर आदि के रूप में बदल
पज्जा स्त्री [दे] निःश्रोणि, सीढ़ी (दे ६, १)। देने का काम होता है, जीव की पुद्गलों को पज्जलिअ [प्रज्वलित] तीसरी नरक-भूमि
पज्जा स्त्री [पर्याय अधिकार, प्रबन्ध-भेद ग्रहण करने तथा परिणमाने या पचाने की शक्ति (भग; कम्म १, ४६; नव ४ दं ४)। ३ का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ८)।
(दे ६, १६ पान)।
पज्जा देखो पया; 'अगणिज्जति नासे विज्जा प्राप्ति, पूर्ण प्राप्ति (दे ५, ६२)। ४ तृप्तिः पज्जलिय वि[प्रज्वलित] १ जलाया हुआ,
दंडिज्जती नासे पज्जा प्रासू ६६)। 'पियदसणधरणजीवियाण को लहइ पत्ति ?
दग्ध (महा)। २ खूब चमकनेवाला, देदीप्य
| पजाअर पुं [प्रजागर] जागरण, निद्रा का (उप ७६८ टी)। मान (गच्छ २)।
अभाव (अभि६६)। पज्जत्ति स्त्री [पर्याप्ति] १ पूति, पूर्णता
पज्जलिर वि [प्रज्वलित] १ जलनेवाला। पज्जाउल वि [पर्याकुल] विशेष प्राकुल, (धर्मवि ३८)। २ अन्त, अवसान (सुख
२ खूब चमकनेवाला (सुपा ६३८ सण)। व्याकुल (स ७२, ६७३ हे ४, २६६)। पंजन [पर्जन्य मेघ-विशेष, जिसके एक
पज्जाभाय सक [पर्या + भाजय ] भाग पज्जलीढ वि [प्रर्यवलीढ] भक्षित (विचार
करना। संकृ. पज्जाभाइत्ता (राज)। बार बरसने से भूमि में एक हजार वर्ष तक
३२६)।
पज्जाय पु[पर्याय १ समान अर्थ का वाचक चिकनाहट रहती है; 'पज्जु - (?ज) ने एक पज्जव पुं [पर्यव] १ परिच्छेद, निर्णय (विसे
शब्द (विसे २५)। २ पूर्ण प्राप्ति (विसे महामेह एगे रणं वासेणं दस वाससयाई ८३; प्रावम)। २ देखो पज्जाय (आचा;
८३)। ३ पदार्थ-धर्म, वस्तु-गुण । ४ पदार्थ भावेति (ठा ४, ४–पत्र २७०)। भग; विसे २७५२, सम्म ३२)। कसिण न
का सूक्ष्म या स्थूल रूपान्तर (विसे ३२१० [कृत्स्न] चतुर्दश पूर्व-ग्रंथ तक का ज्ञान, पजय पु [दे. प्रार्यक] प्रपितामह, पितामह
४७६% ४८०, ४८१, ४८२, ४८३ ठा १, श्रुतज्ञान-विशेष (पंचभा) । जाय वि | का पिता, परदादा (भग ६,३; दस ७ सुर १, |
१०)। ५ क्रम, परिपाटी (णाया १, १)। [जात] १ भिन्न अवस्था को प्राप्त (परह
६ प्रकार, भेद (प्रावम)। ७ अवसर । ८ १७४० २२०)। २, ५)। २ ज्ञान आदि गुणोंवाला (ठा १)।
निर्माण (हे २, २४)। देखो पन्जय तथा पज्जय पुपर्यय १ श्रुत-ज्ञान का एक भेद, | ३ न. विषयोपभोग का अनुष्ठान (प्राचा)।
पज्जव। उत्पत्ति के प्रथम समय में सूक्ष्म-निगोद के लब्धि- | जाय वि [°यात] ज्ञान-प्राप्त (ठा १)।
पज्जाय पुं[पर्याय तात्पर्य, भावार्थ, रहस्य अपर्याप्त जीव को जो कुश्रुत का अंश होता ट्ठिय पुं[स्थित, आर्थिक, स्तिक] नय
(सूअनि १३६)। है उससे दूसरे समय में ज्ञान का जितना | विशेष, द्रव्य को छोड़कर केवल पर्यायों को | पज्जाल सक [प्र + ज्वालय् ] जलाना, अंश वढ़ता है वह श्रु तज्ञान (कम्म १, ७)। ही मुख्य माननेवाला पक्ष (सम्म ६)। णय,
सुलगाना । पज्जालइ (भवि)। संकृ. पज्जा२-देखो पज्जाय (सम्म १०३, एंदिः | 'नय पुं[ नय] वही अनन्तर उक्त अर्थ लिअ, पज्जालिऊण (दस ५, १; महा)। विसे ४७८ ४८८ ४६०, ४६१)। समास (राज; विसे ७५); उप्पज्जति वयंतिम भावा
पज्जालण न [प्रज्वालन] सुलगाना (उप पुं[समास] श्रु तज्ञान का एक भेद, अनन्तर नियमेण पज्जवनयस्स (सम्म ११)।
५६७ टी)। उक्त पर्यय-श्रुत का समुदाय (कम्म १, ७)।
पज्जवण न [पर्यवन] परिच्छेद, निश्चय (विसे | पज्जालिअ वि [प्रज्वालित] जलाया हुआ, पज्ज यण न [पर्ययन] निश्चय, अवधारण ८३)।
सुलगाया हुआ (सुपा १५१प्रासू १८)। (विसे ८३)।
पजवत्थाव सक [पर्यव + स्थापय् ] १पजिआ स्त्री [दे. प्रार्यिका] १ माता की पज्जर सक [कथय् ] कहना, बोलना। पज- | अच्छी अवस्था में रखना । २ विरोध करना। मातामही, परनानी । २ पिता की मातामही, रइ, पजर (हे ४,२,३६,२६, कुमा)।। प्रतिपक्ष के साथ वाद करना । पजवत्थावेदु परदादी (दस ७; हे ३, ४१)।
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