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पच्छाअ-पज्जत पाइअसद्दमण्णवो
५११ पच्छाअ वि [प्रच्छाय] प्रचुर छायावाला उत्तरार्ध, उत्तरी प्राधा हिस्सा (महा; ठा २, पजाला स्त्री [प्रज्वाला] अग्नि-शिखा, पाग (अभि ३६)।
३--पत्र ८१)। सेल पुं[शैल] अस्ताचल की लो या लपट (कुप्र ११७)। पच्छाइअ वि [प्रच्छादित] १ ढका हुआ, | पर्वत (गउड)।
पजीवग न [प्रजीवन] पाजीविका, जीवनोआच्छादित । २ छिपाया हुआ (पामा भवि)। पच्छिमा स्त्री [पश्चिमा] पश्चिम दिशा (कुमाः पाय, रोजी (पिंड ४७८)। पच्छाइज देखो पच्छाअ = प्र + छादय। महा)।
पजुत्त देखो पउत्त-प्रयुक्त (चंड)। पच्छाग पुं [प्रच्छादक] पात्र बाँधने का पच्छिमिल्ल वि [पाश्चात्य पीछे से उत्पन्न,
पजूहिअ वि [प्रयूथिक] यूय या समूह को कपड़ा (प्रोघ २६५ भा)। पीछे का (विसे १७६५)।
दिया हुआ, याचक-गण को अर्पित (प्राचा २, पच्छाडिद (शौ) वि [प्रक्षालित] धोया हुआ पच्छियापिडय देखो पच्छि-पिडय (राय
१, ४,२)। (नाट-मृच्छ २५५)। १४०)।
पजेमण न [प्रजेमन] भोजन-ग्रहण, भोजन पच्छाणि [दे] देखो पच्चोवणि पच्छिल (अप) देखो पच्छिम (भवि)।
लेना (राय १४६)। (षड्)।
पच्छिल्ल । वि [पश्चिम, पाश्चात्य] १ पच्छाणुताविअ वि [पश्चादनुतापिक पश्चा
पज सक [पायय] पिलाना, पान कराना। पच्छिल्लय। पश्चिम दिशा का। २ पिछला,
पृथ्वी त्ताप-युक्तः पछतावा करनेवाला (राय १४१)।
पज्जेइ (विरा १, ६)। कवकृ. 'तराहाइया (पि ५६५, ५६५ टि ४)।
ते तउ तंब तत्तं पजिन्जमाणाट्टतरं रसति' पच्छादो (शौ) देखो पच्छा = पश्चात् (पि
पच्छुत्ताव पु [पश्चादुत्ताप] पछतावा, पश्चात्ताप (सम्मत्त १६०; धर्मवि ३५, १२२
(सूम १, ५, १, २५)। कृ. पजेयव्व पच्छायण न [पथ्यदन] पाथेय, रास्ते में १३०)।
(भत्त ४०)। पच्छुत्ताविअ (अप) वि [पश्चात्तापित] खाने का भोजन; 'वहणं करियं पच्छायणस्स
पज न [पद्य छन्दो-बद्ध वाक्य (ठा ४, ४जिसको पश्चात्ताप हुआ हो वह (भवि)। भारिय' (महा)।
पत्र २८७)।
पन्ज न [पाद्य पाद-प्रक्षालन जल: 'अग्धं च पच्छेकम्म देखो पच्छ-कम्म (हे १,७६)। पच्छायण न [प्रच्छादन] १ आच्छादन,
पज्ज च गहाय' (णाया १, १६-पत्र ढकना । २ वि. आच्छादन करनेवाला। या पच्छेणय न [दे] पाथेय, रास्ते में निर्वाह स्त्री [°ता] आच्छादन; 'परगुरणपच्छायणया' | करने को भोजन-सामग्री, कलेवा (दे ६,२४) ।
पज्ज देखो पजत्त (दं ३३; कम्म ३, ७)। (उव)। पच्छोववण्णग । वि [पश्चादुपपन्न] पीछे ,
पज्जत पुं [पर्यन्त] अन्त, सीमा, प्रान्त भाग पच्छाल देखो पक्खाल । पच्छलेइ (काल)। पच्छोववन्नक से उत्पन्न (भग)।
(हे १, ५८ २, ६५, सुर ४, २१६) । पच्छि स्त्री [दे] पिटिका, पिटारी, वेत्रादि- पजप सक [प्र + जल्प] बोलना, कहना। पजण न [दे] पान, पीना (द६, ११)। रचित भाजन-विशेष (दे ६, १)। पिडय पजपह (पि २६६)।
पज्जण न [पायन] पिलाना, पान कराना न [पिटक] 'पच्छी' रूप पिटारी (भग ७, पजंपावण न [प्रजल्पन] बोलाना, कथन |
(भग १४, ७)। ८ टी-पत्र ३१३)। कराना (ौपः पि २९६) ।
पज्जण्ण देखो पजणण (सूनि ५७) । पच्छि (ग्राप) देखो पच्छइ (हे ४,३८८) । पजंपिअ वि [प्रजल्पित] कथित, उक्त, कहा |
पज्जणुओग। पुं[पर्यनुयोग] प्रश्न (धर्मसं पच्छिज्जमाग देखो पच्छ - प्र + अर्थय। । हुमा (गा ६४६)।
पज्जणुजोन १७६२९२)। पच्छित्त न [प्रायश्चित] १ पाप की शुद्धि
पजणण वि [प्रजनन ] उत्पादक, उत्पन्न पज्जग्ण पुं [पर्जन्य] मेघ, बादल (भग १४, करनेवाला कर्म, पाप का क्षय करनेवाला कर्म करनेवाला ( राय ११४)।
२; नाट. पृच्छ १७५) । देखो पजन्न। (उवः सुपा ३६६; द्र ५२) । २ मन को शुद्ध | पजगण न [प्रजनन] लिंग, पुरुष-चिह्न (विसे | पज्जतर वि [दे] दलित, विदारित (षड्)। करनेवाला कर्म (पंचा १६, ३) । २५७६ टीः मोघ ७२२)।
पज्जत वि [पर्याप्त] १ 'पर्याप्ति' से युक्त, पच्छित्ति वि [प्रायश्चित्तिन] प्रायश्चित्त का पजल प्रक [प्र+ ज्वल ] १ विशेष जलना, | 'पर्याप्ति' वाला (ठा २, १; परह १, १, भागी, दोषी (उप ३७६)।
अतिशय दग्ध होना। २ चमकना । वकृ. कम्म १, ४६) । २ समर्थ, शक्तिमान् । ३ पच्छिम न [पश्चिम १ पश्चिम दिशा (उपा
लब्ध, प्राप्त । ४ काफी, यथेट, उतना जितने ७४ टि)। २ वि. पश्चिम दिशा का, पाश्चात्य | पजलिर वि [प्रज्वलित] अत्यन्त जलनेवाला, | से काम चल जाय । ५ न. तृप्ति । ६ सामर्थ्य । (महा. हे २, २१ प्राप्र)। ३ पिछला, बाद | 'सियज्झाणानलपजलिरकम्मकतार मलइउव्व' ७ निवारण। ८ योग्यता (हे २, २४, का; "दियसस्स पच्छिमे भाए' (कप्प)। ४ (सुपा १)।
प्राप्र)।९ कर्म-विशेष, जिसके उदय से जीव अन्तिम, चरम; 'पुरिमपच्छिमगाणं तित्थ- पजह सक [प्र + हा त्याग करना । पजहामि | अपनी अपनी 'पर्याप्तियों से युक्त होता है गएणं' (सम ४४) । द्ध न [ ] | (पि ५००)। कृ. पजहियव्य (प्राचा)। । वह कर्म (कम्म १, २६)। णाम, नाम न
२०६)।
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