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धत्ती-धम्म
पाइअसहमहण्णयो
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धत्ती स्त्री [धात्री] १ धाई, उपमाता, दाई | धमणि । स्त्री [धमनि, नी] १ भना, [ख्याति] धर्म से ख्यातिवाला, धर्मात्मा (स्वप्न १२२) । २ पृथिवी, भूमि । ३ प्राम
धमणी धमनी, धौंकनी। २ नाड़ी, सिरा । (प्रौप)। गुरु पं [गुरु] धर्म-दर्शक गुरु, लकी-वृक्ष, प्रविले का पेड़ (हे २,८१) । देखो (विपा १, १, उवा: अंत २७)।
धर्माचार्य (द्र १)। गुव वि [गुप] धर्मधाई। धमधम अक [धमधमाय ] 'धम्-धम्'
रक्षक (षड् )। 'घोस पुं[घोष] कईएक धत्तूर पु [धत्तर] १ वृक्ष-विशेष, धतूरा। प्रावाज करना; 'धमधमइ सिरं धणियं जायइ
जैन मुनि और प्राचार्यों का नाम (पाचू १; ती २ न. धतूरा का पुष्प (सुपा १२४) । सूलंपि भज्जए दिट्ठी' (सुपा ६०३)। वकृ.
७ पाव ४, भग ११, ११)। 'चक न धत्तूरिअ वि [धात्तूरिक] जिसने धतूरा का धमधमंत, धमधमाअत, धमधमेत (सुपा
[चक्र] जिनदेव का धर्म-प्रकाशक चक्र (पव नशा किया हो वह (सुपा १२४० १७६)। ११४, नाट-मालती ११६ पाया १,८)।
४०; सुपा १२)। 'चकवट्टि [चक्रधत्य वि [ध्वस्त ध्वंस-प्राप्त, नट, नाश हुआ धमास पुं [धमास] वृक्ष-विशेष (परण
वर्तिन्] जिन-देव (प्राचू १)। चक्कि पुं (हे २, ७६; सण)। १७)।
[चक्रिन्] जिन भगवान् (कुम्मा ३०)। धन्न देखो धण्ण = धन्य (कुमा; प्रासू ५३; | धमिअ विध्मात] जिसमें वायु भर दिया
जगणी स्त्री जननी] धर्म की प्राप्ति ८४: १५५; उवा)। गया हो वहः 'धमिलो संखों (कुप्र १४६)।
करानेवाली स्त्री, धर्म-देशिका (पंचा १६)। धन्न न [धान्य] १ धान, अनाज, अन्न (उवाः धमिय वि [ध्मात] प्राग में तपाया हुमा,
°जस पुं[यशस् ] जैनमुनि-विशेष का सुर १, ४६) । २ धान्य विशेष; 'कुलत्थ तह __'धमियकणयं फुकाए हारविदं हुज्ज' (मोह
नाम (माव ४)। जागरिया स्त्री [जागर्या] धन्नय कलाया' (पव १५६)। ३ धनिया
४७)। (दसनि ६)। कीड पुं [कीट] नाज में धम्म पु [धर्म १ एक देव-विमान (देवेन्द्र
१ धर्म-चिन्तन के लिए किया जाता जागरण १४३) । २ एक दिन का उपवास (संबोध
(भग १२, १)। २ जन्म से छठवें दिन में होनेवाला कोट, कीट-विशेष (जी १७) ।
किया जाता एक उत्सव (कप्प) । ज्झय पुं "णिहि पुंस्त्री [निधि] धान रखने का घर,
५८)।
धम्म पुंन [धर्म] १ शुभ कर्म, कुशल-जनक कोष्ठागार, भंडार (ठा ५,३ )। पत्थय पु
[ध्वज] १ धर्म-द्योतक ध्वज, इन्द्र-ध्वज
(राय)। २ ऐरवत क्षेत्र के पांचवें भावी [प्रस्थक] धान का एक नाप (वव १)। अनुष्ठान, सदाचार (ठा १० सम १, २, प्राचा;
जिन-देव (सम १५४)। सूम १६, प्रासू ५२, ११४० सं ५७)। २
ज्झाण न "पिडग न [पिटक] नाज का एक नाप
[ध्यान] धर्म-चिन्तन, शुभ ध्यान-विशेष (वव १)। जिय न [पुञ्जितधान्य] पुण्य, सुकृत (सुर १, ५४ भाव ४)। ३
(सम ६) । उझाणि वि [ ध्यानिन्] धर्म स्वभाव, प्रकृति (निचू २०)। ४ गुण, पर्याय इकट्ठा किया हुआ अनाज (ठा ४, ४)। 'विक्खित्त न [विक्षिप्रधान्य] विकीर्ण (ठा २, १)। ५ एक अरूपी पदार्थ, जो
ध्यान से युक्त (आव ४)। "ट्रिवि आर्थिन] अनाज (ठा ४, ४)। °विरल्लिय न [विरल्लितजोव को गति-क्रिया में सहायता पहुँचाता है |
धर्म का अभिलाषी (सून १, २, २ । (नव ५)। ६ वर्तमान अवसर्पिणी काल में णायग वि ["नायक] १ धर्म का नेता धान्य] वायु से इकट्ठा किया हुआ अनाज (ठा ४.४) । संकड्ढिय न [ संकर्पितधान्य]
उत्पन्न पनहरखें जिन-देव (सम ४३, पडि)। (सन १; पडि)। ण्णु वि [ज्ञ] धर्म का खेत से काटकर खले-खलिहान में लाया गया ७ एक बरिणत (उप ७२८ टी)। ८ स्थिति, ज्ञाता (दंस ४) । "तित्थयर पुं ["तीर्थकर] धान्य (ठा ४, ४)। गार न [गार] मर्यादा (प्राचू २)। ६ धनुष, कामुक (सुर जिनभगवान् (उत्त २३; पडि)। "त्य न कोष्ठागार, धान रखने का गृह (निचू ८)।
१,५४, पाम) । १० एक जैन मुनि (कप्प)। [ ] अस्त्र-विशेष, एक प्रकार का हथियार धन्ना स्त्री [धान्य अन्न, अनाज: 'सालिज- ११ 'सूत्रकृताङ्ग' सूत्र का एक अध्ययन (सम (पउम ७१, ६३)। स्थि देखो ट्ठि (पंचव वाईयाओ धन्नामो सव्वजाईप्रो (उप
४२)। १२ प्राचार, रीति, व्यवहार (कप्प)। ४)। स्थिकाय पुस्तिकाय] गति९८६ टी)।
'उत्त पुं[पुत्र] शिष्य (प्रारू)। उर न क्रिया में सहायता पहुंचाने वाला एक प्ररूपी धन्ना स्त्री [धन्या] एक स्त्री का नाम (उवा)। ["पुर] नगर-विशेष (दंस १) । कखिम पदार्थ (भग)। दय वि [य] धर्म की धम सक ध्मिा ] १ धमना, धौंकना, प्राग में वि [काक्षित] धर्म की चाहवाला (भग)। प्राप्ति करानेवाला, धर्म देशक (भग)। दार तमाना। २ शब्द करना। ३ वायु पूरना । | कहा स्त्री [कथा] धर्म-सम्बन्धी बात न [ द्वार] धर्म का उपाय (ठा ४, ४) । धमइ (महा)। धमेइ (कुध १४६)। वकृ. (भग; सम १२०; णाया २)। कहि वि | दार पु.ब. [दार] धर्म-पत्नी (कप्पू) । धमंत (निचू १)। कवकृ. धम्ममाण (उवाः । [कथिन] धर्म-कथा कहनेवाला, धर्म का दास [दास] भगवान महावीर का णाया १,९)।
उपदेशक (मोघ ११५ भा; था ६)। कामय एक शिष्य और उपदेशमाला का कर्ता धमग विध्मायक वमनेवाला (प्रौप)।। वि [ कामक] धर्म की चाहवाला (भग)। (उव)। "देव पुं[दय] एक प्रसिद्ध जैन धमण न [धमन] १ प्राग में तपाना (माचानि काय पुंकाय धर्म का साधन-भूत शरीर (प्राचार्य (साध ७८) । °देसग, दसा वि १, १,७)। २ वायु-पूरण (पएह १, १)। (पंचा १८)। क्खाइ वि [ख्यायिन्] [ देशक] धर्म का उपदेश करनेवाला (राज; ३ वि. भस्ना, धमनी, भाथी (राज)। धर्म-प्रतिपादक (प्रौप )। क्खाइ वि भगः पडि)। 'धुरा श्री [°धुरा] धर्मरूप
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