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धुरा (गाया १, ८) । 'नायग देखो 'णायग (भग)। पडिमा स्त्री [प्रतिमा] १ धर्मं की प्रतिज्ञा । २ धर्मं का साधन-भूत शरीर (ठा १) । पण्णन्ति स्त्री ["प्रज्ञप्ति ] धर्म की प्ररूपणा ( उवा) । पदिणी (शौ) स्त्री [पत्नी] धर्मं-पत्नी, स्त्री, भार्या (अभि २२२) । पिवासय वि[पिपासक] घमं के लिए प्यासा (भग) । [°पिवासिय] वि ['पिपासित ] धर्मं की प्यासवाला ( तंदु) । पुरिस [ पुरुष ] धर्म-प्रवर्तक पुरुष (ठा ३, १) । पलजण वि [ "प्ररअन ] धर्म में आसक्त (गाया, १, १८) प्वाइ वि [प्रवादिन] धर्मोपदेशक (प्राचानि १, ४, २) । ह [प्रभ] एक जैन प्राचार्य ( रयण ५८ ) ।प्पावाडय वि [प्रावादुक] धर्म-प्रवादी, धर्मोपदेशक (प्राचानि १, १४, १ ) । बुद्धि वि ["बुद्धि] धार्मिक, धर्मं-मति । २ पुं. एक राजा का नाम (उप ७२८ टी) । °मित्त पुं ['मित्र ] भगवान् पद्मप्रभ का पूर्वभवीय नाम (सम १५१) । [द] धर्म-दाता, घमं देशक (सम १) । रुइ स्त्री ["रुचि] १ धर्म-प्रीति ( धर्मं २ ) । २ वि. धर्म में रुचिवाला (ठा १० ) । ३ पुं. एक जैन मुनि ( विपा १, १ उप ६४८ टी) । ४ वाराणसी का एक राजा (प्रावम) । लाभ पुं ['लाभ] १ धर्म की प्राप्ति । २ जैन साधु द्वारा दिया जाता श्राशीर्वाद (सुर ८ १०६) । लाभिअ वि ['लाभित] जिसको 'धर्मलाभ' रूप आशीर्वाद दिया गया हो वह ( स ह६) । 'लाह देखो लाभ ( स ३९ ) । 'लाहण न. [लाभन] धर्मलाभ -रूप श्राशीर्वाद देना; 'कयं धम्मलाहणं' ( स ४६९ ) । लाहिअ देखो 'लाभिअ ( स १४८ ) । वंत वि [वत् ] धर्मंवाला ( श्राचा) । वय पुं [व्यय ] धर्मार्थं दान, धर्मादा (सुपा ६१७) । " "" ] धर्मं का जानकार (भाषा)। विज्ज [वैद्य] धर्माचार्यं ( पंचव १) । व्वय देखो वय (सुपा ६१७) । सद्धा स्त्री [श्रद्धा] धर्म-विश्वास ( उत्त २९ ) । सण्णा देखो 'सन्ना (भग ७,
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६ ) । सत्य न [' शास्त्र ] धर्मं प्रतिपादक शास्त्र (दंस ४) । “सन्ना स्त्री [संज्ञा] १ धर्म-विश्वास । २ धर्म - बुद्धि ( परह १, ३) । "सारहि पु["सारथि] धर्मंरथ का प्रवर्तक, (७)ला
की
[शाला ] धर्म-स्थान ( करु ३३) । सील fa [शील ] धार्मिक (सूम २, २) । सीह
[सिंह] १ भगवान् श्रभिनन्दन का पूर्वभवी नाम (सम १५१) । २ एक जैन मुनि (संथा ६८) । सेण पुं [सेन] एक बलदेव का पूर्वभवीय नाम (सम १५३) । इगर fa [दिकर ] धर्म का प्रथम प्रवर्तक । २ पुं. जिन देव ( धर्मं २ ) । णुट्ठाण न [नुष्ठान] धर्म का आचरण ( धर्मं १) । गुण्ण वि [s] धर्मं का अनुमोदन करनेवाला ( सू २२ गाया १, १८ ) । •ाणुयवि["नुग] धर्मं का अनुसरण करनेवाला (प)। रिपुं [चार्य] धर्मंदाता गुरु (सम १२० ) ।वाय पुं [वाद ] १ धर्मं चर्चा । २ बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ, दृष्टिवाद (ठा १०) । हिगरणिय पुं [धिकरणिक] न्यायाधीश, न्यायकर्त्ता (सुपा ११७) । हिगारि वि [धिकारिन्] धर्म-ग्रहण के योग्य ( धर्म १ ) | धम्मवि [धर्म्य ] धर्म-युक्त धर्मं-संगतः 'जं तुम कहेसि तमेव धम्मं' ( महानि ४, द्र
४१) । धम्ममण पुं [दे] वृक्ष - विशेष (उप १०३१ टी; पउम ४२, ६) । धम्ममाण देखो धम ।
धम्मय पुं [दे] १ चार अंगुल का हस्त- व्रण । २ चण्डी देवी की नर बलि (दे ५, ६३) । धम्मि वि [ धर्मिन् ] १ धर्म-युक्त, द्रव्य, पदार्थं । २ धार्मिक, धर्म-परायण (सुपा २१ ३३६, ५०६, वजा १०६) । धम्म वि [ धमिन् ] तर्कशास्त्र - प्रसिद्ध पक्ष
( धर्मसं 25 ) ।
धम्मिअ ) वि [धार्मिक ] १ धर्म-तत्पर, धर्मधम्मिग ) परायण (गा १६७ उप ८९२ परह २, ४) । २ धर्म-सम्बन्धी (उप २६४; पंचा) । ३ धार्मिक-संबन्धी (ठा ३, ४ ) । धम्मिटु वि [ धर्मिष्ठ ] प्रतिशय धार्मिक (चौप सुपा १४० ) ।
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धम्म- धर
धम्मिट्ठ वि [ धर्मेष्ट ] धर्मं- प्रिय (श्रौप) । धम्मिट्ठ वि [ धर्मीष्ट ] धार्मिक जन को प्रिय (श्रीप) ।
धम्मिल्ल ) पुंन [ धम्मिल्ल ] १ संयत केश, घम्मे } SIT
हुए बाल की 'पटिया या जूड़ा'; बीच में फूल रखकर ऊपर से मोतियों की या अन्य किसी रत्न की लड़ियों से बँधा हुआ केश-कलाप (प्रात्रः षड् ; संक्षि ३) । २ पुं. एक जैन मुनि ( भाव ६) ।
धम्मीसर पुं [ धर्मेश्वर] प्रतीत उत्सर्पिणीकाल में भरतवर्ष में उत्पन्न एक जिन- देव (पव ७) । धम्मुत्तर वि [ धर्मोत्तर ] १ गुणी, गुणों से श्रेष्ठ (प्राचू ५ ) । २ न धर्म का प्राधान्यः 'धम्मुत्तरं वढ्ढडे (पडि ) । धोग वि[धर्मोपदेशक ] धर्मं का } धम्मोवएसय ) उपदेश देनेवाला (खाया १, १६ सुपा १७२ धर्मं २ ) । यसक [] पान करना, स्तन-पान करना । वकृ. धयंत (सुर १०, ३७) ।
धय पुंस्त्री [ध्वज ] ध्वजा, पताका (हे २,२७
या १, १६० परह १, ४० गा ३४ ) । स्त्री. या (पिंग)। 'वड पुं [पट] ध्वजा का वस्त्र (कुमा) ।
धय पुं [दे] नर, पुरुष (दे ५, ५७) । [ [] गृह, घर (दे ५, ५७) । धयरट्ठ [ धृतराष्ट्र] हंस पक्षी (पा) । धर सक [धृ] १ धारण करना । २ पकड़ना । धरइ, धरेइ (हे ४, २३४ ३३६ ) | कर्म. धरिज (पि ५३७) । वकृ धरंत, धरमाण ( सरण; भवि गा ७९१) । कवकृ. धरंत, धरेंत, धरिज्जंत, धरिज्जमाण ( से ११, १२७; १४, ८१; राज; परह १, ४; श्रौप ) । संकु. धरिडं ( कुप्र ७ ) । कृ. धरियन्क (सुपा २७२) ।
घर क [ धर ] पृथिवी का पालन करना । व. घरत (सुर २, १३० ) । धरन [दे] तूल, रूई (दे ५, ५७)। धर पुं [धर ] १ भगवान् पद्मप्रभ का पिता (सम १५० ) । २ मथुरा नगरी का एक राजा ( गाया १,१६) । ३ पर्वत, पहाड़ से ८, ६३; पान) ।
रवि [र] धारण करनेवाला (कप्प) ।
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