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धरग्ग-धसल
पाइअसद्दमहण्णवो
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धरग्ग [दे] कपास (दे ५, ५८)। धराविअ वि [धारित] पकड़ा हुमा (स धवल वि[धवल] १ सफेद, श्वेत (पामा धरण पुं [धरण] १ नाग-कुमार देवों का |
२०६; सुपा ३२५; संक्षि ३४) । २ स्थापितः | सुपा २८५)। २ पुं. उत्तम बैल (गा ६३८)। दक्षिण-दिशा का इन्द्र (ठा २, ३, प्रौप)। 'धरावियं मडयं' (कुप्र १४०)।
३ न. छन्द-विशेष (पिंग)। "गिरि पं २ यदुवंशीय राजा अन्धक-वृष्णि का एक
धरिअ वि [धृत] १ धारण किया हुआ (गा [गिरि कैलास पर्वत (ती ४६)। गेह पुत्र (अंत ३)। ३ श्रेष्ठि-विशेष (उप ७२८ ।
१०१; सुपा १२२) । २ रोका हुआ (स न [गेह] प्रासाद, महल (कुमा)। चंद पुं टी; सुपा ५५६) । ४ न. धारण करना २०६)।
[चन्द्र] एक जैन मुनि (दं ४७)। रव पुं (से ३, ३, सार्ध ६, वजा ४८)। ५ सोलह
घरिजंत । धरघृ।
[व] मंगलगीत (सुपा २६५)। हर न तोले का एक परिमाण (जो २)। ६ धरना धरिजमाण
[गृह] प्रासाद, महल (श्रा १२, महा)। देना, लंघन-पूर्वक उपवेशन (पव ३८)। ७
धरिणी स्त्री [धरिणी] पृथिवी, भूमि (पाप)। धवल सक [धवलय ] सफेद करना । धवलइ तोलने का साधन (जो २)। ८ वि. धारण धरित्ती स्त्री [धरित्री] पृथिवी, भूमि (धु
(पि ५५७) । कवकृ. धवलिज्जत (गउड)। करनेवाला (कुमा)। पभ पुं[प्रभ] १२७; सम्मत्त २२६)।
धवलक्क न [धवलार्क] ग्राम-विशेष, जो धरणेन्द का उत्पात-पर्वत (ठा १०)। धरिम न [धरिम] १ जो तराजू में तौल कर
आजकल 'धोलका' नाम से गुजरात में प्रसिद्ध धरणा लो [धरणा] देखो धारणा (णंदि)।
बेचा जाय वह (श्रा १८ णाया १,८)। धरणि स्त्री [धरणि] १ भूमि, पृथिवी (प्रौप;
२ ऋण, करजा (णाया १,१) । ३ एक धवलण न [धवलन] सफेद करना, श्वेती
तरह की नाप, तौल (जो २)। । करण (कुमा)। कुमा)। २ भगवान् भरनाथ की शासन-देवी
धवलसउण दे] हंस (दे ५,५६; पाम)। (संति १०)। ३ भगवान् वासुपूज्य की प्रथम । धारयव्य देखो धर = धू। शिष्या (सम १५२, पव ६)।खील पु धरिस अक [धृष्] १ संहत होना, एकत्रित |
धवला स्त्री [धवला] गौ, गैया (गा ६३८)। [कील] मेरु पर्वत (सुज ५)। 'चर .
होना । २ प्रगल्भता करना, ढीठाई करना। धवलाअ अक [धवलाय ] सफेद होना । [चर] मनुष्य (पउम १०१, ४७)। °धर ३ मिलना, संबद्ध होना । ४ सक. हिंसा
संबद होना । ४ सक. हिंसा धवलाअंत (गा ६) पुं धर] १ पर्वत, पहाड़ (अजि १७)।। करना, मारना । ५ अमर्ष करना, सहन नहीं |
रना । ५ अमर्ष करना. सहन नहीं धवलाइअ वि [धवलायित] १ उत्तम बेल २ अयोध्या नगरी का एक सूर्य-वंशीय राजा करना । धरिसइ (राज)।
की तरह जिसने कार्य किया हो वह । २ न. (पउम ५, ५०)। धरप्पवर पु[धरप्रवर] ! धरिस सक [धर्षय ] क्षुब्ध करना, विचलित
उत्तम वृषभ की तरह पाचरण (साधं ६)। मेरु पर्वत (अजि १५) । धरवइ पुं [धर• करना । धरिसेइ (उत्त ३२, १२)।
धवलिम पुंस्त्री [धवलिमन] सफेदपन, शुक्रता, पति मेरु पर्वत (प्रजि १७)। धरा स्त्री धरिसण न [धर्षण] १ परिभव, अभिभव ।
सफेदी (सुपा ७४)। [धरा] भगवान् विमलनाथ की प्रथम
धवलिय वि [धसलित] सफेद किया हुआ २ संहति, समूह । ३ अमर्ष, असहिष्णुता । शिष्या (सम १५२) । यल न ["तल]
(भवि)। ४ हिंसाः ५ बन्धन, योजन (निचू १, राज)। भूमि-तल, भू-तल (गाया १, २)। वइ पुं
धवली स्त्री [धवली] उत्तम गौ, श्रेष्ठ गैया ६ प्रगल्भता, धृष्टता, ढीठाई (प्रौप)। [पति] भू-पति, राजा (सुपा ३३४) ।
(गउड)। वटु न [पृष्ठ] मही-पीठ, भूमि-तल धरत देखो धर = धृ।
धव्व पु [दे] वेग (द ५, ५७)। (महा)। हर देखो धर (से ६, ३६)। धव पुंधिय१ पतिः स्वामी (गाया १, | धस प्रकधिस1१ घसना । २ नीचे
१वव ७)।२ वृक्ष-विशेष (पएण १; उप धरणिंद पुं [धरणेन्द्र] नाग-कुमारों की
जाना । ३ प्रवेश करना। घसइ, घसउ १०३१ टी प्रौप)। दक्षिण दिशा का इन्द्र (पउम ५, ३८)। ।
(पिंग)। धवक प्रक [दे] धड़कना, भय से व्याकुल धस [धस ] 'धस् ' ऐसा पावाज, गिरने धरणिसिंग पुं [धरणिशृङ्ग] मेरु पर्वत
होना, धुकधुकाना । धवक्कइ (सण)। की भावाज; 'धसत्ति महिमंडले पडिमों (सुज ५)।
धवक्किय वि [दे] धड़का हुआ, भयसे व्माकुल (महा; णाया १, १-पत्र ४७)। धरणी देखो धरणि (प्रासू २३; पि ५३; से
बना हुआ (सण)।
| धसक पुं[दे] हृदय की घबराहट की आवाज, २, २४; कुप्र २२)।
धवण न [धावन] धौन, चावल मादि का गुजराती में 'धासको तो जायहिमधसका धरा स्त्री [धरा] पृथिवी, भूमि (गउड़; सुपा।
(श्रा १४० कुप्र ४३५)। २०१) । 'धर, 'हर पुं [धर] पर्वत, | धवल ' [दे] स्व-जाति में उत्तम (दे ५, धसक्किा वि [दे] खूब घबड़ाया हुआ था पहाड़ (से ६, ७६, ३८ स २६९ ७०३ ५७)।
१४)। उप ७६८ टी)।
| धवल न [धवल] लगातार सोलह दिन का असल वि [दे] विस्तीर्ण, फैला हुआ (दे ५, धराधीस पु [धराधीश राजा (मोह ४३)। उपवास (संबोध ५८) ।
५८)।
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