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पउमावत्ती-पओग
पाइअसहमहण्णवो पटरानी (णाया २-पत्र २५३)। ६ चम्पे- पउरिस पुंन [पौरुष] पुरुषत्व, पुरुषार्थ, पएस [प्रदेश] १ जिसका विभाग न हो श्वर राजा दधिवाहन की एक श्री का नाम | पउरुस ।वीरता, मरदानी (हे १, १११, सके ऐसा, सूक्ष्म अवयव (ठा १,१)। २ (माव ४)। ७ राजा कूणिक की एक पत्नी १६२); 'पउरुसा' (प्राप्र); 'पउरुसं' (संक्षि | कर्म-दल का संचय (नव ३१)। ३ स्थान, (भग ७,९)। अयोध्या के राजा हरिसिंह
जगह (कुमा ६,५९)। ४ देश का एक भाग, की एक पली (धम्म ८)। ६ तेतलिपुर के पउल सक [पच् ] पकाना। पउलइ (हे प्रान्त (कुमा ६)। ५ परिमाण-विशेष, निरंशराजा कनककेतु की पत्नी (दंस १)। १० ४,६० दे ६, २६)।
अवयव-परिमित माप। ६ छोटा भाग। ७ कौशाम्बी नगरी के राजा शतानीक के पुत्र पउलण न [पचन पकाना, पाक (पएह १, परमाणु । ८ घणुक । ६ त्र्यणुक, तीन उदयन की पत्नी (विपा १, ५)। ११ शैलक
परमाणुगों का समूह (राज)। कम्म न पुर के राजा शैलक की पत्नी (णाया १,५)। पउलिअ वि [पक] पका हुआ (पास)। [कर्मन्] कर्म-विशेष, प्रदेश-रूप कर्म १२ राजा कूणिक के पुत्र कालकुमार की पउलिअ वि [प्रज्वलित] दग्ध, जला हुआ
(भग)। 'ग न [प] कर्मों के दलिकों का भार्या का नाम । १३ राजा महाबल की भार्या | (उवा)।
परिमाण (भग)। 'घण वि ["घन] निबिड का नाम (निर १, १५ पि १३६)। १४ पउल्ल देखो पउल । पउल्लइ (षड् हे ४,६०
प्रदेश (प्रौप)। णाम न ['नामन्] कर्मबीसवें तीर्थकर श्रीमुनिसुव्रतस्वामी की माता | टि)।
विशेष (ठा ६)। णाम [नाम कमका नाम (पद ११)। १५ पुण्डरीकिणी पउल्ल वि [पक्क] पका हुआ (पंचा १)।
द्रव्यों का परिणाम (ठा ६)। बंध j नगरी के राजा महापम की पटरानी (पाचू | पउल्लग न [पचनक] रसोई का पात्र (दशवै० ।
[बन्ध] कर्म-दलों का भात्म-प्रदेशों के साथ १)। १६ रम्यनामक विजय की राजधानी वृ० हारि० पत्र ९७, २)।
संबन्धन (सम ९)। संकम पुं[संक्रम (जं ४)। | पउविय वि [प्रकुपित] विशेष कुपित, कुद्ध
कर्म-द्रव्यों को भिन्न स्वभाव वाले कर्मों के रूप पउमावत्ती (मप) स्त्री [पद्मावती] छन्द
में परिणत करना (ठा ४, २)। विशेष (पिंग)।
पउस सक [प्र+द्विष ] द्वेष करना। पठ-पएसण न [प्रदेशन] उपदेश, 'पएसणयं सेजा (मोघ २५ भा)।
णाम उवएसो' (माचू १)। पउमिणी स्त्री [पद्मिनी] १ कमलिनी,
पउसय विदे] देश-विशेष में उत्पन्न । श्री.पएसय वि [प्रदेशक] उपदेशक, प्रदर्शका कमल-लता (कप्प; सुपा १५५)। २ एक श्रेष्ठी
"सिया (प्रौप)। की श्री का नाम (उप ७१८ टी)।
_ 'सिद्धिपहपएसए वंदे (विसे १०२५)। पउस्स देखो पउस । पउस्ससि (कुप्र ३७७)। पएसि प्रदेशिन्] स्वनाम-ख्यात एक पउमुत्तर पुं[पद्मोत्तर] १ नववे चक्रवर्ती वकृ. पउस्संत, पउस्समाण (राजा अंत |
राजा, जो श्री पार्श्वनाथ भगवान् के केशिश्रीमहापयराज के पिता का नाम (सम २२)। संकृ. पउस्सिऊण (स ५१३)।
नामक गणधर से प्रबुद्ध हुमा था (रायः कुप्र १५२)। २ मन्दर पर्वत के भद्रशाल वन का पउहण (अप) देखो पवहण (भवि)।
१५५ श्रा ६)। एक दिग्हस्ती पर्वत (इक)। | पऊढ न [दे] गृह, घर (दे ६, ४)।
पएसिणी श्री [दे] पड़ोस में रहनेवाली श्री पउमुत्तरा श्री [पद्मोत्तरा] एक प्रकार की |पए म [प्रगे] पहले, पूर्व; "तित्थगरवयण
पड़ोसिनी (दे ६, ३ टी)। शकर, खाँड, चीनी (पाया १,१७-पत्र करणे मायरिमाणं कयं पए होई (भोध
पएसिणी श्री [प्रदेशिनी] मंगुष्ठ के पास पएण २२६; १७)। ४७ भा); 'जइ पुण वियालपत्ता पए व पत्ता
की उंगली, तर्जनी (मोष ३६०)। उवस्सयं न ल. (मोघ १९८)। पउर वि [प्रचुर] प्रभूत, बहुत (हे १,१८००
पएसिय देखो पदेसिय (राज)। कुमा, सुर ४, ७४)।
पएणियार पुं [प्रैणीचार] व्याध की एक पउर वि [पौर] १ पुर-संबन्धी, नगर से संबन्ध
जाति, जो हरिणों को पकड़ने के लिए पओअ [पयोद मेघ (दस ७, ५२)।
हरिणी-समूह को चराते एवं पालते हैं (पएह पओअ देखो पओग (हे १, २४५; मभि । रखनेवाला। २ नगर में रहनेवाला (हे १, १, १-पत्र १४)।
सण; पि ८५)। १६२)। पउरव पुपौरव पुरुनामक चन्द्र-वंशीय
पएर पु[दे] १ वृति-विवर, बाड़ का छिद्र। पओअण न [प्रयोजन] १ हेतु, निमित्त,
मार्ग रास्ता।३कंठदीनार नामक भूषण- कारण (सू १, १२)। २कार्य, काम नृप का पुत्र (संक्षि ६)।
विशेष। ४ गले का छिद्र । ५ दीननाद, मात- ३ मतलब (महा; उत्त २३ स्वप्न ४८)। पउराण (मप) देखो पुराण (मवि)।
स्वर। ६ वि. दुरशील, दुराचारी (दे ६, पओइद (शौ) वि [प्रयोजित] जिसका पउरिस वि [पौरुषेय] पुरुष-कृत, पुरुष का
प्रयोग कराया गया हो वह (नाट-विक बनाया हुमाः 'वेदस्स तह यापउरिसमावा पएस पुं[दे] प्रातिवेश्मिक, पड़ोसी (३६, १०३)। (धर्मस ८९२).
पओग[प्रयोग] प्रयोजन (सूम २,७.२)।
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