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पाइअसहमहण्णवो
पंचंगुलिआ-पंडरिय पंचंगुलिआ स्त्री [पञ्चाङ्गलिका] वल्ली- पास गोदावरी नदी के किनारे मानते हैं, जब पंछि पुं [पक्षिन् ] पंछी, पक्षी, पखेरू, विशेष (पएण १-पत्र ३३)।
कि माधुनिक गवेषक लोग बस्तर रजवाड़े के चिड़िया (उप १०३१ टी)। पंचग वि [पञ्चक] पाँच (रुपया आदि) की दक्षिणी छोर पर, गोदावरी के किनारे, इसका पंजर पुन [पञ्जर] १ माचार्य, उपाध्याय, कीमत का (दसनि ३, १३)। होना सिद्ध करते है (उत्तर ८१)।
प्रवत्तक प्रादि मुनि-गण । २ उन्मार्ग-गमनपंचग न [पञ्चक] पाँच का समूह (माचा)।
पंचवयण [पञ्चवदन] सिंह, मृगराज निषेष, सन्मार्ग-प्रवर्तन । ३ स्वच्छन्दता-प्रति(सम्मत्त १३८)।
षेष (वव) १)। पंचजण्ण पु[पाञ्चजन्य] श्रीकृष्ण का शंख
पंचामय न [पञ्चामृत] ये पाँच वस्तु-दही; पंजर न [पञ्जर] पिंजरा, पिंजड़ा (गउड, (काप्र ८६२ गा ९७४)।
दूध, घी, मधु तथा शक्कर (सिरि २१८)। कप्पू; मच्चु २)। पंचत्त न [पश्चत्व] १ पाँचपन, पञ्च-चालापालालकामशास-प्रोता एक पंजरिबादा जहाज का कर्मचारी-विशेष पंचत्तणरूपता (सुर १, ५)। २ मरण, मौत (सुर १, ५ सण, उप पृ १२४)। ऋषि (सम्मत्त १३७)।
(सिरि ४२७)। पंचपुंड वि [ पञ्चपुण्ड ] पाँच स्थानों में
पश्चाल पुं. ब. [पञ्चाल, पाञ्चाल १ देश- पंजरिय वि [पअरित] पिंजरे में बंद किया विशेष, पजाब देश (णाया १,८; महाः |
हुमा (गउड)। पुण्ड्र-चिह्न (सफेदी) वाला (पिंड मा ४३)। पएण १)। २ पुं. पजाब देश का राजा
पंजल वि [प्राअल] सरल, सीधा, ऋतु पंचपुल पुन [दे] मत्स्य-बन्धन विशेष, (भवि) । ३ छन्द-विशेष (पिंग)।
(सुपा ३६४ वखा ३०)। मछली पकड़ने का जाल-विशेष (विपा १,!
पंचालिआ नी [पश्चालिका] पूतली, काष्ठादि- पंञ्जलि पुत्री [प्रालि] प्रमाण करने के लिए ८-पत्र ८५ टी)। निर्मित छोटी प्रतिमा (कप्पू)।
जोड़ा हुमा कर-संपुट, हस्त-न्यास-विशेष, पंचम वि [पक्रम १ पाँचवाँ (उवा)। २ पंचालिआ श्रीपाश्चालिका] १ दुपद-राज
संयुक्त कर-द्वय (उवा)। 'उड ऍ[पुट] . स्वर-विशेष (ठा ७)। धारा स्त्री की कन्या, द्रौपदी (वेणी १५८)1 २ गान
अञ्जलि-पुट, संयुक्त कर-द्वय (सम १५१, [धारा] अश्व की एक तरह की गति का एक भेद (कप्पू)।
प्रौप)। "उड, कड वि [कृतप्राअलि] (महा)।
पंचावण्ण । स्त्रीन दे.पश्चपञ्चाशता जिसने प्रणाम के लिए हाथ जोड़ा हो वह पंचमहन्भूइअ वि [पाश्चमहाभूतिक] पंचावन्न । संख्या-विशेष, पचपन, ५५ (भगः भोप)। पाँच महाभूतों को माननेवाला, सांख्यमत २ जिनकी संख्या पचपन हो वे (हे २, १७४ पंजिअ नादायथेच्छ दान, मुंह-मांगा दान: का अनुयायी (सूम २, १, २०)। दे २, २७ दे २, २७ टि)।
'रायकुलेषु भमंतो पंजिमदाणं पगिरहेर पंचमासिअ वि [पाश्चमासिक] १पाँच पंचावन्न वि [दे. पञ्चवश्वाश] पचपनवाँ । (सिरि ११८)। मास की उम्र का। २ पाँच मास में पूर्ण (पउम ५५, ६१)।
पंड वि [पाण्ड्य देश-विशेष में उत्पन्न । पंचिंदिय । वि [पञ्चेन्द्रिय] १ वह जीव स्त्री. डी; 'पंडीणं गंडवालीपुलमणचवला' (सम २१)। पंचिद्रिय । जिसको त्वचा, जीभ, नाक,
(कप्पू)। पंचमिय वि पिास्चमिका पाँचवा. पंचम | अखि और कान ये पाँचो इन्द्रिया हा (पएण पंड पण्डका१नसक क्लोव (मोघ ६१)।
१ कप्पः जीव १, भवि) । २ न. त्वचा पंडग (मोष ४६७; सम १५ पास)।२ पंचमी स्त्री [पञ्चमी] १ पाँचवीं (प्रामा)। प्रादि पाँच इन्द्रियाँ (धर्म ३)।
पंडय! न. मेरु पर्वत का एक बन ( २, २ तिथि-विशेष, पंचमी तिथि (सम २६ पंचिया स्त्री [पश्चिका] १ पांच की संख्याश्रा २८)। ३ व्याकरण-प्रसिद्ध अपादान
पंडय देखो पंडव (हे १,७०)। | वाला । २ पाँच दिन का (वय १)। विभक्ति (अणु)।
पंडर पु[पाण्डर] १ क्षीरवर मामक द्वीप का पंचुंबर बीन [पञ्चोदुम्बर] वट, पीपल, पंचयन्न देखो पश्चजण्ण (णाया १, १६ उदुम्बर, प्लक्ष और काकोदुम्बरी का फल
मधिष्ठाता देव (राज)। २ श्वेत वर्ण, सफेद सुपा २६४)।
रंग । ३ वि. श्वेतवर्णवाला, सफेद (कप्प)। (भवि) । श्री. री (श्रा २०)।
"भिक्खु पुं[भिक्षु श्वेताम्बर जैन संप्रदाय पंचलोइया स्त्री [पञ्चलौकिका] भुजपरिसन- पंचत्तरसय वि [पश्चोत्तरशततम एक का मुनि (स ५५२)। विशेष, हाथ से चलनेवाले सर्प-जातीय प्राणी सौ पाँचवा, १०५ वाँ (पउम १०५, ११५)। पंडर देखो पंडर (स्वप्न ७१)। क जाति (जीव २)।
पंचेडिय वि[३] विनाशित, 'जेण लोयस्स पंडरंग [द] ख, महादेव, शिव (३६, पिञ्चषटी] पाँच वट-वृक्षवाला | मोहत्तणं फेडिय दुटुकंदप्पद पंच पंचेडिय २१)। रामचन्द्रजी ने अपने | (मवि)।
पंडरंगु [३] प्रामेश, गांव का मणिपति था, इस स्थान पंचेसु [पोष कामदेव, कंदर्प (कप्पू: (पर)। नगर के रमा)।
| पंडरिय देखो पंडरिब (मवि)।
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