________________
पंचअण्ण-पंचंगुलि पाइअसहमहण्णवो
४९९ केवलज्ञान और निर्वाण । २ काम्पिल्यपुर, प्राकाश ये पांच पदार्थ (सूम १, १, १)। से विभूषित एक छोटा द्वीप (महाः बृह ४)। जहाँ तेरहवें जिन-देव श्रीविमलनाथ के पाँचों भूयवाइ वि [भूतवादिन] मात्मा मादि 'सोगंधिअ वि [°सौगन्धिक] इलायची, कल्याणक हुए थे (ती २४) । ३ तप-विशेष पदार्थों को न मान कर केवल पांच भूतों को लवंग, कपूर, कंकोल और जातीफल-जायफल (जीत)। कोढग वि [ कोष्ठक] १ पाँच ही माननेवाला, नास्तिक (सूम १, १,१)। इन पाँच सुगन्धित वस्तुभों से संस्कृतः 'नन्नत्य कोष्ठों से युक्त । २ पुं. पुरुष (तंदु)। गव्व 'महव्वइय वि [महाव्रतिक] पाँच महा- पञ्चसोगंधिएणं तंबोलेणं, अवसेसमुह-वासविहि न [गव्य] गाय के ये पाच पदार्थ-दूध, दही, व्रतोंवाला (सूम २, ७) । महव्यय न पच्चक्खामि' (उवा)। 'हत्तर वि ["सप्तत] घृत, गोमय और मूत्र, पंचगव्य (कप्पू)। [महाव्रत] हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन, पचहत्तरवा, ७५ वाँ (पउम ७५, ८६)। 'गाह न [गाथ] गाथाछन्द वाले पांच | और परिग्रह का सर्वथा परित्याग (पएह २, हत्तरि स्त्री [सप्तति] १ संख्या पद्य (कस)। गुण वि [गुण] पाँचगुना ५)। महाभूय न [महाभूत] पृथिवी, विशेष, ७५ । २ जिनकी संख्या पचहत्तर (ठा ५,३) । 'चित्त ' [चित्र] षष्ठ जिन- जल, अग्नि, वायु और प्राकाश ये पाँच | होवे (पि २६४७ कप्प) । हत्थुत्तर पुं देव श्रीपद्मप्रभः जिनके पाँचों कल्याणक चित्रा |
पदार्थ ( विसे)। मुट्रिय वि[मुष्टिक] [हस्तोत्तर] भगवान महावीर, जिनके नक्षत्र में हुए थे (ठा ५, १: कप्प)। जाम पाँच मुष्यिों का. पांच मुष्टियों से पूर्ण पाँचों कल्याणक उत्तराफाल्गुनी-नक्षत्र में हुए न [याम] १ अहिंसा, सत्य, प्रचौर्य, किया जाता (लोच) (णाया १, १ थे (कप्प)। उह पुं[युध] कामदेव ब्रह्मचर्य और त्याग ये पाँच महाव्रत । २ वि. कप्प, महा)। "मुह पुं [मुख] सिंह, । (सण)।णउइ श्री [ नवति] १ संख्याजिसमें इन पांच महाव्रतों का निरूपण हो वह पंचानन (उप १०३१ टी)। 'यसी देखो , विशेष, पंचानबे, ६५। २ जिनकी संख्या (ठा)। णउइ स्त्री [ नवति] पंचानबे, दसी (पउम ६६, १४) । रत्त, राय पंचानबे हो वे (सम ९७ पउम २०, ६५ (काल)। णय वि ['नवत १५ पुं रात्र] पाँच रात (मा ४३, पएह २, १०३; पि ४४०)।णउय वि [नवत] वाँ (काल) । तालीस (अप) स्त्रीन ५-पत्र १४९)। रासिय न [ राशिक] पंचानवा, ९५ वाँ (पउम ९५, ६६)। [ चत्वारिंशत् ] पैतालीस, ४५ (पिंगः | गणित-विशेष (हा ४, ३) । रूविय वि 'णण पुं [नन] सिंह, गजेन्द्र (सुपा पि ४४५)। "तित्थी स्त्री [ तीर्थी] पाँच [रूपिक] पाँच प्रकार के वर्णवाला (ठा ४, १७६; भवि)। °णुव्वइय वि [णुव्रतिक तीर्थों का समुदाय (धर्म २)। तीसइम वि ४)। 'वत्थुग न ["वस्तुक] प्राचार्य हरि- हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह का [शित्तम] पैतीसवाँ, ३५. वाँ (परण भद्रसूरि-रचित ग्रन्थ-विशेष (पंचव १, १)।
मांशिक त्यागवाला (उवाः प्रौप, णाया १; ३५) । दस त्रि. ब. [दशन पनरह, १५ | वरिस वि [°वर्ष] पाँच वर्ष की अवस्था
१२)। याम देखो जाम (बृह ६)। (कप्पू)। दसम वि [दशम पनरहवाँ; | वाला (सुर २, ७३)। 'विह वि ["विध]
'सि स्त्रीन [शत्] १ संख्या-विशेष, १५ वाँ (णाया १, १) । दसी स्त्री पाँच प्रकार का (अणु) । वीसइम वि
पचास, ५० । २ जिनकी संख्या पचीस हो [दशी] १ पनरहवीं, १५ वीं (विसे ["विंशतितम] पचीसवाँ (पउम २५, २६)।
वे; 'पंचास प्रजियासाहस्सीमों' (सम ७०)। ५७६) । २ पूर्णिमा । ३ प्रमावास्या (सुज
सग न [शक] भाचार्य श्रीहरिभद्रसूरि१०)। 'दसुत्तरसय वि [दशोत्तरशत- कृत एक जैन ग्रन्थ (पंच १)। संवच्छरिय
कृत एक जैन ग्रन्थ (पंचा)। सीइ स्त्री तम] एक सौ पनरहवा, ११५ वाँ (पउम वि ['सांवत्सरिक] पाँच वर्ष परिमाण
[शीति] १ संख्या-विशेष, भस्सी और ११५, २४)। 'नउइ देखो उइ (पि
पाँच, ८५। २ जिनकी संख्या पचासी हो वे वाला, पाँच वर्ष की प्रायुवाला (सम ७५) । ४४७); नाणि वि [ज्ञानिन्] मति,
(सम ६२; पि ४४६) । सीइम वि सट्र वि ['षष्ट] पैसठवाँ, ६५ वाँ (पउम श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल इन पाँचों
["शीतितम] पचासीवाँ, ८५ वा (पउम ६५, ५१) । सद्रि श्री [षष्टि] पैसठ, ज्ञानों से युक्त, सर्वज्ञ (सम्म ६९)। 'पव्वी
८५, ३१ कप्पः पि ४४६)। ६५ (कप्प) । समिय वि [ समित]
पंचंअण्ण देखो पंचजण्ण (गउड)। स्त्री [ पर्वी] मास की दो अष्टमी, दो चदुर्दशी पांच समितियों का पालन करनेवाला (सं
पंचंग न [पश्चाङ्ग] १ दो हाथ; दो जानु और और शुक्ल पंचमी ये पाँच तिथियाँ (रयण ८)। 'सर पुं [शर] कामदेव (पामः |
मस्तक ये पाँच शरीरावयव । २ वि. पूर्वोक्त २६)। 'पुव्वासाढ [पूर्वाषाढ] दसवें सुर २, ६३, सुपा ६०, रंभा)। 'सीस पुं
पाँच अंगवाला (प्रणाम प्रादि); 'पंचंग करिय जिनदेव श्रीशीतलनाथ, जिनके पाँचों कल्या- [शीर्ष] देव-विशेष (दीव)। 'सुण्ण न
ताहे परिणवाय' (सुर ४, ६८)। एक पूर्वाषाढा नक्षत्र में हुए थे (ठा ५, १)। [शून्य पांच प्राणिवध-स्थान (सूम १, 'पूस पुं[पुष्य पनरहवें जिनदेव श्रीधर्म- १. ४)। सुत्तग न [ सूत्रक] भाचार्य
पंचंगुलि ([दे] एरण्ड-वृक्ष, रेंडी का गाछ नाथ (ठा ५,१)। बाण पु [बाण]/ श्रीहरिभवसूरि-निर्मित एक जैन ग्रन्थ (पसू
9 (दे ६, १७)। कामदेव (सुर ४, २४६, कुमा)। भूय न १)। 'सेल, सेला, सेलय ([शैल, पंचंगुलि पु[पश्चागुलि] हस्त, हाथ (णाया न [ भूत] पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और क] लवणोदधि में स्थित और पौच पर्वतों । १,१ कप्प)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
wwwinelibrary.org