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पंडव पंथ
पंड [पाण्डव] राजा पार का पुत्र - १ युधिष्ठिर, २ भीम, ३ अर्जुन, ४ सहदेव मौर ५ नकुल (गाया १, १६६ उप ६४८ टी) । पंड [] श्व-रक्षक (?); 'सिट्ठि सुहडेह तासिय पंडववयेहि नरवरो रुट्ठो' (सम्मत २१६) ।
पंढवि
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[२] जलाई पानी से भीजा हुआ (दे ६, २०) ।
पंडिअ वि [पण्डित] १ विद्वान् शास्त्रों के मर्म को जाननेवाला, बुद्धिमान्, तत्वज्ञः कामज्भया णामं गरिणया होत्या बावत्तरीकलापंडिया' ( विपा १, २ प्रासू ७४६ १२) । २ संयत, साधु ( सून १, ८, ९ ) । "मरण न ["मरण] साधु का मरणा, शुभ मरण- विशेष (भग पच ४६) *माण वि [म्मन्य ] विद्याभिमानी, निज को पण्डित माननेवाला, दुर्विदग्ध, अधपका, मूर्ख, अनाड़ी (घोष २७ मा "माणि वि [मानिन] देखो पूर्वोक्त प्रर्थं (पउम १०५, २१ उप १२४] टी)। वीरिअ न ["वीर्ये] संयत का आत्म- बल (भग) । डिमाणि वि[पाण्डित्यमानिन] पंडिताई का अभिमान रखनेवाला, विद्वत्ता का घमंड रखनेवाला (वय १९) । पंडिच न [ पाण्डित्य ] पंडित । विद्वत्ता, वैदुष्य (उवः ६८ सुपा २६; रंभा सं ५७ ) ।
पण्डिताई, सुर १२,
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पाइअसद्दमद्दष्णबो
● कंबला स्त्री ["कम्बला ] वही पूर्वोक्त मर्थं (ठा २, ३ ) । तणय पु ["तनय] पण्डुराज का पुत्र, पाण्डव (गउड ४८५) । भद्द [भद्र] एक जैन मुनि, जो श्रायं संभूतिविजय के शिष्य थे (कप्प) महिया, "मतिया श्री] [मृत्तिका] एक प्रकार की सफेद मिट्टी ( जीव १ पराग १ - पत्र २५) । महरा स्त्री [ मथुरा ] स्वनाम - ख्यात एक नगरी, पाण्डवों द्वारा बनाई हुई भारतवर्ष के दक्षिण तरफ की एक नगरी का नाम (गाया १, १६ – पत्र २२५ अंत ) । राय पुं [राज] राजा पाण्डु पाण्डवों का पिता ( खाया १, १६) सुब ["सुत] पुं पाण्डव (उप ६४८ टो) । सेण पुं [°सेन] पाण्डवों का द्रौपदी से उत्पन्न एक पुत्र (गाया १, १६; उप ६४८ टी) । पंडुइय बि [ पाण्डुकित] १ श्वेत रंग का किया हुआ या १, १ पत्र २० ) । की पूर्ति करनेवाला एक निधि (राज पुं [ पाण्डक] १ चक्रवर्ती का धान्यों ठा २, १ –पत्र ४४ उप ६८६ टी) । २ सर्प की एक जाति (भाचू १) । ३ न. मेरु पर्वत पर स्थित एक वन, पाएडक- वन ( सम ee) I
पंहुँय पंडुग
[दुर] [पाण्डुर] श्वेत व सफेद रंग २पीतमिति श्वेत व ३वि सफेद - वाला । ४ श्वेत- मिश्रित पीत वर्णवाला (कप्प; उब से ८, ४९) । 'ज्जा स्त्री [र्या] एक जैन सामी का नाम (सायम) थिय [स्थिक] एक गाँव का नाम (प्राचू १) । पंडुरंग पुं [पाण्डुराङ्ग] संन्यासी की एक जाति, भस्म लगानेवाला संन्यासी (अरण २४) ।
पंत वि [प्रान्त ] १ अन्तवर्ती, मन्तिम ( भग E; ३३) । २ प्रशोभन, मसुन्दर (घाचाः
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प्रोघ १७ भा) । ३ इन्द्रियों के अननुकूल, इन्द्रिय-प्रतिकूल (पह २५) ४ असभ्य, अशिष्ट (घोष ३६ टी) । ५ प्रपसद, नीच, पुष्ट (छाया २८) दरिद्र निर्धन ( श्रोघ ९९ ) । ७ जीर्ण, फटा-टूटा, पंतवत्थ-' (बृह २ ) । व्यापन्न, विनष्टः विमा अंत हो बावन्न ( १ घाचा नीरस सूखा (उत्त) | १० भुक्तावशिष्ट, खा लेने पर बचा हुआ । ११ पर्युषित, बासी (गाया १, ५ - पत्र १११ ) । "कुल न [कुल ] नीच कुल, जघन्य जाति । (ठा ८ ) । चरवि [चर] नीरस श्राहार की खोज करनेवाला तपस्वी परह २ १) । "जीवि वि ["जीविन] नीरस बाहार से शरीर-निर्वाह करनेवाला (ठा २, १) हार वि["हार] रूखा-सूखा बाहार करनेवाला (ठा ४, १) ।
पंडी देखो पंड = पाण्ड्य । पंडी (प) देखो पंडिअ (पिंग ) । पंदु [पाण्ड] १ नृप-विशेष पाएड्वों का पिता (उप ६४८ टी; सुपा २७० ) । २ रोगविशेष पाड-रोग (१) विशेष शुक्ल मौर पीत वर्णं । ४ श्वेत वर्णं । ५ वि. रुक और पीडववाला (भद्रा गउड)। पंडरग} [ पाण्डुरक ] ? शिष-अत पंथ [ चान्य] पथिक, मुसाफिर (हे १, १०२
पंथ [ पन्थ, पधिन] मार्ग रास्ता 'पंच किर देसित्ता' (हे १,८८), पंथम्म पहपरि (सुपा ५५० का ५४ प्रा १७३) ।
पुं
पुं
१ संन्यासियों एक जाति ( छाया १.[१५] १२२२ देखो पंडुर 'कैसा पंडुरवा हति तें' (उस १) पंडुरिअ ) वि [ पाण्डुरित] पाण्डुर वर्णपहुइय वाला बना हुआ (गावा १, २–पत्र २७) ।
६ सफेद, श्वेत; 'सेनं सिनं वलक्खं भवदाय पंडे घवलं च' (पाद्म गउड ) । ७ शिलाविशेष, पाएडुकम्बला नामक शिला (जं ४ इक [म्बलशिला] मेरु पर्वत के पाएडक वन के दक्षिण छोर पर स्थित एक शिला, जिस पर जिन देवों का जन्माभिषेक किया जाता है (जं ४) ।
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७४) कुण न [कुट्टन] मार पीटकर मुसाफिरों को लूटना (गाया १, १८) को ["कुछ] वही अर्थ (विचा १, १-पत्र ११) कोट्टि भी [हि] वही धर्मं 'से चोरसेरगावई गामधार्यं वा जाव पंचकोट्टिया का बचत (खामा १, १०) । पंग [पान्धक] एक जैन मुनि (खाया १, ५ धम्म ६ टी) ।
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पंताव सक [दे] ताड़न करना, मारना । पंतावे (पिंड ३२५) ।
पंति स्त्री [पङ्क्ति ] १ पंक्ति, श्रेणी, कतार (है १.२५ कुमाः कप्प २ सेना-विशेष जिसमें एक हाथी, एक रथ, तीन घोड़े और पाँच पदाती हाँ ऐसी सेना (पउम ४६४) पंत श्री [दे] वेणी -रचना (६२)। पंतियन [पक्ति] पंक्ति, शी: 'सराणि या सरपंतिवाणि वा सरसरपंतिवादि वां ( भाचा २, ३, ३, २ ) । स्त्री. 'पंतियाओ' (धरण) ।
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