________________
४९८ पाइअसद्दमहण्णवो
पओग-पंच पओग ' [प्रयोग] १ शब्द-योजना (भास पओरासि पुं [पयोराशि] समुद्र (सम्मत्त पंका स्त्री [पङ्का] चौथो नरक-भूमि (इक; ६३)। २ जीव का व्यापार, चेतन का १७४)।
कम्म ३,५)। प्रयत्न; 'उप्पानो दुविगप्पो पोगजणियो य | पओल पुं[पटोल] पटोल, परवर, परोरा पंकाभा स्त्री [पङ्काभा] चौथी नरक-पृथिवी विस्ससो चेव' (सम २५, ठा ३, १; सम्म (परण १)।
(उत्त ३६, १५८)। १२९; स ५२४)। ३ प्रेरणा (श्रा १४)। पओली स्त्री [प्रतोली] १ नगर के भीतर का | पंकावई स्त्री [पङ्कावती] पुष्कल नामक विजय ४ उपाय (ग्राचु १)। ५ जीव के प्रयत्न में | रास्ता (प्रण) । २ नगर का दरवाजा; 'गोउ। के पश्चिम तरफ की एक नदी (इक ज ४)। कारण-भूत मन प्रादि (ठा ३, ३)। ६ वाद- पोली ये' (पान सुपा २६१; श्रा १२ उप पंकिय वि [पङ्कित] पंक-युक्त, कीचवाला विवाद, शास्त्रार्थ (दसा ४)। कम्म न | पृ ८५; भवि)।
(भग ६, ३, भवि)। [कर्मन मन आदि की चेष्टा से प्रात्म- |
पओवद्राव देखो पन्जयथाव । परोवट्ठावेहि पंकिल वि [पङ्किल] कर्दमवाला (श्रा २८; प्रदेशों के साथ बँधनेवाला कर्म (राज)। ( पिका
गा ७६६; कप्पू: कुप्र १८७) । 'करण न [°करण] जीव के व्यापार द्वारा
पओवाह पुं[पयोवाह] मेघ, बादल (पउम पंकेरुह न [पङ्केरुह] कमल, पद्म (कप्पू: कुप्र होनेवाला किसी वस्तु का निर्माणः 'होइ उ । एगो जीववावारो तेण जं विवि
१४१)। ८,४६ से १, २४. सुर २, ८५)।
पंख पुंस्त्री [पक्ष १ पंख, पाँखि, पाँख, पक्ष पप्रोगकरणं तयं बहुहो' (विसे)। "किरिया
पओस सक [प्र+द्विप ] द्वेष करना, स्त्री [क्रिया] मन प्रादि की चेष्टा (ठा ३,
बैर करना । पोसइ (सुख १,१४)। (पि ७४ रायः पउम ११:११८श्रा १४)। ३)। फड्डय न ["स्पर्धक] मन आदि के पओस पु [दे. प्रदूप] प्रद्वेष, प्रकृष्ट द्वेष
| २ पनरह दिन, पखवाड़ा (राज)। सिण न व्यापार-स्थान की वृद्धि-द्वारा कर्म-परमाणों (ठा १० अंतः रायः भाव ४सुर १५,
[सन प्रासन-विशेष (राय)। में बढ़नेवाला रस (कम्मप २३)। "बंध ५८ पुप्फ ४६५, कम्म १; महानि ४, कूप | पंखि पुंस्त्री [पक्षिन] पंखी, चिड़िया, पक्षी ["बन्ध जीव-प्रयत्न द्वारा होनेवाला बन्धन १०; स ६६६)।
(श्रा १४) । स्त्री. °णी (पि ७४) । (भग १८, ३)। मइ स्त्री [मति] वाद- | पओस पुंन [प्रदोष] १ सन्ध्याकाल, दिन पंखुडिआ। स्त्री [दे] पंख, पत्र (कुप्र २६ विषयक-परिज्ञान (दसा ४)। संपया स्त्री और रात्रि का सन्धि-काल (से १, ३४; पंखुडी दे ६, ८)। [संपत् ] प्राचार्य का वाद-विषक कुमा)।२ वि. प्रभूत दोषों से युक्त (से २,
पंग सक [ग्रह ] ग्रहण करना। पंगइ (हे सामर्थ्य (ठा ८)। °सा प्र[प्रयोगेण जीव- ११)।
४, ४०६)। प्रयत्न से (पि ३६४)। पओहण (अप) देखो पवहण (भवि)।
पंगण न [प्राङ्गण] आँगन (कुप्र २५०)। पओज देखो पउंज प्र+ युज । पत्रोजए
पंगु वि [पङ्ग] पाद-विकल, खज, लंगड़ा, पओहर दु[पयोधर] १ स्तन, थन (पाम: (पव ६४)।
लूला, खोड़ा (पाम पि ३८०; पिंग)।
से १, २४, गउड; सुर २, ८५)। २ मेघ, पओजग वि [प्रयोजक] विनिश्चायक,
पंगुर सक [प्रा + वृ] ढकना, पाच्छादन
बादल (वजा १००)। ३ छन्द-विशेष (पिंग)। निर्णायक, गमक (धर्मसं १२२३)।
- करना । पंगुरइ (भवि)। संकृ. पंगुरिवि
पंक पुंन [पङ्क] १ कर्दम, कोचड़, कादा, कादो, (भवि)। पओ? देखो पउ? = प्रकोष्ठ (प्राप्र; औपः
कीच; 'धम्ममितंपि नो लग्गं पंकंव गयरणंगणे पि ८४)।
| पंगुरण न [प्रावरण] वस्त्र, कपड़ा (हे १,
(श्रा २८ हे १,३०४, ३५७, प्रासू २५); १७५, कुमाः गा ७८२)। पओत्त न [प्रतोत्र] प्रतोद, प्राजन-यष्टि, पैना।
'सुसइ व पंक' (वजा १३४) । २ पाप (सूम पंगुल विपिङ्गल] देखो पंगु (विपा १, १७ "धर पुं[धर] बैलगाड़ी हाँकनेवाला, बहल
२, २)। ३ असंयम, इन्द्रिय वगैरह का सं ७५, पा)। वान या गाड़ीवान (णाया १, १)।
अनिग्रह (निचू १) । आवलिआ स्त्रीच त्रि. ब. पिञ्जना पाँच.
पंच त्रि. ब. [पञ्चन्] पाँच, ५ (हे ३. पओद पु[प्रतोद] ऊपर देखो (प्रौप)। [वलिका] छन्द-विशेष (पिंग)। पभा
१२३, कप्प; कुमा)। उल न [कुल] पओप्पय पु[प्रपौत्रक] १ प्रपौत्र, पौत्र का स्त्री [प्रभा चौथी नरक-भूमि (ठा ७; इक)।
पंचायत (स २२२) । उलिय पुं[कुलिक पुत्र । २ प्रशिष्य का शिष्य; 'तेरण कालेणं 'बहुल वि [बहुल] १ कर्दम-प्रचुर (सम
पंचायत में बैठ कर विचार करनेवाला (स तेरणं समएणं विमलस्स अरहरो पनोप्पए ६०) । २ पाप-प्रचुर (सूत्र २, २) । ३ पुंन.
२२२)। कत्तिय पुं [कृत्तिक] भगवान् धम्मधासे नामं प्रणगारे (भग ११, ११- रत्नप्रभा नामक नरक-भूमि का प्रथम काण्ड
कुन्धुनाथ, जिनके पाँचों कल्याणक कृत्तिका पत्र ५४८)। (जीव ३) । य न [ज] कमल, पद्म (हे
नक्षत्र में हुए थे (ठा ५, १)। कप्प पुं पओप्पिय पुं[दे. प्रपौत्रिक] १ वंश- ३, २६; गउड; कुमा)। वई स्त्री [°वती]
[कल्प] श्रीभद्रबाहुस्वामि-कृत प्राचीन ग्रन्थ परम्परा। २ शिष्य-संतति, शिष्य-संतान नदी-विशेष (ठा २, ३-पत्र ८०)।
का नाम (पंचभा)। कल्लाणय न [कल्या(भग ११,११-पत्र ५४८ टी)। , | पंकज देखो पंक-य (सम्मत्त ११८)। णक] १ तोयंकर का च्यवन, जन्म, दीक्षा,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org