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प-पइट्ठवण
पाइअसहमहण्णवो
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न देखो
ण
१ प्राकृत भाषा में नकरादि सब शब्द णकारादि होते हैं, अर्थात् मादि के नकार के स्थान में नित्य या विकल्प से 'ण' होनेका व्याकरणों का सामान्य नियम है (प्राप्र २, ४२ दे ५, ६३ टीः हे १, २२६ षड् १, ३, ५३), और प्राकृत-साहित्य-ग्रन्थों में दोनों तरह के प्रयोग पाए जाते हैं । इससे ऐसे सब सब शब्द एकार के प्रकरण में मा जाने से यहाँ पर पुनरावृत्ति कर व्यर्थ में पुस्तक का कलेवर बढ़ाना उचित नहीं समझा गया है। पाठकगण णकार के प्रकरण में मादि के 'ण' के स्थान में सर्वत्र 'न' समझ लें । यही कारण है कि नकारादि शब्दों के भी प्रमाण कारादि शब्दों
में ही दिए गए हैं।
प [प] १ प्रोष्ठ-स्थानीय व्यज्जन वर्ण- ३ रक्षक; 'भूवई', 'तिप्रसगणवई', 'नरवई' पइच्छन्न पुं[प्रतिच्छन्न ] भूत-विशेष विशेष (प्राप)। २ पाप-त्यागः ‘पत्ति य (सुपा ३६; अजि १७ १६) । ४ श्रेष्ठ, (राज)। पाववज्जणे (प्रावम)। उत्तमः धरणिधरवई' (अजि १७ )। घर न
पइज्ज (अप) वि [पतित] गिरा हुया (पिंग)। पप्र[प्र] इन अर्थों का सूचक अव्यय-१ [गृह] ससुराल ( षड्)। वया, व्वया
पइज (अप) वि [प्राप्त] मिला हुआ, लब्ध प्रकर्षः 'पोस' ( से २, ११)। २ स्त्री [व्रता] पति-सेवा-परायण स्त्री,
(पिंग)। प्रारम्भ; 'परणमिम', 'पकरेइ (जं १; कुलवती स्त्री, सती (गा ४१७, सुर ६,६७)। भग १,१)। ३ उत्पत्ति। ४ ख्याति, | हर देखो घर (हे १, ४)।
पइजा देखो पइण्णा (भविः सण)। प्रसिद्धि । ५ व्यवहार । ६ चारों ओर से पइ देखो पडि (ठा २, १; कालः उवर २१)। पइट्ठ वि [दे] १ जिसने रस को जाना हो (निचू हे २, २१७)। ७ प्रत्रवरण, मूत्र | पइअ वि [दे] १ भत्सित, तिरस्कृत । २ | वह् । २ विरल । ३ पुं. मार्ग, रास्ता (दे (विसे ७८१)। ८ फिर-फिर (निचू ३ न. पहिया, रथ-चक्र (द ६, ६४)। १७)। ६ गुजरा हमा, विनष्टः 'पासुन' पइड देखो पग-प्रकृति से २.४५)। । पइटु देखो पगिट्ठ (सट्टि ५ टी)। (ठा ४, २-पत्र २१३ टी)। पइउं देखो पय = पच् ।
पट्ट वि [दे] प्रेषित, भेजा हुआ, 'जह प्रहपं वि [प्राच् ] पूर्व तरफ स्थित (भवि) ।। पइउवचरण न [प्रत्युपचरण] प्रत्युपचार,
कुमर मिच्छो अभयपइटुं जिरणस्स पडिबिब' पअंगम पुं[प्लवङ्गम] छन्द-विशेष (पिंग)।। प्रति-सेवा (रंभा)।
(संबोध ३)। पअंघ पुं [प्रजङ्घ] राक्षस-विशेष (से १२, पइऊल देखो पडिकूल (नाट-विक्र ४५) ।
पइट्ठ पुं [प्रतिष्ठ] भगवान् सुपार्श्वनाथ के पईवया देखो पइ-बया (णाया १, १६
पिता का नाम (सम १५०)। पअब्भ देखो पगब्भ % प्रगल्भ (प्राकृ ७८)।
पत्र २०४)।
पइट्ट वि [प्रविष्ट] जिसने प्रवेश किया हो पइ अप्रति१ अपेक्षा-सूचक (दसनि ३,
वह (स ४२६)। पइक (अप) देखो पाइक्क (पिंग)। १)। २ लक्ष्य, तरफ, मोरः ‘भरुयच्छं पइ |
पइव सक [प्रति-स्थापय् ] मूर्ति आदि चलियं (सम्मत्त १४१, धर्मवि ५६)। | पइकिदि देखो पडिकिदि (नाट-शकु ११६)।
को विधि-पूर्वक स्थापना करना । पटुवेज्जा पइ पुं [पति] १ घव, भर्ता, परवरिश करने- पइक देखो पाइक (पिंगः पि १९४)। (पंचा ७, ४३)। वाला (पान, गा १५६ कप्प)।२ मालिक। पइगिइ देखो पडिकिदि (स ६२५)। पइट्ठवण देखो पइट्ठावण (राज)।
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