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दोहि-धण
पाइअसहमहण्णवो
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दोहि वि [द्रोहिन द्रोह करनेवाला (भवि)। दोहित्ती स्त्री [दौहित्री] लड़की की लड़की, द्रवक (अप) न [दे. भय भय, डर, भीति
नतिनी (महा)।
(हे ४,४२२)। दोहिण्ण वि [द्विभिन्न] द्विखण्ड, जिसका
दोहूअ [दे] शव, मृतक, मुरदा (दे ५, द्रह ' [ह्रद] बड़ा जलाशय, सरोवर, झील दो टुकड़ा किया गया हो वह (प्राकृ ५१)। ४६)।
(हे २, ८०कुमा)। दोहित पं. दिौहित्र लड़की का लड़का, नाती | °होस देखो दोस= (दै); 'वजियराग बोसो दहि (अप) स्त्री [दृष्टि] नजर (हे ४, ४२२)। (दै ६, १०६; सुपा ३९४) । (कुप्र ३०)।
द्रोह देखो दोह - द्रोह (पि २६८)।
॥ इम सिरिपाइअसहमहण्णवम्मि दमाराइसहसंकलणो
पंचवीसइमो तरंगो समत्तो॥
धपुं[ध] दन्त-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष धंस सक [ध्वंसय] १ नाश करना। २ | धज्जुण धृष्टद्युम्न] राजा द्रुपद का (प्राप; प्रामा)।
दूर करना । धंसइ (सूत्र १, २, १)। धंसेइ | धटुंज्जुण्ण एक पुत्र (हे २, ६४ रणाया धअ देखो धव (गा २०)।
(सम ५०)।
। १, १६; कुमा; षड् पि २७८)। धंख पुं [ध्वाङक्ष] काक, कौमा (उप ८२३ |
धंसाड सक [मुच् त्याग करना, छोड़ना। | धड न [दे] घड़, गले से नीचे का शरीर पंचा ११)। धंसाडइ (हे ४, ६१)।
(सुपा २४१)। धंग पुं[दे] भौंरा, भ्रमर, भमरा (दे ५,५७)। धंसाडिअ वि [मुक्त परित्यक्त, छोड़ा हुआ धडहडिय न [दे] गर्जना, गरिव (सुपा धंत न [ध्वान्त] अन्धकार, अँधेरा (सुर १, (कुमा)। १२ करु ११)।
धंसाडिअ वि [दे] व्यपगत, नष्ट (दे ५, धण न [धन] १ वित्त, विभव, स्थावरधंत न [ध्वान्त] प्रज्ञान (देवेन्द्र १)।
जंगम सम्पत्ति (उत्त ६; सूम २, १, प्रासू धंत न [दे] अति, अतिशय, अत्यन्तः 'धंत- धगधग भक [धगधगाय् ] १ 'धग्-धम्' ५१; ७६; कुमा)। २ गणिम, परिम, मेय, पि सुप्रसमिद्धा' (पञ्च २६; विसे ३०१६; आवाज करना । २ जलना, अतिशय जलना।
या परिच्छेद्य द्रव्य-गिनती से और नाप आदि बृह १)। वकृ. धगधगंत (णाया १, १, पउम १२,
से क्रय-विक्रय योग्य पदार्थ (कप्प) । ३ पुं. धंत वि [ध्मात १ अग्नि में तपाया हुआ ५१, भवि)।
कुबेर, धन-पतिः 'सुध णो सिट्ठी धरणोव्व (णाया १, १; औपः पराण १, १७; विसे धगधगाइअ वि [धगधगायित] 'धग-धग्'
धणकलिओं' (सुपा ३१०) । ४ स्वनाम-ख्यात ३०२६; अजि १४)। २ शब्द-युक्त, शब्दित
एक श्रेष्ठी (उप ५५२) । ५ धन्य सार्थवाह का मावाजवाला (कप्प)। (पिंड)।
एक पुत्र (णाया १, १८)। इत्त, इल्ल धगधग्ग देखो धगधग। वकृ धगधग्गअधंधा श्री [दे] लज्जा, शरम (दे ५, ५७)।
वि [वत् ] धनी, धनवाला (कुप्र २४५; माण (पि ५५८)। धंधुक्कय न [धन्धुक्कय] गुजरात का एक
पि ५६५; संक्षि ३०)। "गिरि पुं["गिरि] धग्गीकय वि [दे] जलाया हुआ, अत्यन्त नगर, जो आज कल 'धंधूका' नाम से प्रसिद्ध
एक जैन महर्षि, जो वज्रस्वामी के पिता थे प्रदीपितः 'अग्गी धग्गीको ब्व पवणेणं (था है (सुपा ६५८; कुप्र २०)।
(कप्प; उप १४२ टी)। 'गुत्त [गुप्त धंधोलिय (मप) वि [भ्रमित] धुमाया हुआ
एक जैन मुनि (प्रावम)। गोव पुं[गोप] (सरण)। धज देखो धय = ध्वज (कुमा)।
धन्य सार्थवाह का एक पुत्र (णाया १,१८)। धंस प्रक [ध्वंस् ] नष्ट होना । धसइ, धसए धट्र देखो धिट्र (हे १, १३०; पउम ४६, डूढ पुं [य] एक जैनमुनि (कप्प)। । २६ कुमा १, ८२)।
। गंदि पुंस्त्री [ नन्दि] दुगुना देव-द्रव्य, 'देव
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