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देसिअ - दोभाय
पाइअसद्द महण्णवो
में गया हुआ (सुर १०. १६२ ) । सहा स्त्री दोइ देखो दो = द्विधा (बृह ३) । [सभा ] धर्मशाला (उप पृ ११५) । दोंर [दे] देखो दोबुर (षड् ) । देसिअ देखो ट्रेनसिअ; 'पडिक्कमे देसिश्रं सव्वं' दोकिरय वि [द्विक्रिय] एक ही समय में दो (पडि, श्रा ६) । क्रियाओं के अनुभव को माननेवाला (ठा ७) । देवि वि [देशितवत् ] जिसने उपदेश दोकर देखो दुक्कर (भवि ) । दिया हो वह ( सून १, ६, २४) । दोक्खर देसिलग देखो देसिअ = देश्य (बृह ३) । (बृह ४) । देसी स्त्री [देशी] भाषाविशेष, अत्यन्त प्राचीन प्राकृत भाषा का एक भेद (दे १, ४) । 'भामा स्त्री [°भाषा] वही अर्थ (गाया १ १. धौप) ।
[ द्वि-अक्षर ] षण्ड, नपुंसक
देसृण वि [देशोन] कुछ कम, अंश की कमीवाला (सम २ १०३ दं २८ ) । देस्स वि [दृश्य] १ देखने योग्य । २ देखने
को शक्य ( स १६९) ।
देह देखो देक्ख । देहई, देहए (उत्त १९ ६ पि ६६) । वकृ. देहमाण (भग ६, ३३) । देह पुंन [देह] १ शरीर, काय (जी २८ कुप्र १५३ प्रासू १५) । २ पुं. पिशाच- विशेष (इ) पण १) । रयन [रत ] मैथुन ( वा १०८ ) ।
देहं बलिया स्त्री [देहबलिका ] भिक्षावृत्ति, भीख की प्राजीविका (खाया १, १६ – पत्र १६) ।
देहणी स्त्री [दे] पंक, कर्दम, कादा, काँदो (दे ५, ४८ ) । देहरय (अप) न [देवगृहक] देव-मन्दिर
(वजा १०८ ) ।
देहली स्त्री [देहली] चौखट, द्वार के नीचे की लकड़ी (गा ५२५ दे १, ९५; कुप्र १६३) । देहि [देहिन] श्रात्मा, जीव ( स १६५ ) । देहुर (अप) न [देवकुल] देव-स्थान, मन्दिर
(भवि ) ।
दो [द्विधा ] दो प्रकार से, दो तरह (सुपा २३३ ३१२) ।
दो त्रि. ब. [ द्वि] दो, उभय, युग्म (हे १; ε४) ।
दो Î [ दोस् ] हाथ, बाहु (विक्र ११३० रंभा कप्पू) ।
दो [द्विपदी] छन्द - विशेष (पिंग ) । दोआलपुं [दे] वृषभ, बैल (दे ५, ४९) ।
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दोखंड देखो दुखंड (भवि ) । दोखं डअ वि [द्विखण्डित ] जिसके दो टुकड़े किए गए हों वह (भवि ) । दोगंछि वि [जुगुप्सिन्] घृणा करनेवाला (पि ७४) ।
दोगञ्च न [दौर्गत्य] १ दुर्गति, दुर्दशा (पंचत्र ४) । २ दारिद्रय, निर्धनता (सुपा २३० ) । दोगुंछि देखो दोग॑छि (पि २१५) । दोदय पुंन [दोगुन्द] एक देव-विमान (देवेन्द्र १४५) ।
दोगुंदुय पुं [दौगुन्दक] उत्तम-जातीय देवविशेष (सुपा ३३) । दोग्ग न [ दे] युग्म, युगल (दे ५, ४१: षड्)। दोग्गइ देखो दुग्गइ (सुर ८, १११) । कर
[र] दुर्गंति-जनक (पउम ७३, १०) । दोग्गश्च देखो दोगश्च (गा ७६) ।
घ) [ ] हाथी, हस्ती ( पि ४३६, दोग्धो दोषट्ट
४६१) । दोचूड पु' [द्विचूड] विद्याधर वंश के एक राजा का नाम ( पउम ५, ४५ ) । दोश्च वि [ द्वितीय] दूसरा (सम २, ८ विपा १, २) ।
दोश्च न [दोत्य] द्वतपन, दूत- कर्म ( खाया १, ८गा८४) ।
दोश्चं अ [ द्विस् ] दो बार दो वक्तः एवं
च निसामित्ता दोच्च तच्वं समुल्लवंतस्स (सुर २, २६) ।
दोचंग न [द्वितीयाङ्ग] १ दूसरा भंग । २ पकाया हुआ शाक (बृह १) । ३ तीमन, कढ़ी (प्रोष २६७ भा) । दोजीह पु' [द्विजिहव] १ दुर्जन । २ साँप (सुर १, २०) ।
दोझ वि [दोहा ] दोहने योग्य ( चाचा २, ४, २) ।
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दोण ' [ द्रोण] १ धनुर्वेद के एक सुप्रसिद्ध श्राचार्य, जो पाण्डव और कौरवों के गुरू थे ( गाया १. १६ वेणी १०४ ) । २ एक प्रकार का परिमाण (जो २) । रहन ["मुख] नगर, जल और स्थल के मार्ग वाला शहर (पह १, ३ कप्पः श्रौर)। नेह पुं [*मेघ] मेघ - विशेष, जिसकी धारा से बड़ी कलशी भर जाय वह वर्षा (विसे १४५८ ) । "सुया स्त्री [सुता ] लक्ष्मण की स्त्री का नाम, विशल्या (पउम ६४, ४४ ) । दोण पुं [दे] १ श्रयुक्त, गाँद का मुखिया २ हालिक, हलवाह, हल जोतनेवाला, हरवारा (दे ५, ५१) ।
दोणका स्त्री [दे] सरघा, मधुमक्खी (दे ५, ५१) ।
दोणी स्त्री [द्रोणी] १ नौका, छोटा जहाज
(ह १, १ दे २, ४७ घम्म १२ टी ) । २ पानी का बड़ा कुँडा (अरण कुत्र ४४१ ) । दोत्तडी स्त्री [दुस्तटी] दुष्ट नदी, 'एकत्तो सद्द लो अन्नत्तो दोत्तडी वियडा (उप ५३० सुपा ४६३) ।
दोत्थ न [दौस्स्थ्य ] दुस्स्थता, दुर्दशा, दुर्गंति
( ४६ ७) ।
दोद्दाण वि [दुर्दान ] दुःख से देने योग्य (effer x) 1 दोदिअ पुं [दे] -कूपः चमड़े का बना हुश्रा भाजन- विशेष (दे ५, ४९) ।
दो वि [ दो ] दोहन कर्ता ( दस १, १ टी ) । दोधअ न [ दोधक ] छन्द - विशेष दोधक (पिंग)। }
दोधार पुं [द्विधाकार ] द्विधाकरण, दो भाग करना (ठा ५, ३ पत्र ३४६ ) ।
दोनिकम वि [दुर्निक्रम] म्रव्यन्त कष्ट से
चलने योग्य (भग ७, ६ – पत्र ३०५ ) । दोबुर पुं [दें] तुम्बुरु, स्वर्ग-गायक (षड् ) । दोब्बलिय देखो दुब्बलिय (माचा २, ३, २, ३) ।
दोब्बल्ल न [दौर्बल्य] दुर्बलता ( प २८७ कात्र ८५) ।
दोभाय वि [द्विभाग ] दो भागवाला, दो खण्डवाला (उप १४७ टी) ।
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