________________
दुरणुचर-दुरोदर पाइअसहमहण्णवो
४७३ दुरणुचर वि [दुरनुचर] जिसका अनुष्ठान दुरायार वि [दुराचार] १ दुराचारी, दुष्ट दुरुत्त न [दुरुक्त] दुष्टोक्ति, दुष्ट वचन कठिनता से हो सके वह, दुष्करः ‘एसो जईण | आचरणवाला (सुर २, १९३, १२, २२६ (साध १०१) धम्मो दुरणुचरो मंदसत्ताण' (सर १४, ७५; वेणी १७१)। २ . दुष्ट माचरण (भवि)Mदुरुत्त वि[द्विरुक्त] १ दो बार कहा हुमा, ठा ५, १-पत्र २६६; गाया १,१)। | दुरायारि वि [दुराचारिन्] ऊपर देखो |
पुनरुक्त । २ दो बार कहने योग्य (रंभा)। दुरणपाल वि [दुरनुपाल] जिसका पालन | (भवि)।। कष्ट-साध्य हो (उत्त २३)।। दुराराह वि [दुराराध] जिसका पाराधन
दुरुत्तर वि [दुरुत्तर] १ दुस्तर, दुर्लघ्य दुरप्प पुं [दुरात्मन्] दुष्ट
(सूप १, ३, २) । २ न. दुष्ट उत्तर, अयोग्य आत्मा, दुर्जन | दु:ख से हो सके वह (कप्प) ।।
जवाब (हे १, १४)।(उव; महा)।
दुरारोह वि[दुरारोह जिस पर दुःख से चढ़ा दुरभास ( [दुरभ्यास] खराब प्रादत | | जा सके वह, दुरध्यास (उत्त २३, गा ४६८)M
दुरुत्तर वि [द्वि-उत्तर] दो से अधिक । सय
वि [ शततम] एक सौ दो वां, १०२ वाँ (सुपा १६७)। दुरालोअपुं[दे] तिमिर, अन्धकार (दे ५,
(पउम १०२, २०४)। दुरभि देखो दुब्भि (अणुः पउम २६,५०, १०२, ४४पण्ह २, ५ प्राचा) | दुरालोअ वि [दुरालोक] जो दुःख से देखा
दुरुत्तार वि [दुरुत्तार] दुःख से पार करने
योग्य (सुपा २६७) दुरभिगम वि [दुरभिगम १ जहाँ दुःख से जा सके, देखने को अशक्य (से ४, ८६
| दुरुद्धर वि [दुरुद्धर] जिसका उद्धार कठिनाई गमन हो सके वह, कष्ट-गम्य (ठा ३, ४)। कुमा) ।
से हो वह (सूत्र १, २, २)। २ दुर्बोध, कष्ट से जो जाना जा सके (राज) दुरालोयण वि [दुरालोकन] ऊपर देखो,
दुरवणीय वि [दुरुपनीत जिसका उपनय दुरमञ्च पुं [दुरमात्य] दुष्ट मंत्री (कुप्र 'दुरालोयणो दुम्मुहो रत्तनेत्तों' (भवि) | दुरावह वि [दुरावह] दुर्धर, दुर्वह (पउम
दूषित हो ऐसा (उदाहरण) (दसनि १)/ २६१)
दुरुवयार वि [दुरुपचार] जिसका उपचार दुरवगम बि [दुरवगम दुर्बोध (कुप्र ४८) M ६८, ६) दुरवगम्म देखो दुरवगम (चेइय २५९)। दुरास वि [दुराश] १ दुष्ट आशावाला।
कष्ट-साध्य हो वह (तंदु)। २ खराब इच्छावाला (भविः संक्षि १६) ।
दुरुव्वा स्त्री [दूर्वा] तृण-विशेष, दूब (स दुरवगाह वि [दुरवगाह दुष्प्रवेश, जहाँ | प्रवेश करना कठिन हो वह (हे १, २६, सम दुरासय वि [दुराशय] दुष्ट प्राशयवाला
१२४ उप ३१८)। (सुपा १३१) ।
दुरुह सक [आ + रुह ] आरूढ होना, १४५)
चढ़ना । दुरुहइ (पि ११८ १३६)। वकृ. दुरासय वि [दुराश्रय] दुःख से जिसका दुरस वि [दूरस] खराब स्वादवाला (भगः | माश्रय किया जा सके वह, पाश्रय करने को
दुरुहमाण (प्राचा २, ३, १) । संकृ. णाया १, १२; ठा८)। अशक्य (पण्ह १, ३, उत्त १)
दुरुहित्ता, दुरुहित्ताणं, दुरुहेत्ता (भगः दुरसण पुं [द्विरसन] १ सर्प, साँप । २ ।
महा; पि ५८३: ४८२)।दुर्जन, दुष्ट मनुष्य (सुपा ५९७) दुरासय वि [दुरासद] १ दुष्प्राप्य, दुर्लभ ।
दुरूढ वि [आरूढ] अधिरूद, ऊपर चढ़ा दुरहि देखो दुरभि (उप ७२८ टीः तंदु)।। २ दुर्जय । ३ दुःसह (दस २, ६ राज)
हुमा (णाया १, १, २, १; प्रौप) दुरहिगम देखो दुरभिगम (सम १४५ विसे | दुरिअ न [दुरित] पाप (पाम; सुपा २४३) Mदरूववि १०९)
दुरिअ न [दे] द्रुत, शीघ्र, जल्दी (षड्) कुडोल (ठा ८श्रा १६)। २ मलमूत्र का दुरहिगम्म वि [दुरभिगम्य] दुःख से जानने
दुरिआरि स्त्री [दुरितारि] भगवान् संभवनाथ कर्दम (सूत्रकृ० चूर्णी गा० ३१७) ।। योग्य, दुबोध 'अत्थगई विनयवायगहण- | को शासनदेवी (संति )।
दुरूव विदूरूप] पशुचि प्रादि खराब वस्तु लीणा दुरहिगम्मा' (सम्म १६१)। दुरिक्ख वि [दुरीक्ष] देखने को अशक्य (सूत्र १, ५, १, २०)। दुरहियास वि [दुरध्यास, दुरधिसह] (कुमा)
दुरूह देखो दुरुह । संकृ. दुरूहित्तु, दुरूदुस्सह, जो कष्ट से सहन किया जा सके | दुरिट्र न [दुरिष्ट] खराब नक्षत्र (दसनि १, हिया (सूत्र १, ५, २, १५); 'जहा प्रासा(णाया १, १, प्राचा: उप १०३१ टी, स १०५) ।
विणि नावं जाइअंधो दुरूहिया' (सूत्र १, दुरिट्ट न [दुरिष्ट] खराब यजन-याग (दसनि । ११, ३०)। दुराणण पुं [दुरानन] विद्याधर वंश का एक १,१०५)
दुरूहण न [आरोहण] अधिरोहण, ऊपर राजा (पउम ५, ४५)
दुरुक्क वि [दे] थोड़ा पीसा हुआ, ठीक ठीक | चढ़ बैठना (स ५१) ।। दुराणुवत्त वि [दुरनुवर्त] जिसका अनुवर्तन नहीं पीसा हुआ (प्राचा २, १, ८) । दुरेह पुं [द्विरेफ] भ्रमर, भौंरा (पान हे कष्ट-साध्य हो वह (वव ३)
दुरुदुल्ल सक [भ्रम्] १ भ्रमण करना, १,६४) दुराय न [द्विरात्र] दो रात (ठा ५, २ | घूमना। २ गँवाई हुई चीज की खोज में | दुरोअर न [दुरोदर] जुमा, घृत (पाम) कस) ।
घूमना । वकृ. दुरुदुलंत (सुर १५, २१२) दुरोदर देखो दुरोअर (कर्पूर २५) ६०
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org