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पाइअसद्दमहण्णवो
दिअलिअ-दिण
दिज्जंत देखो दादा
दिअलिअ वि [दे] मूर्ख, अज्ञानी (दे ५, ३९)M दिगु पु[द्विगु] व्याकरण-प्रसिद्ध एक समास (सूत्र २,२) कीव पुं [क्लीब नपुंसकदिअली स्त्री [दे] स्थूणा, खम्भा, खूटी (अणुः पि २६८)
विशेष (निचू ४) जुद्ध न [युद्ध] (पान) | दिग्गु देखो दिगु (अणु १४७)
युद्ध-विशेष, पाँख की स्थिरता की लड़ाई दिअस पृन [दिवस दिन, दिवस (गउडा दिग्ध देखो दीह (हे २,६१; प्रातः संक्षि | (पउम ४,४४)। 'बंध पुं[बन्ध नजर पि २६४) कर [कर] सूर्य, रवि (से | १७; स्वप्न ६८ विसे ३४६७) गंगूल, बाँधना (उप ७२८ टी), म, मंत वि १,५३) 'नाह [ नाथ] सूर्य, सूरज
[मत् ] प्रशस्त दृष्टिवाला, सम्यग-दर्शी (पउम १४, ८३)यर देखो कर (पास)।
(सूत्र १, ४, १माचा)राय पुं[राग] देखो दिवस ।
| दिग्घिआ स्त्री [दीर्घिका] वापी, सीढ़ीवाला १ दर्शन-राग, अपने धर्म पर अनुराग (धर्म दिअसिअ न [दे] १ सदा-भोजन (दे ५,
कूप-विशेष (स्वप्न ५६, विक्र १३६) । २)। २ चाक्षुष-स्नेह (अभि ७४) °ल्ल वि ४०)। २ अनुदिन, प्रतिदिन (दे ५, ४०,
दिच्छा स्त्री [दित्सा] देने की इच्छा (कुप्र ['मत् ] प्रशस्त दृष्टिवाला (पउम २८, पान) २६६)
२२)M°वाय पू[पात १ नजर डालना दिअह देखो दिअस (प्राप्र; पा) । दिज देखो दिअ = द्विज (कुमा)।
(से १०, ५)। २ बारहवाँ जैन अंग-ग्रंथ (ठा दिअहुत्त न [दे] पूर्वाह का भोजन, दुपहर दिज वि [देय १ देने योग्य । २ जो दिया १०–पत्र ४६१)M वाय [वाद] का भोजन (दे ५, ४०)
जा सके । ३ पुंन. कर-विशेष (विपा १, १) बारहवाँ जैन अंग-ग्रन्थ (ठा १% सम १) दिआ अ [दिवा] दिन, दिवस (पान गा
"विपरिआसिआ स्त्री [विपर्यासिका, दिज्जमाण सादा-दा। ६६; सम १६; पउम २६, २६) "णिस
"सिता] मति भ्रम (सम २५) "विस पुं न ["निश] दिन-रात, सदा (पिंग), 'राअ
दिट्ठ वि [दिष्ट] कथित प्रतिपादित, कहा ["विष] जिसकी दृष्टि में विष हो ऐसा सर्प न [रात्र] दिन-रान, सर्वदा (सुपा ३१८)। हुआ (उप ७६८ टी)
(से ४, ५०) सूल न [शूल] नेत्र का देखो दिवा ।।
दिट्ठ वि [दृष्ट] १ देखा हुआ, विलोकित (ठा रोग-विशेष (णाया १, १३-पत्र १८१)। दिआहम पु [दे] भास पक्षी (दे ५, ३६)
४, ४ स्वप्न २८ प्रासू १११)। २ अभिमत | दिदि स्त्री [दृष्टि] तारा, मित्रा प्रादि योग-दृष्टि दिआइ देखो दुआइ (पान) (अणु)। ३ ज्ञात, प्रमाण से जाना हुआ (उप
(सिरि ६२३)
८८२, बह १)। ४ न. दर्शन, विलोकन दिदिआ प्र[दिष्टया] इन पर्थो का सूचक दिइ स्त्री [इति] मशक, चमड़े का जल-पात्र
(ठा २, १) पाढि वि [पाठिन् चरक(अनु ५; कुप्र १४६) ।
अव्यय-१ मंगल । २ हर्ष, आनन्द, खुशी। सुश्रुतादि का जानकार (मोघ ७४) दिउण वि [द्विगुण] दूना, दुगुना (पि २६८)
३ भाग्य से (हे २,१०४, स्वप्न १६ अभि 'लाभिय [°लाभिक दृष्ट वस्तु को ही दित देखो दादा
९५; कुप्र ६५) दिक्काण पुं [द्रेष्काण मेष प्रादि लग्नों का
ग्रहण करनेवाला जैन साधु (पएह २, १)
दिट्ठिआ स्त्री [दृष्टिका, जा] १ क्रियादसवाँ हिस्सा (राज)
दिट न दृिष्ट] प्रत्यक्ष या अनुमान प्रमाण | विशेष--दर्शन के लिए गमन । २ दर्शन से दिक्ख सक [दीक्ष] दीक्षा देना, प्रव्रज्या
से जानने योग्य वस्तु (धर्म सं ५१८६५१९)M कर्म का उदय होना (ठा २,१-पत्र ४०) देना, संन्यास देना, शिष्य करना। दिक्खे
साहम्मव न [साधर्म्यवत् ] अनुमान का ||
दिट्ठीआ स्त्री [दृष्टीया] ऊपर देखो (नव १८)। (उव) । वकृ. दिक्खंत (सुपा ५२६)
एक भेद (अणु २१२)। दिक्ख देखो देवख । दिक्खइ (पि ६६) 10 दिटुंत पुं[दृष्टान्त] उदाहरण, निदर्शन | दिट्टीवाओबएसिआ स्त्री [दृष्टिवादो
पदेशिकी] संज्ञा-विशेष (दं ३३)।दिक्खा स्त्री [दीक्षा] १ प्रवज्या देना, दीक्षण (ठा ४, ४; महा)
दितुल्लय वि [दृष्ट] देखा हुअा, निरीक्षित (मोघ ७ भा)। २ प्रव्रज्या, संन्यास (धर्म २) दिदुतिअ वि [द्राान्तिक] १ जिस पर दिक्खि वि [दीक्षित] जिसको प्रव्रज्या दी
उदाहरण दिया गया हो वह (विसे १००५
(प्रावम)।
दिड्ढ़। देखो दढ (नाट-मालती १७; से गई हो वह, जो साधु बनाया गया हो वह टी)। २ न. अभिनय-विशेष (ठा ४, ४
दिढ १, १४ स्वप्न २०५; प्रासू ६२) । (उव)। पत्र २८५)
दिण पुन [दिन] दिवस (सुपा ५६ दं २७ दिगंछा देखो दिगिंछा (पि ७४) दिव्व देखो दक्ख = दृश् ।।
जी ३५; प्रासू ६५), इंद पुं[इन्द्र] दिगबर देखो दिअंबर (इक; आवम)। दिहि स्त्री [दृष्टि] १ नेत्र, पाँख, नजर (ठा सूर्य, रवि (सण) कय पुं [कृत् ] दिगिया स्त्री [जिघत्सा] बुभुक्षा, भूख (सम ३, १; प्रासू १६७ कुमा)। २ दर्शन, मत सूर्य, रवि (राज) कर पु[कर] सूर्य,
४०, विसे २५६४ उत्त २; पाचू) ।। (पएण १६ ठा ४, १)। ३ दर्शन, भव- सूरज (सुपा ३१२), 'नाह पुं [नाथ] दिागच्छ सक [जिघत्स] खाने को चाहना । लोकन, निरीक्षण (अणु)। ४ बुद्धि, मति सूर्य, रवि (महा) बंधु [ बन्धु वकृ. दिगिच्छंत (माचाः पि ५५५) । (सम २५; उत्त २)। ५ विवेक, विचार सूर्य, रवि (पुप्फ ३७) मणि पु[मणि]
दिदुिआ अष्टयामानन्द, खुशी।
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