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दीव-दीहोकर पाइअसहमहण्णवो
४६५ कुमार पु[कुमार] एक देव-जाति (भग हरिणों के आकर्षण करने के लिए रखी जाती | दर्शी (पउम २६, २२, ३१, १०६)/ 'बाहु १६, १३) ण्णु वि [ज्ञ] द्वीप के मार्ग है (दे ५, ५३)। ३ व्याघ-संबन्धी पिंजड़े | पुं[बाहु] १ भरत-क्षेत्र में होनेवाला तीसरा का जानकार (उप ५६५) सागरपन्नत्ति | में रखा हुआ तितिर पक्षी (रणाया १, १७- वासुदेव (सम १५४)। २ भगवान् चन्द्रप्रभ स्त्री [°सागरप्रज्ञप्नि] जैन ग्रन्थ-विशेष, जिसमें | पत्र २३२)
का पूर्व जन्मीय नाम (सम १५१) भद्द द्वीपों और समुद्रों का वर्णन है (ठा ३, २- दीविआ स्त्री [दीपिका] छोटा दिया, लघु | पुं[भद्र] एक जैन मुनि (कप्प), मद्ध पत्र १२६) प्रदीप (जीव ३)।
वि [व] लम्बा रास्तावाला (पाया १, दीव पुं[द्वीप सौराष्ट्र का एक नगर, दीव दीविञ्चग वि[प्या द्वीप में उप्पन्न, द्वीप में | १८; ठा २,१५,२-पत्र २४०) मद्ध (पव १११) । पैदा हुआ (णाया १, ११-पत्र १७१) ।
वि [द्ध] दीर्घकाल से गम्य (ठा ५,२-पत्र दीव दे] वृकलास, गिरगिट (दे ५, नीली
दीवी (अप) देखो देवी (रंभा)। बोर्ड
२४०) 'माउ न [युप् ] लम्बा आयुष्य ४१) ।
(ठा १०)। रत्त, "राय पुन ["रात्र] १ दीवअ ' [दीपक] १ प्रदीप, दिया, चिराग,
| दीवी स्त्री [दीपिका] लघु प्रदीप, छोटा दिया | दीवि ब्व तीइ बुद्धी' (श्रा १६) ।
लम्बी रात । २ बहु रात्रिवाला, चिर-काल पालोक (गा २२२: महा)। २ वि. दीपक,
(संधिः १७ राज) राय [राज एक प्रकाशक, शोभा-कारक (कुमा)। ३ न. छन्ददीवूसव पुं[दीपोत्सव] कातिक बदी अमावस,
राजा (महा), लोग पुं [लोक] वनस्पति विशेष (अजि २६) दीवाली, दीपावली (ती १९)।
का जीव (प्राचा)। लोगसत्थ न [लोकदीवंग पुदीपाङ्ग] प्रदीप का काम देनेवाले दीसंत ।
.४ देखो दक्ख = दृश् ।। शरू] अग्नि, वह्नि (प्राचा)वेयड्ढ j कल्पवृक्ष की एक जाति (ठा १०)
["वताव्य] स्वनाम-ख्यात पर्वत (ठा २, दीवग देखो दीवअ = दीपक (था ६पावम) दीह वि[दीघे] १ प्रायत, लम्बा (ठा ४,
३–पत्र ६९) सुत्त न [सूत्र १ बड़ा दीवड [दे] जलजन्तु-विशेष, ‘फुरतसिप्पि| २ प्रार; कुमा)। २ पुं. दो मात्रावाला स्वर
सूता (निचू ५)। २ पालस्य, ‘मा कुरणसु संपुडं भमंतभीमदीवर्ड' (सुर १०, १८८)। (पिंग)! ३ कोशल देश का एक राजा (उप
दीहसुत्तं परकजं सीयलं परिगणंतो' (पउम दीवण न [दीपन प्रकाशन (मोघ ७४)।
पू ५८) काय [काय] अग्निकाय ३०, ६)1 °सेण पु[सेन] १ अनुत्तरदीवणा स्त्री [दीपना] प्रकाशः 'थुप्रो संतगुण
(माचा०मध्य०१-१-४) कालिगी स्त्री देवलोक-गामी मुनि-विशेष (अनु २) । २ इस दीवणाहिं (स ६७५) । [कालिकी] संज्ञा-विशेष, बुद्धि-विशेष, जिससे
अवसर्पिणी काल में उत्पन्न ऐरवत क्षेत्र के सुदोघं भूतकाल की बातों का स्मरण और दीवणिज वि [दीपनीय] १ जठराग्नि को
पाठवें जिन-देव (पव ७) उ, उय वि सुदीर्घ भविष्य का विचार किया जा सकता बढ़ानेवाला (णाया १, १-पत्र १६)।२
[युष , "युक] लम्बी उम्रवाला, बड़ी है (दं ३२, विसे ५०८)। कालिय वि | शोभायमान, देदीप्यमान (पएण १७)।
आयुवाला, चिरंजीवी (हे १, २० ठा ३, १; [कालिक] १ दीर्घ काल से उत्पन्न, चिरंतना दीवयं देखो दीव - दिव् ।
पउम १४, ३०) सण न [सन] शय्या 'दोहकालिएक रोगातकणं' (ठा ३, १)१२ दीवयंत देखो दीव = दीपय ।
(जं १) दीर्घकाल-सम्बन्धी (प्रावम) जत्ता स्त्री दीवायण पुं[द्वीपायन, द्वैपायन] एक
दीह देखो दिअह (कुमा) [ यात्रा] १ लम्बी सफर। २ मरण, मौत प्राचीन ऋषि, जिसने द्वारका नगरी जलाने
दीहंध वि [दिवसान्ध] दिन को देखने में (स ७२६)°डक वि [दष्ट] जिसको का निदान किया था, और जो अागामी
असमर्थ; रत्तिधा दोहंधा' (प्रासू १७६)। सॉप ने काटा हो वह (निचू १) "णिद्दा उत्सर्पिणी काल में भरत-क्षेत्र में एक तीर्थंकर
दीहजीह [दे] शंख (दे ५, ४१) स्त्री ["निद्रा] मरण, मौत (राज) दंत होगा (अंत १५; सम १५४० कुप्र ६३)।
पुं[°दन्त] १ भारतवर्ष का एक भावी चक्र.
दीपि? देखो दीह-पट्ट (सिरि ६०५)।दीविद्वीपिन् व्याघ्र की एक जाति,
वर्ती राजा (सम १५४)। २ एक जैनमुनि दीहर देखो दीह = दीर्घ (हे २, १७१; सुर दीविअ चीता (गा ७६१ णाया १,१
(अंत) 'दसि वि [दर्शिन] दूरदर्शी, २, २१८ प्रासू ११३)4 °च्छ वि [°क्ष पत्र ६५; पएह १, १)
दूरन्देशी (सुर ३, ३; सं ३२)। दसा लम्बी पाखवाला, बड़े नेत्रवाला (सुपा दीविअ वि [दीपित] १ जलाया हुआ (पउम
श्री. ब. [°दशा] जैन ग्रंथ-विशेष (ठा १०) १४७)। २२, १७)। २ प्रकाशित (मोघ)।
"दिदि वि [दृष्टि] १ दूरदर्शी, दूरन्देशी। दीहरिय वि [दीपित] लम्बा किया हुआ दीविअंग [दीपिकाङ्ग] कल्प-वृक्ष की एक २ श्री. दीर्घ-दर्शिता (धर्म १) पट्ठ पुंग (गउड)। जाति जो अन्धकार को दूर करता है (पउम | [पृष्ठ] १ सर्प, साँप (उप पृ २२)। २ दीहिया स्त्री [दीर्घिका] वापी, जलाशय-विशेष १०२, १२५)।
यवराज का एक मन्त्री (बृह १) पास पु (सुर १, ६३; कप्पू)। दीविआ स्त्री [दे] १ उपदेहिका, क्षुद्र कीट- | [पार्थ] ऐरवत क्षेत्र के सोलहवें भावी जिन- दीहीकर सक [दी/ + कृ] लम्बा करना। विशेष । २ व्याष की हरिणी, जो दूसरे । देव (पव ७) पेहि वि [प्रेक्षिन] दूर- दोहीकरेंति (भग)।
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