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दिस्स
४६४ पाइअसद्दमण्णवो
दिव्व-दीव न [ मानुष] देव और मनुष्य संबन्धी हकी- यत्ता (उप ७६८ टी), जत्तिय देखो कतों का जिसमें वर्णन हो ऐसी कथा-वस्तु यत्तिय (उवा), 'डाह ' [दाह ]
दिस्सं देखो दक्ख = दृश । (स २)
दिशाओं में होनेवाला एक तरह का प्रकाश,
जिसमें नीचे अन्धकार और ऊपर प्रकाश दिव्य न [दिव्य] १ तेला, तीन दिन का
दिस्समाण लगातार उपवास (संबोध ५८)। २ वि. देव
दीखता है; यह भावी उपद्रवों का सूचक है दिस्समाण देखो दिससम्बन्धी; 'तिरिया मण्या य दिव्वगा, उव- (भग ३, ७) गुवाय पु [अनुपात] | दिस्सा देखो दक्ख = दृश् । सग्गा तिविहाहियासिया' (सूत्र १, २, २,
दिशा का अनुसरण (परण ३) 'दंति पुंदिहा प [द्विधा] दो प्रकार (हे १, ६७)। ["दन्तिन्] दिग्-हस्ती (सुपा ४८) दाह दिहि स्त्री [धृति धैर्य, धीरज (हे २, १३१
कुमा)4 °म वि [ मत् ] धैर्य-शाली, देखो डाह (भग ३,७)"दि पुं[ आदि] | दिव्व देखो दइव (सुपा १६१) ।।
मेरु पर्वत (सुज्ज ५) देवया स्त्री [°देवता] धीर (कुमा) दिव्व देखो देवः 'अमोहं दिव्वदंसणंति' (कुप्र
दिशा की अधिष्ठात्री देवी (रंभा)'पोक्खि | दीअ देखो दीव = दीप (गा १३५, ५४७) ।। ११२) IV.
पुं [प्रोक्षिन्] एक प्रकार का वानप्रस्थ दीअअ देखो दीवय (गा १३५) ।। दिव्वाग पु [दिव्याक सर्प की एक जाति
(औप) भाअ ' [भाग] दिग्भाग दीअमाण देखो दादा। (पएण १)
(भगः प्रौपः कप्पू: विपा १, १) मत्त न | दीण वि [दीन] १ रंक, गरीब (प्रासू २३)। दिव्वासा स्त्री [दे] चामुण्डा, देवी-विशेष
["मात्र] प्रत्यल्प, संक्षिप्त (उप ७४६) २ दुःखित, दुःस्थ (णाया १,१)। ३ हीन, (दे ५, ३६)
'मोह पु.["मोह] दिशा का भ्रम (निचू | न्यून (ठा ४, २)। ४ शोक ग्रस्त, शोकातुर दिस सक [दिश् ] १ कहना। २ प्रतिपादन | १६) यत्ता स्त्री [ यात्रा] देशाटन, मुसा- (विपा १, २; भग)। करना । दिसइ (भवि) । कवकृ. दिस्समाण फिरी (स १६५) यत्तिय वि[यात्रिकदीणार दीनार] सोने का एक सिक्का (राज)
दिशामों में फिरनेवाला (उवा). लोय पु. (कप्पः उप पृ९४५६७ टी)। दिस पुं[दिश] एक देव-विमान (देवेन्द्र [ आलोक] दिशा का प्रकाश (विपा १,दीपक (अप) पूंन [दीपक छन्द-विशेष
६) वह पुं [पथ] दिशा-रूप मार्ग दीपक (पिंग) दिस वि [दिश्य] दिशा में उत्पन्न (से ६, (पउम २, १००)५ °वाल पुं [पाल] दीव देखो दिव = दिव । वकृ. 'अखेहि कुसु५०)।
दिकपाल, दिशा का अधिपति (स ३६६)M लेहि दीवयं (सूस १, २, २, २३)। दिसा स्त्री [दृषद् ] पत्थर, पाषाण (षड्) "वेरमण न [विरमण] जैन गृहस्थ को दीव सक[दीपय ]१दीपाना, शोभाना। दिसाइ देखो दिसा-दि (सुज्ज ५ टी-पत्र
पालने का एक नियम-दिशा में जाने-माने २जलाना। ३ तेज करना। ४ प्रकट करना। ७८)
का परिमाण करना (धर्म २) व्वय न ५ निवेदन करना। दीवइ (प्रोष ४३४)। दिसा. श्री [दिश ] १दिशा, पूर्व प्रादि
[व्रत] देखो वेरमण (प्रौप)। "सोस्थिय दीवेइ (महा)। वकृ. दीवयंत (कप्प)। दिसि : दस दिशाएँ (गउड; प्रासू ११३
पुं [स्वस्तिक] स्वस्तिक-विशेष (प्रौप)M संकृ. दीवेत्ता (ोघ ४३४; कस)। कृ. दिसी महा: सुपा २६७; पण्ह १, ४,
सोवत्थिय पु[सौवस्तिक] १ स्वस्तिक
विशेष, दक्षिणावर्त स्वस्तिक (पएह १, ४)। दं ३१, भग)। २ प्रौढ़ा स्त्री (से १, १६)
दीव पुं[दीप] १ प्रदीप, दिया चिराग, प्रालोक २ न. एक देव-विमान (सम३८)। ३ रुचक अक्क न [चक्र] दिशाओं का समूह (गा
(चारु १६; णाया १,१)। २ कल्पवृक्ष की पर्वत का एक शिखर (ठा ८) हत्थि पुं ५३०)। कुमरी स्त्री [कुमारी] देवी
एक जाति, प्रदीप का कार्य करनेवाला [हस्तिन दिग्गज, दिशात्रों में स्थित ऐरवत विशेष (सुपा ४०)। कुमार पुं [कुमार] |
कल्पवृक्ष (सम १७) °चंपय न [चम्पक] प्रादि पाठ हस्ती। हथिकूड पुन [हस्तिभवनपति देवों की एक जाति (परण २;
दिया का ढकना, दीप-पिधान (भग ८, ६) कूट] दिशा में स्थित हस्ती के प्राकारवाला औप) कुमारी देखो कुमरी (महा: सुपा
'गली स्त्री [ली] १ दीप-पंक्ति। २ शिखर-विशेष, वे पाठ हैं—पद्मोत्तर, नील४१)। गअ [गज] दिग्-हस्ती (से
दीवाली, पर्व-विशेष, कार्तिक वदी प्रमावस वन्त, सुहस्ती, अजनगिरि, कुमुद, पलाश, २, ३, १०, ४६) गइद [गजेन्द्र]
(दे ३, ४३), वली स्त्री [वली] प्रवतंस और रोचनगिरि (जं ४) . दिग्-हस्ती (पि १३९) चक्क देखो "अक्क
पूर्वोक्त ही प्रथं (ती १६) (मपा ५२३ महाचक्कवाल न चक्र- दिसेभ पु[दिगिभ] दिग्गज, दिग्-हस्ती दीव द्वीप] १ जिसके चारों ओर जल वाल] १ दिशाओं का समूह । २ तप-विशेष | (गउड)।
भरा हो ऐसा भूमि-भाग (सम ५१ठा १०)। (निर १, ३) 'चर पुं[चर] देशाटन दिस्स वि [दृश्य] देखने योग्य, प्रत्यक्ष ज्ञान २ भवनपति देवों की एक जाति, द्वीपकुमार करनेवाला भक्त (भग १५) जत्ता देखो का विषय (धर्मसं ४२८)।
देव (पएह १,४० औप)। ३ व्याघ्र (जीव १)।
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