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वन [ दिव् ] स्वर्ग, देखना
२९४) ।
उड; भवि) Mदिद्ध वि
रयणिकरि स्त्री
दिणिंद-दिव्व पाइअसहमहण्णवो
४६३ सूर्य, दिवाकर (पाना से १, १८; सुपा २३) Mदिदिक्खा । स्त्री [दिदृक्षा] देखने को इच्छा दिव न [दिव् ] स्वर्ग, देवलोक (कुप्र ४३६; मुह न [मुख] प्रभात, प्रातःकाल | दिदिच्छा (राजः सुपा २६४)IV
भवि)। (पाप) यर देखो कर (गउड; भवि) Mदिद्ध वि [दिग्ध] लिप्त (निचू १) दिवड्ढ वि [द्वयपाध] डेढ़ , एक और प्राधा
| दिन्न देखो दिण्ण (महा: प्रासू ५७)। ७ श्री (विसे ६६३; स ५५सुर १०, २०८; सुपा (पउम १३८) वइ पु [पति सूर्य,
गौतम स्वामी के पास पांच सौ तापसों के । ५८० भविः सम ६६ सुज्ज १:१०,ठा ६)। रवि (पि ३७६) साथ जैन दीक्षा लेनेवाला एक तापस (उप
दिवस । देखो दिअस (हे १, २६३; उवः
१४२ टी कुप्र २६३)। ८ एक जैन प्राचार्य दिवह दिणिंद पु[दिनेन्द्र] सूर्य, रवि (सुपा २४०)M
प्रासू १२; सुपा ३०७; बेणी ४७). (कप्प) दिणेस पुं[दिनेश] १ सूर्य, सूरज (कप्पू)।
पुहुत्त न [पृथकत्व] दो से लेकर नव | दिन्नय दत्तक] गोद लिया हुआ पुत्र (ठा | दिन तक का समय (भग) २ बारह की संख्या (विवे १४४)।
१०-पत्र ५१६)। दिण्ण वि [दत्त] १ दिया हुआ, विताण दिप्प अक [दीप1१ चमकना। २ तेज | इत्ति पंकीति] चाण्डाल, भंगी (दे
दिवा देखो दिआ (णाया १, ४, प्रासू १०) (हे १, ४६ प्राप्र; स्वप्न; प्रासू १६४)।
होना । ३ जलना । दिप्पइ (हे १, २२३)। २ निवेशित, स्थापित (पएह १, १)।
५, ४१), "कर [कर] सूर्य, सूरज वक. दिप्पंत, दिप्पमाण (से ४, ८, सुर
(उत्त ११) कित्ति [कीति] नापित, ३ पृ. भगवान् पार्श्वनाथ के प्रथम गण१४, ५६, महा: पएह १, ४, सुपा २४०);
हजाम (कुप्र २८८)M°गर देखो कर (णाया धर (सम १५२)। ४ भगवान् श्रेयांसनाथ का 'दिप्पमाणे तवतेएण' (स ६७५)
१, १; कुप्र ४१५) 'मुह न [°मुख पूर्वजन्मीय नाम (सम १५१)। ५ भगवान् दिप्प मक [ तृप्] तृप्त होना, सन्तुट होना।
प्रभात (गउड) यर देखो कर (सुपा ३६ चन्द्रप्रभ का प्रथम गणधर (सम १५२)। दिप्पइ (षड्)
३१४)। यरत्थ न [करास्त्र] प्रकाश६ भगवान् नमिनाथ को प्रथम भिक्षा देनेवाला | दिप्प वि दीप्र] चमकनेवाला, तेजस्वी (से
कारक अस्त्र-विशेष (पउम ६१, ४४) । एक गृहस्थ (सम १५१)। देखो दिन्न । १,६१४ दिण्ण देखो दइन्न (राज)। .
दिवायर पु[दिवाकर] १ सिद्धसेन नामक दिप्प (अप) पुं [दीप १ दीपक । २ छन्द
विख्यात जैन कवि और तार्किक । २ पूर्वधर दिण्णेल्लय वि [दत्त] दिया हुमा (प्रोघ २२ | विशेष (पिंग)।।
मुनि (सम्मत्त १४१) भा. टी) दिप्पंत पु[दे] अनर्थ (दे ५, ३६)
दिवि देखो देव; 'दिविणावि काणपुरिसेदित्त वि दीप्त १ ज्वलित, प्रकाशित (सम
रणव एसा दासी अहं च विप्पवरो एगया दिट्ठोए १५३; अजि १४ लहुअ ११)। २ कान्ति- दिप्पमाण
दिस्सामो' (रंभा) युक्त, भास्वर, तेजस्वी (पउम ६४, ३५; सम दिप्पिर देखो दिप्प = दीप्र (कुमा)।
दिविअ [द्विविद] वानर-विशेष (से ४, ८, १२२) । ३ तीक्ष्णभूत, निशित (सम १५३, | दियाव सक [दा] देना । दियावेइ (पंचा १३,
१३, ८२) लहुन ११)। ४ उज्ज्वल, चमकीला (गदि)। १२)।
दिविज वि [दिविज १ स्वर्ग में उत्पन्न । २ ५ पुष्टः परिवृद्ध (उत्त ३४)। ६ प्रसिद्ध (भग | दिरय पुं[द्विरद हस्ती, हाथी (हे १,६४)M
पुं. देव, देवता (अजि ७) २६, ३)। ७ मारनेवाला (मोघ ३०२) दिलंदिलिअ [दे] देखो दिल्लिदिलिअ (गा दिविट्ठ देखो दुविद (राज)। "चित्त वि ['चित्त हर्ष के अतिरेक से ७४१)
| दिवे (अप) देखो दिवा (हे ४, ४१६ कुमा)। जिसको चित्त-भ्रम हो गया हो वह (बृह ३) दिलिदिल प्रक[ दिलदिलाय ] 'दिल दिल दिव्व वि [दिव्य] १ स्वर्ग-सम्बन्धी, स्वर्गीय दित्त वि [दन] १ गर्वित, गर्व-युक्त (प्रौप)। आवाज करना । वकु. दिलिदिलंत (पउम | (स २ ठा ३, ३) । २ उत्तम, सुन्दर, मनोहर . २ मारनेवाला । ३ हानि-कारक (प्रोष १०२, २१)।
(पउम ८, २६१; सुर २, २४२, प्रासू ३०२) इत्त वि [ चित्त] २ जिसके मन दिलिवेढय पु[दिलिवेष्टक] एक प्रकार का
१२८)। ३ प्रधान, मुख्य (प्रौप)। ४ देवमें गर्व हो । २ हर्ष के अतिरेक से जो पागल । ग्राह, जल-जन्तु की एक जाति (पएह १, १)M सम्बन्धी (ठा ४, ४० सूत्र १, २, २)। ५ न. हो गया हो वह (ठा ५, ३–पत्र ३२७)
दिल्लिंदिलिअ [दे] बालक, शिशु, लड़का | दिल
शपथ-विशेष, आरोप की शुद्धि के लिए किया दित्ति स्त्री [दीप्ति] कान्ति, तेज, प्रकाश (पानः (द ५, ४०) स्त्री. आः बाला, लड़की जाता अग्नि-प्रवेश प्रादि (उप ८०४)। ६ सुर ३, ३२; १०, ४६; सुपा ३७८)4म (गा ७४१)।
प्राचीन काल में अपुत्रक राजा की मृत्यु हो वि[ मत् ] कान्ति-युक्त (गच्छ १) दिव उभ [दिव]१ क्रीड़ा करना। २ जाने पर जिस चमत्कार-जनक घटना से राजदित्ति स्त्री [दीप्ति उद्दीपन (उत्त ३२, १०) जीतने की इच्छा करना । ३ लेन-देन करना। गद्दी के लिए किसी मनुष्य का निर्वाचन होता
ल्ल वि [मत् ] प्रकाशवाला (सम्मत्त ४ चाहना, वांछना। ५ प्राज्ञा करना। था वह हस्ति-गर्जन, अश्व-हेषा आदि प्रलौ१५६) दिवइ, दिवए (षड्)।
किक प्रमाण (उप १०३१ टी माणुस
दिप्पंत
देखो दिप्प = दीप् ।।
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