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४७० पाइअसहमहण्णवो
दुद्धोअहि-दुप्पतर दुद्धोअहि पु[दुग्धोदधि] समुद्र-विशेष, | दुपएसिय वि [द्विप्रदेशिक] दो प्रदेशवाला दुप्पञ्चप्पेक्खिय वि [दुष्प्रत्युत्प्रेक्षित] ठीकदुद्धोदहि जिसका पानी दूध की तरह (भग ५, ७)।
ठीक नहीं देखा हुआ (पव ६)। स्वादिष्ठ है, क्षीरसमुद्र (गा ४७५; उप २११ दुपक्ख पु[दुष्पक्ष] दुष्ट पक्ष (सूत्र १, ३, दुप्पजीवि वि [दुष्प्रजीविन् दुःख से जीनेटी)।
वाला (दसचू १) दुद्धोलणी स्त्री [दे] गो-विशेष, जिसको एक | दुपक्ख न. [द्विपक्ष] १ दो पक्ष'(सूम १, २, दुप्पडित वि [दुष्प्रतिकान्त] जिसका बार दोहने पर फिर भी दोहन किया जा सके । ३)। २ वि. दो पक्षवाला (सूत्र १, १२, ५) प्रायश्चित ठीक-ठीक न किया गया हो वह ऐसी गाय, कामधेनु (दे ५, ४६)। दुपडिग्गह न [द्विप्रतिग्रह] दृष्टिवाद का (विपा १, १) दुधा देखो दुहा (अभि १६१)।
एक सूत्र (सम १५७)।
दुप्पडिगर वि [दुष्प्रतिकर] जिसका प्रतीकार दुनिमित्त देखो दुण्णिमित्त (श्रा २७)। दुपडोआर वि[द्विपदावतार दो स्थानों में दुःख से किया जा सके (बृह ३)। दुन्नय पुं [दुर्नय] १ दुष्ट नीति, कुनीति । २
जिसका समावेश हो सके वह (ठा २, १) दुप्पडिपूर वि [दुष्प्रतिपूर] पूरने के लिए अनेक धर्मवाली वस्तु में किसी एक ही
दुपडोआर वि [द्विप्रत्यवतार] ऊपर देखो | अशक्य (तंदु)। धर्म को मानकर अन्य धर्म का प्रतिवाद करने- (ठा २, १)
दुप्पडियाणंद वि [दुष्प्रत्यानन्द] १ जो वाला पक्ष (सम्म १५)। ३ वि. दुष्ट नीति,
दुण्मज्जिय देखो दुप्पमन्जिय (सुपा ६२०)। किसी तरह संतुष्ट न किया जा सके। २ प्रति अन्याय-कारी (उप ७६८ टी) कारि वि
दुपय वि [द्विपद] १ दो पैरवाला। २ पुं. कष्ट से तोषणीय (विपा १,१-पत्र ११; "कारिन् अन्याय करनेवाला (सुपा ३४६) मनुष्य (गाया १,८ सुपा ४०६)। ३न. ठा ४, ३) दुन्निकम देखो दोनिक्कम (भग ७,६ टीगाड़ी, शकट (मोघ २०५ भा)।
दुप्पडियार वि [दुष्प्रतिकार] जिसका प्रतीपत्र ३०७)
दुपय पुं[द्रपद] कांपिल्यपुर का एक राजा | कार दुःख से हो सके वह (ठा ३, १-पत्र दुन्निग्गह वि [दुर्निग्रह जिसका निग्रह दुःख (णाया १, १६)
११७ ११६ स १८४; उव)। से हो सके वह, अनिवार्य (उप पृ १५३)।
दुपरिश्चय वि [दुष्परित्यज] दुस्त्यज, दुःख | दुप्पडिलेह वि [दुष्प्रतिलेख] जो ठीक-ठीक
से छोड़ने योग्य (उप ७६८ टीः रयण ३४) न देखा जा सके वह (पव ८४)। दुन्निबोह वि [दुर्निबोध] १ दुःख से जानने
दुपरिच्चयणीय वि [दुष्परित्यजनीय, दुप्पडिलेहण न [दुष्प्रतिलेखन] ठीक-ठोक योग्य । २ दुर्लभ (सूत्र १, १५, २५) ।
दुष्परित्यज] ऊपर देखो (काल)। नहीं देखना (आव ४)। दुनिमित्त देखो दुण्णिमित्त (श्रा २७)।
दुपस्स देखो दुप्पस्स (ठा ५, १-पत्र | दुप्पडिलेहिय वि [दुष्प्रतिलेखित] ठीक से दुन्नियन [दुर्नीत दुष्ट कर्म, दुष्कृत; 'बंधति २६६)
नहीं देखा हुआ (सुपा ६१७)। दुपुत्त [दुष्पुत्र] कुपुत्र, कपूत (पउम २६, दुप्पडिवूह वि [दुष्प्रतिबृह] १ बढ़ाने को दुन्नियत्थ वि [दे] विट का भेषवाला, निन्द- | २३) ।
अशक्य । २ पालने को अशक्य (प्राचा)। नीय वेष को धारण करनेवाला, केवल जघन दुपेच्छ वि [दुष्प्रेक्ष] दुर्दशं, प्रदर्शनीय दुप्पडिहण वि [दुष्प्रतिबृहण] ऊपर पर ही वस्त्र-पहिना हुआ 'लोए वि कुसंसग्गी- (भवि)।
देखो (प्राचा)। पियं जणं दुनियत्थमइवसणं निदई' (उव) दुप्पइ पुं[दुष्पति] दुष्ट स्वामी (भवि) दुप्पणिहाण न [दुष्प्रणिधान] दुष्प्रयोग, दुन्निरिक्ख वि [दुनिरीक्ष्य जो कठिनाई से दुप्पउत्त वि [दुष्प्रयुक्त] १ दुरुपयोग करने- अशुभ प्रयोग, दुरुपयोग (ठा ३, १, सुपा देखा जा सके वह (कप्प; भवि)।
वाला (ठा २, १-पत्र ३९)। २ जिसका दुन्निवार वि [दुर्निवार रोकने के लिए
दुरुपयोग किया गया हो वह (भग ३, १) दुप्पणिहिय वि [दुष्प्रणिहित] दुष्प्रयुक्त, अशक्य, जिसका निवारण मुश्किल से हो
जिसका दुरुपयोग किया गया हो वह (सुपा दुप्पउलिय। वि [दुष्प्रज्वलित ठीक-ठीक
दुप्पउल्ल नहीं पका हुमा, अधपका (उवा, ५५८) । सके वह (सुपा १२३, महा)पंचा १)
दुप्पणीहाण देखो दुप्पणिहाण; 'कयसामइदुन्निवारणीअ वि [दुर्निवारणीय, दुर्निवार]
दुप्पओग ([दुष्प्रयोग दुरुपयोग (दस ४) प्रोवि दुप्पणीहाणं' (सुपा ५५३)। ऊपर देखो (स ३४३; ७४१)।
| दुप्पओगि वि [दुष्प्रयोगिन् दुरुपयोग | दुप्पणोल्लिय वि [दुष्प्रणोद्य] दुस्त्यज, छोड़ने दुन्निसण्ण वि [दुनिषण्ण खराब रीति से
करनेवाला (पएह १,१-पत्र ७)। को अयोग्य (सूम १, ३, १)। बैठा हुआ (ठा ५, २-पत्र ३१२) ।
दुप्पक वि [दुष्पक्व] देखो दुप्पउल्ल (सुपा दुप्पण्णवणिज्ज वि [दुष्प्रज्ञापनीय] कष्ट दुप देखो दिअ-द्विप (राज)। ४७२)।
से प्रबोधनीय (माचा २, ३, १)। दुपएस वि [द्विप्रदेश १ दो अवयववाला। | दुप्पक्खाल वि [दुष्प्रक्षाल] जिसका प्रक्षा- दुप्पतर वि [दुष्प्रतर] दुस्तर (सूत्र १, २ पुं. द्वथणुक (उत्त १)
लन कष्टसाध्य हो वह (सुपा ६०८)।
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