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पाइअसहमहण्णवो
दाणव-दालिअ
दाणव पुं[दानव] दैत्य, असुर, दनुज (दे १, दामी स्त्री [दामी] लिपि-विशेष (सम ३५) दारिआ नो [दारिका] लड़की (स्वप्न १५
१७७: अच्चु ४१ प्रासू ८६) ।। दामोअर पुं[दामोदर] १ श्रीकृष्ण वासुदेव | गाया १, १६ महा) । दाणविंद [दानवेन्द्र] असुरों का स्वामी | (ती ४)। २ अतीत उत्सर्पिणी काल में भरत- दारिआ स्त्री दि] वेश्या, वारांगना (दे ५, (णाया १,८ पउम ६२, ३६ प्रासू १०७)M क्षेत्र में उत्पन्न नववा जिनदेव (पब ७) ३८) दाणि स्त्री [दे] शुल्क, मुंगी (सुपा ३६० | दायग वि [दायक] दाता, देनेवाला (उप | दारिहन दारिद्रय] १ निधनता। २ दीनता ५४८)
७२८ टी महा; सुर २, ४४; सुपा ३७८) (गा ६७१; महा प्रासू १७३)। ३ पालस्य दागि। अ[इदानीम् ] इस समय, अभी दायण न [दान देना, 'दायणे अनिकाए
निकाए म
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(प्रामा)। दाणिं (प्रति ३६ स्वप्न २० हे १,२६ अब्भुट्ठाणेत्ति प्रावरे (सम २१), 'तवा- | दारिद्दिय विदारिद्रित] दरिद्रता-प्राप्त, दरिद्र दाणी । ४, २७७: अभि ३७; स्वप्न ३३)M विहारणं तह दागदाप (? य) णं' (सत्त २६) (पउम ५५, २५)। दाथ विद्वा.स्था १ द्वार पर स्थित। २ | दायणा स्त्री [दापना] पृष्ट अर्थ को व्याख्या
| दारु न [दारु काष्ठ, लकड़ी (सम ३९; कुप्र पुं.प्रतीहार, द्वारपाल, चपरासी (दे६,७२) (बिसे २६३२)
१:५; स्वप्न ७०), 'ग्गाम पुं [ग्राम दादलिआ स्त्री दे] अंगुली, उंगली (दे ५, | दायय देखो दायगः 'अजिअसंतिपायया हंतु
ग्राम-विशेष (पउम ३०, ६०) दंडय पुन मे सिवसुहाण दायया' (प्रजि ३४)
["दण्डक] काष्ठ दण्ड, साधुनों का एक दापण न [दापन] दिलाना, 'अब्भुट्टाणं दायव्व देखो दादा
उपकरण (कस) पव्वय पुं[पर्वत] अंजलिकरणं तहेवासणदापणं' (सत्त २६ टी) दायाद पुं [दायाद] पैतृक संपत्ति का भागी
पर्वत-विशेष (जीव ३) पाय न [[पात्र] दार, पुत्र, सपिंड कुटुम्बी (आचा)। दाम न [दामन्] १ माला, सज् (पएह १,
काष्ठ का बना हुआ भाजन (ठा ३, ३) ।। ४. कुमा)। २ रज्जु, रस्सी (गा १७२; हे | दायार वि [दायार] याचक, प्रार्थी (कप्प) ।
"पुत्तय पुं [पुत्रक] कठपुतला (अच्नु ८२) १, ३२)। ३ पुं. वेलन्धर नागराज का एक दार सक [दारय ] विदारना, तोड़ना, चूर्ण 'मड पुं[ मड] भरत-क्षेत्र के एक भावी प्रावास-पर्वत (राज)। बंत वि [वत् ] करना । वकृ. दारंत (कुमा) ।
जिन-देव के पूर्व जन्म का नाम (सम १५४) ।। मालावाला (कुमा)। | दार पुं[दे] कटी-सूत्र, काँची (दे ५, ३८)
"संकम पुं[संक्रम] काष्ठ का बना हुमा दामट्टि [दामस्थि] सौधर्म देवलोक के इन्द्र दार पुन [दार] कलत्र, स्त्री, महिला (सम
पुल, सेतु (आचा)। के वृषभ-सैन्य का अधिपति देव (इक) । ५० स १३७ सुर ७, २०१, प्रासु ६५) दारुअदारुक] १ श्रीकृष्ण वासुदेव का दामड्ढि पुं[दामद्धि] ऊपर देखो (ठा ५,
'दव्वेण अप्पकालं गहिया वेसावि होइ परदार' एक पुत्र, जिसने भगवान् नेमिनाथ के पास १-पत्र ३०३) (सुपा २८०)
दीक्षा लेकर उत्तम गति प्राप्त की थी (अंत दामण न [दामन] बन्धन, पशुओं का रस्सी | दार न [द्वार] दरवाजा, निकलने का मार्ग ३)। २ श्रीकृष्ण का एक सारथि (रणाया १, से नियन्त्रण (पव ३८)
(प्रौप; सुपा ३६७) गला स्त्री ["गिला] १६) । ३ न. काष्ठ, लकड़ी (पउम २६, ६) दामण स्त्रीन [दामनी] पशु को बाँधने को
दरवाजे का पागल (गा ३२२) , त्थ दारुइज वि [दारुकीय काष्ठ-निर्मित, लकड़ी डोरी-रस्सी, पगहा (धर्मवि १४४)। स्त्री..
वि [स्थ] १ द्वार पर स्थित। २'.दरवान, का बना हुआ पव्वय पुं[पर्वत] काष्ठ ण (सुज १०, ८) प्रतीहार (बृह १; दे २,५२) ५°पाल, प्वाल
का बना हुआ मालूम पड़ता पर्वत (राय ७५)।। पुं[°पाल] दरवान, द्वार-रक्षक (उप ५३० दामणी स्त्री [दामनी] १ पशुओं को बाधने
दारुण वि [दारुग] १ विषम, भयंकर, भीषरण टी; सुर १०, १३९; महा) वालय, की रस्सी (भग १६, ६)। २ भगवान् कुन्थु
(णाया १, २ पाप गउड)। २ क्रोध-युक्त,
वालिय पुं. [ पालक, पालिक] दरवान, नाथ की मुख्य शिष्या (तित्थ)। ३ स्त्री और
रौद्र (वव १)। ३ न. कष्ट, दुःख (स ३२२)। प्रतीहार (पउम १७, १६ सुपा ४६६)। पुरुष का रज्जु के आकारवाला एक शुभ
४ दुर्भिक्ष, अकाल (उप १३६ टी)। लक्षण (पएह २, ४ टी-पत्र ८४ पएह २,
दार पुं[दारक] शिशु, बालक, बच्चा दारुणी स्त्री [दारुणी] विद्यादेवी-विशेष ४- पत्र ६८ ७६ २) दारग। (उप पृ ३०८, सुर १५, ११६
(पउम ७, १४.) । दामणा स्त्री [दे] १ प्रसव, प्रमूति । २ नयन,
कप्प)। देखो दारय ।।
दालग न [दारण] विदारण, खण्डन (पएह प्राख (दे ५, ५२)
दारद्धंता स्त्री [३] पेटी, संदूक (दे ५, ३८) १,१) दामिय वि [दामित] संयमित, नियन्त्रित दारय वि [दारक करनेवाला, विध्वंसक दालि स्त्री [दे. दालि] १ दाल, दला हमा (सण) -
(कुप्र १३०) । २ देखो दारग (कप्प) चना, अरहर, मूंग आदि अन्न (सुपा ११, दामिली स्त्री [द्राविडी] द्रविड़ देश की लिपि | दारिअ वि दारित] विदारित, फाड़ा हुमा सण) । २ राजि, रेखा, लकीर (मोघ ३२३)में निबद्ध एक मन्त्र-विद्या (सूप २, २) IV (पान)
दालिअ न [दे] नेत्र, आँख (दे ५, ३८)
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