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दह - दाणपारमिया
पाइअसद्दमहष्णवो
पुं कबड, दवनंत, दुश्ममाण (नाट - मालती | दस्थिर ] [ दे] दधिवर, वही पर की दहित्थार । मलाई, खाद्य-विशेष ( 18) 1~
३०पि २२२ ) ॥
५,
दद [द्र] हद, महा जलाशय झोल सरोवर (मग उवा खाया १, ४ पत्र २६ गुफा १२०) कुडिया की [फुल्लिका] वल्ली विशेष ( पण १) वई, वई स्त्री [ती] नदी - विशेष (ठा २, ३ - पत्र ८० ४) IV दह देखो दस ( हे १, २६२: दं १२; पि २६२: पउम ७८, २५० से १३, ६४; प्राप्र; से १४, १६; ३, ११; १०, ४ पउम ८, ४४; प्रात्र) I
दहिभुद [] कपि वानर (दे २, ४४) दहिय ' [दे] पक्षि-विशेष 'वं लाभयतित्तिरिदहियमोरं मारंति श्रदोस वि के वि घोर (कुप्र४२७)
दहणन [दन] १ बाह भस्मीकरण २ 9. अग्नि, वकि पर ११२२ सुपा ४७४; श्रा २८ ) V
दहणी श्री [दहनी] विद्या-विशेष (पढम ७ (26) Iv
दोशी श्री [दे] स्थाली, पलिया, परिया (x, 18)
दहावण वि [ दाहक ] जलानेवाला (सण) | दहि न [दधि] दही, दूध का विकार (ठा ३ १; गाया १, १ ; प्रा . ) ( घण पुं ['घन] दधि - पिण्ड, अतिशय जमा हृना दही (परण १७- पत्र ५२९) । मुह ["मुख ] १) । २ एक
१ द्वीप - विशेष ( पउम ५१, नगर ( पउम ५१, २ ) । ३ पर्यंत विशेष (राज) वण्ण, वन्न पु [पर्ण] १ एक राजा, नृप - विशेष (कुप्र ६९ ) । २ वृक्षविशेष (प्रौपः सम १५२ ; पण १ - पत्र ११) वासुवा श्री ["वासु] वनस्पतिविशेष (जीव ) बाण ' ["वाहन] सूप-विशेष (महा) सर [सर] बाह्यद्रव्य- विशेष, मलाई, (दे ३, २१, ५, ३६) दहि [दधि] १ दही, 'जुन्हा दहीय महणेण' (धर्मवि ५५); 'श्रयं तु दही' (सू २,१,१६ ) । २ तेला, लगातार तीन दिन का उपवास (संबोध ५८ ) IV
दहिउप्फ न [दे] नवनीत, नैनूँ, मक्खन (दे 2,2x) 1
दहि
[३] कैथ का पेड़ (दे ५, ३५ ) ।
दहिण देखो दाहिण (नाट वेणी ६७ ) । ~
विशेष पित्य या
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दास [द] देना, उत्सर्ग करना । दाइ, देइ (भवि हे २, २०६३ श्राचा महा कस ) । भवि दाहं, दाहामि, दाहिमि (हे ३, १७० श्राचा)। कर्म, दिजइ ( हैं ४, ४३८) । वकृ. देश, दि तदेवमाण (मुर १, २१२० गा २३३ ४६४; हे ४, ३७९ बृह १३ गाया १, १४ – पत्र १०६) दिलंत, । कवकृ. दिज्जमाण, दीअमाण (गा १०१; सुर ३, ७११० ४ सम ३६ प ५०२ मा ३३) । संकृ. दच्चा, दाउँ, दाऊण (विपा १, १; पि ५८७ कुमा; उव) । हेकु. दाउं (उषा) - दायव्य देव (सुर १. ११० । सुपा २१३ ४४४ ५३२) हे देयं (४४४१) 1
दा
देखो दग + 'थालग न [स्थालक ] जल से गीला थाल (भग १५ - पत्र ६८० ) M कलस ['कलश ] पानी का छोटा घड़ा 1 "कुंभ [" कुम्भ ] जल का घड़ावरग पु ['बारक] जल का पास-विशेष भाग १५ – पत्र ६८० ) 1
दाडं देखो दा = दा ।
दा ओरियवि [दाकोदरिक] जलोदर रोगवाला (विपा १, ७) 1v
दाक्खव (अप) देखो दक्खव । दाक्खवइ ( प्राकृ ११९ ) 1
दाघ देखी दाह हि १, २६४) दाडिम न [दाडिम] फल-विशेष धनार (महा) दाडिमी [दाडिमी] अनार का पेड़ (पि स्त्री २४०)
दाढगाल देखो ढगाल (सन १,४६ टी) | दाढा स्त्री [ दंष्ट्रा ] बड़ा दाँत, दन्त विशेष,
चौड़, चहू, दाढ़ (हे २, १३०; गउड) दाडि [ष्ट्रिन] १ दाह्रावाला २. व । हिंसक पशु (वेणी ४६) र बराह " कि दाढी भयभीओ निययं गृहं केसरी रियई' (परम ७ १८ 1
=
दा देखो ता = तावत् (से ३, १०) दाल देखी दाव दर्शय् वाएद्र (बिसे ८४४)| कमं. दाइजइ (विसे ४६० ) । कवकु. दाइ - जमाण (कप्प) IV
दाअ पुं [दे] प्रतिभू, जामिनदार, जमानत करनेवाला (दे, १८) M दाअ पुं [दाय ] दान, उत्सर्ग ( खाया १, १ - पत्र ३७ ) ।
दाइ वि [दायिन् ] दाता, देनेवाला (उप १६२)
दाइअ वि [दर्शित] दिखलाया हुआ (विसे १०१२)
दाइअ पुं [दायिक ] १ पैतृक संपत्ति का हिस्सेदार (उप ४७; महा २ योशिक समान - गोत्रीय (कप्प ) ।
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दाअ =
दर्शय् 1
दाइमाण देखो वा इन [देवक] पाणिग्रहण के समय वर-वधू को दिया जाता द्रव्य (सिरि ४६९ ) । दाउ वि [दातृ] दाता, देनेवाला (महाः सं १ सुपा ११)
बाढि श्री [दे] दादी, मुख के नीचे का भाग, श्मश्रु, ठुड्ढी के नीचे या ठुड्डी पर के बाल (दे २, १०१ ) 1 दादिभालि श्री [दृष्ट्रि कान्छि] [१] दादा ? [दंष्ट्रिकावलि दाढिगालि की पंक्ति । २ वस्त्र-विशेष (हनी) 1
दाण न [दान दाण पुंन [दान ] १ दान, उत्सर्ग, त्यागः 'एए हवंति दारणा' (पउम १४, ५४ कप प्रासू ४८; ९७ १७२ ) २ हाथो का मद (पाय षड् ; गउड) । ३ जो दिया जाय वह (e) "विश्व ["विरत] एक राजा (सुपा १००) साला श्री ["शाखा] सत्रागार (तो ८ ) । दाणंतरात्र न [ दानान्तराय ] कर्म-विशेष, जिसके उदय से दान देने की इच्छा नहीं होती है (राय) 1
दाणपारमिया श्री [दायपारमिता] दान, उत्सर्ग, समर्पण, 'देतस्स हिरन्नादी अभासा देहमादियं चेविती जा सादापारमिया (धर्म ७.१७) ।
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