________________
थाली - थुइवाय
थाली [स्थाली ] पाक-पात्र, हाँडी, बटलोही (ठा ३, १; सुपा ४८७) । पाग वि [पाक ] हाँड़ी में पकाया हुआ (ठा ३, १) ।
[ स्थापय् ] १ स्थिर करना । २ रखना । थावए (उत्त २, ३२) । थाचा स्त्री [स्थापत्या ] द्वारका-निवासी एक गृहस्थ स्त्री (गाया १, ५) पुत्त पुं [पुत्र ] स्थापत्या का पुत्र, एक जैन मुनि (गाया १, ५; अंत ) 1
थावण न [स्थापन ] न्यास, श्राधान (स २१३) -
थावय पुं. [स्थापक ] समर्थं हेतु, स्वपक्षसाधक हेतु (ठा ४, ३ – पत्र २५४) । थावर वि[स्थावर ] १ स्थिर रहनेवाला । २ पुं. एकेन्द्रिय प्राणी, केवल स्पर्शेन्द्रियवालापृथिवी, पानी और वनस्पति आदि का जीव (ठा ३, २; जी २ ) । ३ एक विशेष नाम, एक नौकर का नाम (उप २१७ टी) काय पं. ["काय ] एकेन्द्रिय जीव (डा २, " णाम, नाम न [नामन्] कर्म-विशेष, स्थावरत्व-प्राप्ति का कारण-भूत कर्म (पंच ३ः सम ६७ ) |
१)
घास [दे] कुदाल (भाव० टिप्पण-पत्र ५६, १) । थासग
।
[स्थासक]भाव, थाय शीशा (विपा १, २ – पत्र २४) २ दर्पण के श्राकार का पात्र विशेष (भौपः अनु, गाया १, १ टी) । ३ अश्व का श्राभरणविशेष (राज) 1
थाह पुं [दे] १ स्थान, जगह । २ वि. श्रस्ताघ, गंभीर जल-वाला । ३ विस्तीर्णं । ४ दीर्घ, लम्बा (दे५, ३०) थाह[स्थाघ ] थाह, तला, गहराई का अन्त, सीमा (पाश्र विसे १३३२ गाया १, ६; १४; से ८, ४० ) । थाहि पुं [दे] श्रालाप, स्वर विशेष (सुपा १६) ।
बिजन [स्थित] रहा हु ( २०० विले १०३५; भवि) | बिदेशी ठिङ्ग (से २१८ गड 1थिंदिणी श्री [हे] विशेष विदिदि
' (सम्म १४९) । ५७
Jain Education International
।
पाइअसद्दमहणव
थिंप श्रक [ तृप् ] तृप्त होना, संतुष्ट होना । थिंप [ [ [ए] तुप्त होना, संतुर होना चिप (प्रा)। भविहित प्रात्र म २२ टीसंह, विपिन (प्रात्र ८ २२ टी ।
V
४४६
थिरणाम वि[दें] चल-चित्त पंचल-मस्क (दे ५, २७) 1
चिरण्णेस वि [दे] स्थिर, पंच)। थिरसीस वि[] १ निर्भीक, निडर । २ निर्भर । ३ जिसने सिर पर कवच बाँधा हो वह (दे ५, ३१)
थिरिम पुत्री [स्थैर्य ] स्थिरता (1 थिरकण न [स्थिरीकरण] स्थिर करना एक करना, जमाना (श्रा ६; रयण ६९ ) । थिल्ल वि [] गुप्त (चउपन्न० विबुधानंद)। थिल्लि स्त्री [दे] याग-विशेष—१ दो घोड़े की बग्घी । २ दो खच्चर प्रादि से वाह्य यान ( सू २, २६२; गाया १, १ टी -पत्र ४३ श्रप)
विविधिप मक [विवःधिवाय् ] 'विव-विव आवाज करना । वकृ. थिविथिवंत ( विपा १, ७) बिबुग) [स्तिबुक ] जल-विन्दु (विसे धिय ७०४ ७०५ सम १४९) संक्रम । । ['संक्रम] कर्म-प्रकृतियों का श्रापस में संक्रमण - विशेष (पंचा ५)
[] मत्त द्वार भीत में किया
हुआ दरवाजा ( दस ५, १, १५) । २ फटेफुटे वस्त्र में किया जाता संधान, वस्त्र आदि फुटे वन में किया जाता संधान पत्र घादि के पंडित भाग में लगाई जाती जोड़ पर १७ विसे १४३९ टी)
=
थिग्गल पुंन [दे] १ छिद । २ गिरने के बाद दुत (ठीक) किया हुआ गृह-भाग (माचा २, १, ६, २) । बिया देखो थेन स्पेयं (संबोध ४९ ) । थिण्ण वि [स्त्यान] कठिन, जमा हुआ (हे १, ७४२, २१ से २, ३०) देखो क्षीण थिष्ण वि [दे] १ स्नेह-रहित दयावाला । २ श्रभिमानी, गव-युक्त (दे ४, ३० ) 1नि वि [] गति अभिमानी (पान) 1
विष्प देखो थिप बिव्य (हे ४, ११०) face । । थिप्प अक [ वि + गल ] गल जाना । fers (हे ४, १७५ ) 1
धिबुक [स्बुिक ] कन्द-विशेष (गुल २६, ee)
[मिक [स्तिम् ] [] करना, गोला आद्र करना। हेक, थिमि (राज)।
थिमिअ वि [दे. स्तिमित] स्थिर, निश्चल (दे ५, २७ से २, ४३३८, ६१ गाया १, १ विपा १, १; परह १, ४३२, ५३ प सुज १; सूत्र १, ३, ४ ) । २ मन्थर, धीमा ( पाच ) । थिमिअ पुं [स्तिमित ] राजा अन्धकवृष्णि के एक पुत्र का नाम ( अंत ३) । थिम्म सक [स्तिम् ] १ श्रद्र करना । एक चाद्र होता विम्ब (प्रा १२० ) ।
थिर
[स्थिर ] १, निष्कम्प (बिपा
१. १ सम १९६३ गाया १८ ) । २ निष्पन्न, संपन्न (दस ७ ३२) नाम, । "नाम न ["नामन] कर्म-विशेष, जिसके उदय से बन्द हड्डी आदि धययों की स्थिरता होती है (कम्म १, ४९; सम ६७ ) "बलिया श्री [["लिका] जन्तु-विशेष, सर्प की एक जाति (जी २) ।
For Personal & Private Use Only
,
बीहु दुखो [दे] कन्द-विशेष (उ २६ पुंस्त्र εε) IV
बिंदु
[स्तिभु] वनस्पति- विशेष (राज)।
थी श्री [श्री] श्री. महिला नारी, भौरत (हे २, १३०, कुमा, प्रासू ६५)
थीण देखो थिण्ण (हे १, ७४ दे १, ११; कुमा; पात्र) गिद्ध स्त्री [गृद्धि] निकृष्ट निद्रा-विशेष (ठा है; विसे २३४ उत्त ३३, ५) ४ °द्धि स्त्री [ 'द्धि ] अधम निद्रा-विशेष (सम १५) ५ द्वियवि [क] त्यान निद्रा बाला (विसे २३५)
थु श्र. तिरस्कार सूचक अव्यय ( प्रति ८१) । धुअ वि[स्तुत] जिसकी स्तुति की गई हो वह, प्रशंसित (दे ८ २७ धरण ५० प्रजि १८)
। थुइ ।
धुअ देखो धुण ६ ( प्राकृ ६७) थुइ श्री [स्तुति] स्तव, ए-कीर्तन (कुमा चैत्य १; सुर १०, १०३) । भुइवाय [स्तुतिपाद] प्रशंसा७४४)
( चेहय
www.jainelibrary.org