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४५४ पाइअसहमहण्णवो
दक्खिणापुव्वा-दढ कर्म का पारितोषिक, दान, भेंट (कप्पू: सूत्र [मश्चक] स्फटिक रत्न का मञ्च (जं १) दडवड [दे] १ घाटी, दर्रा, प्रवस्कन्द (दे २, ५) कखि वि [ कानिक्षन्] दक्षिणा मंडव पुं [मण्डप] १ मण्डप-विशेष, ५,३५, हे ४,४२२; भवि)। २ शीघ्र, जल्दी का अभिलाषी (पउम ३०, ६३), 'यण जिसमें पानी टपकता हो (पएह २, ५)। (चंड) न [यन] १ सूर्य का दक्षिण दिशा में २ स्फटिक रत्न का बनाया हुआ मण्डप
दडि स्त्री [दे] वाद्य-विशेष (भवि) । गमन । २ कर्क की संक्रान्ति से धन की (जे १) मट्टिया, मट्टी स्त्री [मृत्तिका]
दड्ढ वि [दग्ध] जला हुआ (हे १, २१७ संक्रान्ति तक के छः मास का काल (जो १ पानीवाली मिट्ठी (बह ४; पडि)। २
भग). १) वध, वह पुं [पथ] दक्षिण देश कला-विशेष (जं२) रक्खस पुं[ राक्षस]
दडढालि स्त्री [दे] दव-मार्ग (षड्) (कप्पू: १४२ टी)
जल-मानुष के आकार का जंतु-विशेष (सूत्र
१, ७) दक्खिणापुव्वा देखो दक्खिण-पुव्वा (पव
दढ वि [दृढ] १ मजबूत, बलवान्, पोढ़ रय पुन [रजस्] उदक-बिन्दु, जल-कणिका (कप्प) °वण्ण ' [°वर्ण]
(प्रौपः से ८, ६०)। २ निश्चल, स्थिर, १०६)
निष्कम्प (सूम १, ४, १, श्रा २८)। ३ दक्खिणिल्ल वि [दाक्षिणात्य दक्षिण दिशा ज्योतिष्क ग्रह-विशेष (सुज्ज २०) वारग,
समर्थ, क्षम (सूम १, ३, १)। ४ प्रतिमें उत्पन्न या स्थित (सम १००० पउम ६, 'वारय पुं [वारक] पानी का छोटा घड़ा
निबिड, प्रगाढ़ (राय)। ५ कठोर, कठिन १५६)। (रायः णाया १, २)। सीम पुं["सीमन्]
(पंचा ४)। ६ क्रिवि. अतिशय, अत्यन्त वेलंघर नागराज का एक प्रावास-पवंत दक्खिणेय वि [दाक्षिणेय] जिसको दक्षिणा
(चा १,७)। केउ पु[ केतु] ऐरखत (राज) दी जाती हो वह (विसे ३२७१)।
क्षेत्र के एक भावी जिन-देव का नाम (पव | दग न [दक स्फटिक रल (राय ७५) । दक्खिण्णन [दाक्षिण्य] १ मुलाहजा,
७) णेमि देखो नेमि (राज)+ धणु दक्खिन्न । मुरव्वतः 'दक्णिपणेण वि एंतो "सोयरिअ वि [ शौकरिक सांख्य मत
[धनुष] १ ऐरवत क्षेत्र के एक भावी सुहन सुहावेसि अम्ह हिप्राई' (गा ८५; स्वप्न का अनुयायी (पिंड ३१४) ।
कुलकर का नाम (सम १५३) । २ भरत-क्षेत्र ६८)। २ उदारता, प्रौदार्य । ३ सरलता, दच्चा देखो दा
के एक भावी कुलकर का नाम (राज) मार्दव (सुर १, ६५, २, ६२, प्रासू)।
दच्छ देखो दक्ख % दृश् । भवि, दच्छ, 'धम्म वि [धर्मन] १ जो धर्म में निश्चल ४ अनुकूलता (दंस २)
दच्छसि, दच्छिहिसि (प्राप्र; उत्त २२, ४४ | हो (बृह १)। २ देव-विशेष का नाम दक्खिय वि[दर्शित] दिखलाया हुआ (भवि)। गा ८१९)
(भावम) °धिईय वि [धृतिक] अतिशय दक्खु देखो दक्ख = दृश् ।
दच्छ देखो दक्ख = दक्षः रोगसमदच्छं पोसह । धैर्यवाला (पउम २६, २२) नेमि पुं
(उप ७२८ टीः परह २, ३-पत्र ४५ | देखो दक्ख = दक्ष (सूप १, २, ३)।
["नेमि राजा समुद्रविजय का एक पुत्र, दक्खु हे २, १७)
जिसने भगवान् नेमिनाथ के पास दीक्षा ली दक्खु वि [पश्य, द्रष्ट्र] १ देखनेवाला। २ |
थी और सिद्धाचल पर्वत पर मुक्ति पाई थी पुं. सर्वज्ञ, जिन-देव (सूम १, २, ३)
दच्छ वि [दे] तीक्ष्ण, तेज (दे ५, ३३)। दमंत
(अंत १४), "पइण्ण वि [प्रतिज्ञ] १ दक्खु वि [दृष्ट] १ विलोकित । २ पुं.
सोर
स्थिर-प्रतिज्ञ, सत्य-प्रतिज्ञ । २ पु. सूर्याभ देव सर्वज्ञ, जिन-देव (सून १, २, ३)। दट्ठ वि [दष्ट] जिसको दाँत से काटा गया हो
का आगामी जन्म में होनेवाला नाम (राय)। दग न [दक १ पानी, जल (सं ५१; दै ३४ । वह ( षड् ; महा)
प्पहारि वि [प्रहारिन्] १ मजबूत प्रहार कप्प)। २ . ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव
करनेवाला। २ पुं. जैनमुनि-विशेष, जो विशेष (ठा २, ३) । ३ लवण-समुद्र में स्थित दट्ठ वि [दृष्ट] देखा हुआ, विलोकित (राज)
पहले चोरों का नायक था और पीछे से एक आवास पर्वत (सम ६८) गब्भ पुं दटुंतिय वि [दार्शन्तिक जिसपर दृशन्त
दीक्षा लेकर मुक्त हुमा था (णाया १,१८ [गर्भ अभ्र, बादल (ठा ४, ४) तुंड दिया गया हो वह अर्थ (उप पृ १४३)
महा), भूमि स्त्री [भूमि एक गाँव का पं तुण्ड] पक्षि-विशेष (पएह १,१)Mदहव्व देखो दक्ख = दृश ।
नाम (प्रावम)। मृढ वि [°मूढ] नितान्त 'पचवन्न पुं [पञ्चवर्ण] ज्योतिष्क देव
मूखं (दे १, ४) रह पुं [रथ] १ एक विशेष, एक ग्रह का नाम (ठा २, ३) दद् ठु वि [द्रष्ट्र ] देखनेवाला, प्रेक्षक, दर्शक .
कुलकर पुरुष का नाम (सम १५०)। २ 'पासाय पुं.[प्रासाद] स्फटिक रत्न का (विसे १८६५)।
भगवान श्री शितलनाथजी के पिता का नाम बना हुमा महल (जं १). "पिप्पली श्री | दट् ठुआण )
(सम १५१)रहा स्त्री [रथा] लोकपाल पिप्पली वनस्पति-विशेष (पएण १)Mदट्छ देखो दक्ख = दृश ।।
प्रादि देवों के अग्र-महिषियों की बाह्य परिषद् भास पुं. [भास] वेलन्धर नागराज का दट् ठूण ।
(ठा ३, १-पत्र १२७), उ पुं एक प्रावास-पर्वत (सम ७३)। मंचग पु दद् ठूणं )
। [युष्] भगवान महावीर के समय
| दज्झमाण | देखो दह = दह।
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