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इतिक- दक्खिणा
दंतिक्क न [दे] चावल का घाटा (बृह १) । दंत न [दे] मां (घमंस १११ ) ~ दतिया श्री [दन्तिका] एक वृक्ष-विशेष, बडी सतावर ( पण १ – पत्र ३२ ) । V दंती श्री [दन्ती] स्वनाम स्वात वृक्ष (पण १ - पत्र ३६ ) ।
दंतुक्खपि
[तोलूखलिक] तापस विशेष, जो दाँतों से ही व्रीहि या धान वगैरह को निस्तुष कर खाते है (निर १३) दंतुर नि [दग्दुर] उन दाँतवाला, जिसके दाँत उभड़-खाबड़ हो । २ ऊँचा-नीचा स्थान; विषम स्थान (दे २, ७७) । ३ भागे श्राया हुआ, आगे निकल आया हुआ (कप्पू ) । रियवि [दरित ] ऊपर देखो, 'विचित पसायर (वा १०३ २००) 1
बंद [] १ व्याकरण-प्रसिद्ध पद प्रधान समास । २ न. परस्पर-विद्ध ( श्रणु) शीत - उष्ण, सुख-दुःख आदि युग्म । ३ कलह, क्लेश । ४ युद्ध, संग्राम (सुपा १४७ कुमा) । दंप पुं.ब. [ दम्पति ] स्त्री-पुरुष युगल जोड़ा, पति-पत्नीसह यह धम्मम्मि समुखमा नि (विरि २४८ ) IV दंभ [दम्भ] १ माया कपट (हे १ पुं १२७) । २ छन्द - विशेष (पिंग ) । ३ ठगाई, वचना ( पव २) |
भगवि ठग, [भ] दम्भी, पाखंडी पूर्ती 'भगो त्ति निभच्छो' (सुख २,१७) भोलि [दम्भोखि] ( २७०)। पुं वज्र कुप्र
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बतलाना ।
दसिंव,
१०४)
(पाथः कुमा) 1
स स [ दर्श] दिखलाना, (हे ४,३२: महा) व दंसअंत श्रभि 1 इंस (भगः सुपा ९२
दक्खा श्री [द्राक्षा] १ ली-विशेष दाख या अंगूर का पेड़ २ फल- विशेष, दाख, अंगूर (कप्पू गुपा २१७ ५३२ ) 1 दक्खायत्री श्री [दाक्षायणी] गौरी, शिवपत्नी ( पाच ) IV दक्खिण [दक्षिण] १ दक्षिण दिशा में मिति(गुर १०२ निपुण, (प्रामा३हिर अनुकूल ४ अपसव्य वामेतर दाहिना (कुमा धी) 1 "मी [पश्चिमा] दक्षिण मौर पश्चिम के बीच की दिशा, नैऋत कोरण (श्रम) पुत्र स्त्री [पूर्वा] श्रग्नि कोण (चंद १) । देखो दाहिण ।
कवकृ. दंसिज्जंत (सुर २, सिअ (नाट) । कृ. ४५४)
इंसिय
दंस तक [ दंश ] काटना दांत से काटना स (नाटाहित्य ७३) दंतु (चाचा) व. दंसमाण (प्राचा) | स[देश] डांस, बड़ा मदद (भग दक्खिणत वि [दाक्षिणात्य ] दि १ मच्छड़ दक्क दक्षिण दिशा श्राचा) २ दन्त-क्षत, सर्प या अन्य किसी में उत्पन्न (राज) 1 विषैले कीड़े से काटा हुआ घाव (हे १, २६० टि)
दक वि] [दष्ट] जो दाँत से काटा गया हो वह ( षड् ) IV
दक्ख सक [दृश् ] देखना, अवलोकन करना । यस्यामि थियो (भि ११६ विक्र
दक्खिणा स्त्री [दक्षिणा ] १ दक्षिण दिशा (जो १) । २ दक्षिण देश (कप्पू) । ३ धर्म
पाइअसद्दमणचो
दंस [दर्श ] सम्यक्त्व, तत्त्व-श्रद्धा (श्रावम ) । -- दंसग वि [दर्शक] दिलानेवाला (४१) दंसण पुंग [दर्शन] १ भवलोकन, निरीक्षण ( पुप्फ १२४ स्वप्न २६ ) । २ चक्षु, नेत्र, आँख (से १, १७) । ३ सम्यक्त्व, तत्त्वश्रद्धा (ठा १५. ३) । ४ सामान्य ज्ञानः 'सामन्नागणं दंसणमे' ( सम्म ५५ ) । ५ मत, धर्मं । ६ शास्त्र- विशेष (ठा ७; ८ पंचा १२) । मोहन [मोह] तत्व श्रद्धा का प्रतिबन्धक कर्म-विशेष (कम्म १, १४) मोहणिजन [ मोहनीय] कर्म-विशेष (ठा २, ४ भववरण न [वरण] कम - विशेष, सानान्य- ज्ञान का भावरक कर्म (ठा १) वरगिज न [वरणीय ] पूर्वोक्त ही अर्थ (सम १५) । देखो दरिसण दंसण न [दंशन] दाँत से काटना ( से १, (१७)1
सण वि [दर्शनन] १ किसी धर्म का धनुयायी (सुपा ४९९) २ दार्शनिक दर्शनशास्त्र का जानकार (कुप्र २६: कुम्मा २१ ) । ३ तत्व-श्रद्धालु (अणु) I दंसणिआ श्री [दर्शन] दर्शन, लोकन 'सुरशिया (श्री १.१) सय वि. [ दर्शनीय [] देखने योग्य, } दंसणीअ ) दर्शन योग्य ( सू २, ७ अभि ६८ महा) ।
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साव सक [ दर्शय् ] दिखलाना सावेद (प्राह ७१) IV
इंसान न [दर्शन] दिखाना (२१) (उप | सावि वि [ दर्शित ] दिखलाया हुआ
(सुपा २८६) |
१६६ ) । संकृ. इंसिया
सिवि [दर्शिन]] देखनेवाला (घाचा; कुप्र ४१३ दं २३) ।
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इंसि वि[दर्शित] दिखलाया हुआ (पास) दंसिअ
दसिंत इंसित
देखो सद
४५३
२७) । प्रयो. दक्खावs (पि ५५४) । कर्म, दीसह (ब) दिस्समाण, । कत्रकृ. दीसंत, दीसमाण ( ५ ७३ नाटचैत ७१) दक्खु द
आज पग, दणं, दिस्स दिवस, दिस्सा (प
महा; पि ५८५: सूत्र १, ३, २, १०पि ३३४) । हे. द ठं (कुमा) । कृ. दट्ठब्ब, दिट्ठव्व (महा उत्तर १०७ ) I दक्ख सक [ दर्शय् ] दिखलाना, 'सोवि हु दक्ख बहुकोउयमंततंताई (सुपा २३२ ) । दक्ख वि [द] निपुण, चतुर होशियार (कप्पः सुपा २८९ श्रा २८ ) । २. भूतानन्द नामक इन्द्र के पदाति-सैन्य का अविपति देव (ठा ५, १३ इक) । ३ भगवान् मुनिसुव्रतस्वामी का एक पौत्र ( पउम २१, २७) 1 दुक्ख देखो दक्खा (पउम ५३, ७६; कुमा) I दक्खज्ज ' [दे] गृध्र, गोध, पक्षि-विशेष (दे ५, ३४) Iv
दक्खण न [दर्शन] [१] अलोकन निरीक्ष २वि देखनेवाला, निरीक्षक (कुमा) 1 दक्खव स [ दर्शय् ] दिखलाना, बतलाना । दक्aas ( हे ४, ३२ ) 1 दक्सपिअर [दर्शित] दिखलाया हुआ
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