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४४८ पाइअसहमहण्णयो
थर-थाला थर पु[३] दही की तर, दही के ऊपर की थव सक [स्तु] स्तुति करना। वकृ. थवंत | थाण देखो ठाण (हे ४, १६; विसे १८५६; मलाई (दे ५, २४)। (नाट)।
उप पू ३३२)। थरत्थर | अक [दे] थरथरना, काँपना । | थव देखो थय = स्तव (हे २, ४६; सुपा थाणय न [स्थानक] पालवाल, कियारी (दे थरथरथरत्थरइ, थरथरेइ, थरहरइ (सट्टि | ४४१) थरहर) ६६, पि २०७० सुर ७, ६, गा
थव पुं[दे] पशु, जानवर (दे ५, २४)। थाणय न [दे] १ चौकी, पहरा; 'भयाणया १६५) । वकृ. थरथरंत, थरथथवइ पुं[स्थपति] वर्धकि, बढई (दे २,
अडवि त्ति निविट्ठाई थाण्याई', 'तो बहुवोराअंत, थरथराअमाण, थरथरेंत (ोध २२)।
लियाए रयणीए थाणयनिविट्ठा तुरियतुरिय४७०; पि ५५८ नाट–मालती ५५; पउम
थवइय वि [स्तबकित] स्तबकवाला, गुच्छ- मागया सवरपुरिसा' (स ५३७, ५४६)। २ ३१, ४४)। युक्त (णाया १, १ प्रौप)।
पं. चौकीदार, चौकी करनेवाला आदमी, थरहरिअ वि [दे] कम्पित (दे ५, २७ भविः थवइल्ल वि [दे] जाँघ फैलाकर बैठा हुआ
पहरेदारः 'पहायसमए य विसंसरिएK थाणसुर १,७; सुपा २१, जय १०) थरु पुं[दे. त्सरु खड्ग-मुष्टि, तलवार की (दे ५, २६)
एसुं' (स ५३७)। मूठ (दे ५, २४)।
थवक पंद] थोक, समूह, जत्थाः 'लब्भइ थाणिज्ज वि [३] गौरवित, सम्मानित (दे थरुगिण पुं [थरुकिन] १ देश-विशेष। २
कुलवहुसुरए थवकमो सयलसोक्खाणं' (वजा
थाणीय वि [स्थानीय] स्थानापन्न (स ६६७)। पुंस्त्री. उस देश का निवासी। स्त्री. गिणिआ थवण देखो थयण (प्राव २)
थाणु पुं[स्थाणु] १ महादेव, शिव (हे २, थल न [स्थल] १ भूमि, जगह, सूखी जमीन थवणिया स्त्री [स्थापनिका] न्यास, जमा
७ कुमाः पाप्र)। २ ठूठा वृक्ष (गा २३२ (कुमा; उप ६८६ टी)। २ ग्रास लेते समय रखी हुई वस्तु; 'कन्नगोभूमालियथवरिणयअव
पाप); 'दवदड्ढथाणुसरिसं' (कुप्र १०२)।
३ खोला। ४ स्तम्भ (राज)। खुले हुए मुंह की फाँक, खुले हुए मुंह की हारकूडसक्खिज' (सुपा २७५)।
थाणेसर न [स्थानेश्वर] समुद्र के किनारे पर खाली जगह (वव ७) इल्ल वि [वत् ] थवय पुं [स्तबक फूल आदि का गुच्छ (दे
का एक शहर (उप ७२८ टीः स १४८)। स्थल-युक्त (गउड), कुक्कुडियंड न [ कुक्कु- | २, १०३; पा)।
थाम वि [दे] विस्तीर्ण (दे ५, २५) । ट्यण्ड] कवल-प्रक्षेप के लिए खुला हुआ मुख थविआ स्त्री दे] प्रसेविका, वीणा के अन्त थाम न [स्थामन्] १ बल, वीर्य, पराक्रम (वव ७) ५ °चार पुं [°चार] जमीन में | में लगाया जाता छोटा काष्ठ-विशेष (दे २,
(हे ४, २६७ ठा ३, १)। २ वि. बलचलना (प्राचा)। 'नलिणी स्त्री [ नलिनी] २५)।
युक्त (निचू ११) । व वि [वत् ] बलवान् जमीन में होनेवाला कमल का गाछ (कुमा) थविय वि [स्थापित] न्यस्त, निहिति (भवि) (उत्त २) । 'य वि [ज] जमीन में उत्पन्न होनेवाला
| थविय वि [स्तुत] जिसकी स्तुति की गई हो थाम पुन [स्थामन्] १ बल । २ प्राण 'धा (पएण १; पउम १२, ३७), यर वि वह, श्वाधित (सुपा ३४३)।
(? था) मो वा परिहायइ गुणणु (? गुण[चर] १ जमीन पर चलनेवाला । २ जमीन थविर वि [स्थविर] वृद्ध, बूढा (धर्मवि
गणु) प्पेहासु प्र प्रसत्तो' (पिंड ६६४)। पर चलनेवाला पंचेन्द्रिय तियंच प्राणी (जीव
थाम न [दे. स्थान] स्थान, जगह (संक्षि ३; जी २०; प्रौप) । स्त्री. री (जीव ३)।
थवी दे] देखो थविआ (दे २, २५) । ४७स ४६, ७४३); (सेवालियभूमितले थलय पुं[दे] मंडप, तृणादि-निर्भित गृह (दे
फिल्लुसमारणा य थामथामम्मि (सुर २, ५, २५)। थसल वि[दे] विस्तीर्ण (दे ५, २५)।
१०५)। थलाहगा। स्त्री [दे] मृतक-स्मारक, शव को
थह पं दे ] निलय, आश्रय, स्थान (दे ५, थार [दे] धन, मेघ (दे ५, २७) । थलहिया गाड़कर उस पर किया जाता एक प्रकार का चबूतरा (स ७५६, ७५७)।
थारुणय वि [थारुकिन] देश-विशेष में था देखो ठा। थाइ (भवि)। भवि. थाहिइ थली स्त्री [स्थली] जल-शून्य भू-भाग (कुमाः
उत्पन्न । स्त्री. "णिया (ोप)। देखो (पि ५२४)। वकृ. थंत (पउम १४, १३४० पात्र) घोडय ' [ घोटक] पशु-विशेष
थरुगिण । भवि) । संकृ. थाऊण (हे ४, १६)। . (वव ७)
थाल पुन [स्थाल] बड़ी थलिया, भोजन थली स्त्री [स्थली] ऊँची जमीन (उत्त ३०, थाइ वि [स्थायिन्] रहनेवाला। णी स्त्री । करने का पात्र (दे ६, १२; अंत ५, उप १७ सुख ३०, १७)
[°नी] वर्ष-वर्ष पर प्रसव करनेवाली घोड़ी । २५७)। थल्लिया स्त्री [दे. स्थालिका] थलिया, छोटा (राज)।
थालइ वि [स्थालकिन] १ थालवाला। २ थाल, भोजन करने का बरतन (परम २०, थागत न [दे] जहाज के भीतर घुसा हुमा पु. वानप्रस्थ का एक भेद (प्रौप)।१६६)
पानी (सिरि ४, २५)।
| थाला स्त्री [दे] धारा (षड्)।
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