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पाइअसद्दमहण्णवो
तुंगिया-तुण्णाय तुंगिया स्त्री [तुङ्गिका] नगरी-विशेष (भग)। तुंबिल्ली स्त्री [दे] १ मधु-पटल, मधपुड़ा। तुट्टिर वि त्रुिटित] टूटनेवाला (कुमाः सण)। तुंगियायण न [दुङ्गिकायन] एक गोत्र का | २ उदूखल, ऊखल (दे ५, २३)। तुट्ठ वि [तुष्ट] तोष-प्राप्त , तृप्त, संतुष्ट, खुश नाम (कप्प)।
तुंबी स्त्री [तुम्बी] १ तुम्बी, अलाबू, लौकी, (सुर ३, ४१; उवा)। तुगा स्त्री [द] १ रात्रि, रात (दे ५, १४)। कद्द (दे ५, १४) । २ जैन साधुओं का एक | तुहि स्त्री [तुष्टि] १ खुशी, प्रानन्द, संतोष १प्रायुध-विशेष; 'मसिपरसुकुंततुंगोसंघट्ट- | पात्र, तपरनी (सुपा ६४१)।
। (स २००; सुर ३, २५; सुपा २४६; निर (काल)।तुंबुरु पु [तुन्बुरु] १ वृक्ष-विशेष, टिंबरू
१,१)। २ कृपा, मेहरबानी (कुप्र १)। तुंगीय पु[तुङ्गीय पर्वत-विशेष (सुर १,
का पेड़ (दे ४, ३) । २ गन्धर्व देवों की एक
तुड प्रक[ तुड] टूटना, अलग होना । तुडइ २००)।
जाति (पएण १; सुपा २६४)। ३ भगवान् हुंड स्त्रीन [तुण्ड] १ मुख, मुँह (गा ४०२) ।
सुमतिनाथ का शासनाधिष्ठायक देव (संति
तुडि स्त्री [टि] १ न्यूनता, कमी । २ दोष, २ अग्र-भाग (निचू १)। स्त्री. डी: कि ७)। ४ शक्रेन्द्र के गन्धर्व-सैन्य का अधिपति
दूषण (हे ४, ३६०) । ३ संशय, संदेह (सुर कोवि जीवियत्थी कंडयइ अहिस्स तुंलीए' देव-विशेष (ठा ७)।
३,१६१)।(सुपा ३२२) ।
दुडिअ न. [ तुटिक ] अन्तःपुर, रनवासः तुंडीर न दे] मधुर-बिम्बी-फल (दे ५, तुक्खार पु[दे] एक उत्तम जाति का अश्व
'तुटिकमन्तःपुरमपदिश्यते' (जोवाभि चू०)। या घोड़ा, 'अन्नं च तत्थ पत्ता तुक्खारतुरंगमा
तुडिअ न [तुटिक] अन्तःपुर, जनानखाना तुंडूअ पु[दे] जीर्ण घट, पुराना घड़ा (दे बहुविहीया' (सुर ११, ४६; भवि) । देखो
(सुज १८-पत्र २६५)। तोक्खार।
तुडिअ वि [त्रुटित ] टूटा हुआ, विच्छिन्न तुंतुक्खुडिअ वि [दे] स्वरा-युक्त (दे ५, | तुच्छ पुंस्त्री [तुच्छा] रिक्ता तिथि, चतुर्थी,
(अच्चु ३३ दे १, १५६; सुपा ८५)।
नवमी तथा चतुर्दशी तिथि (सुज्ज १०, तुडिअन [दे. त्रुटित १ वाद्य, वादित्र, तुंद न [तुन्द] उदर, पेट (दे ५, १४, उप १५)।
बाजा (प्रौप राय जं ३ पण्ह २, ५)। २ ७२८ टी)।
तुच्छ वि [दे] अवशुष्क, सूखा, नीरस बाहु-रक्षक, हाथ का प्राभरण-विशेष (प्रौप; तुंदिला वि[तुन्दिल] बड़ा पेटवाला, तोंदल (दे ५, १४)।
ठा ८ पउम ८२, १०४ राय)। ३ संख्यातुंदिल्ल (कप्पू पि ५६५; उत्त ७)। तुच्छ वि [तुच्छ] १ हलका, जघन्य, निकृष्ट,
विशेषः 'तुडिअंग को चौरासी लाख से गुणने तुंब न [तुम्ब ] तुम्बी, अलाबू, लौकी (पउम हीन (णाया १, ५; प्रासू ६६) । २ अल्प,
पर जो संख्या लब्ध हो वह (इकठा २,४)। २६.३४ प्रोध ३८: कुप्र १३६)। २ गाड़ी | थोडा (भग १, ३३)। ३ शन्य, रिक्त. खाली ।
४ साँधा, फटे हुए वन प्रादि में लगायी जाती की नाभिः 'न हि तुबम्मि विट्ठ प्ररया (प्राचा)। ४ असार, निःसार (भग १८,
पट्टी, पेवन (निचू २)।साहारया हुंति' (आवम) । ३ 'ज्ञाताधर्मकथा' ३)। ५ अपूर्ण (ठा ४, ४)।
तुडिअंग न [दे. त्रुटिताङ्ग] १ संख्यासूत्र का एक अध्ययन (सम) वण न
विशेष, 'पूर्व' को चौरासी लाख से गुणने पर तुच्छइअ) वि[दे] रज्जित, अनुराग-प्राप्त विना संनिवेश-विशेष, एक गांव का नाम तुच्छय (दे ५, १५)।
जो संख्या लब्ध हो वह (इका ठा २, ४)। (सार्ध २५) वीण वि [वीण] वीणा
२ पुं. वाद्य देनेवाला कल्प-वृक्ष (ठा १०० तुच्छिम पुंस्त्री [तुच्छत्व] तुच्छता (वज्जा विशेष को बजानेवाला (जीव ३) ५ वीणिय
सम १७, पउम १०२, १२३)।१५६)। वि [°वीणिक] वही पूर्वोक्त अर्थ (प्रौपः
| तुडिआ स्त्री [तुडिता] लोकपाल देवों के तुज न [तूर्य वाद्य, बाजा (सुज १०)। पएह २, ४; णाया १,१)।
| अग्र-महिषियों की मध्यम परिषद् (ठा
तुट्र प्रक[ट् ,तुड्] १टूटना, छिन्न होना, ३, २) तुंब न [तुम्ब] पहिए के बीच का गोल प्रव
खण्डित होना । २ खूटना, घटना, बीतना। तुडिआ नो [दे. तुटिका] बाहु-रक्षिका, यव (गदि ४३) । वीणा स्त्री [वीणा]
तुट्टइ (महा: सण हे १,११६); 'प्रणवरयं वाद्य-विशेष (राय ४६)!
हाथ का आभरण-विशेष (पएह १, ४, देंतस्सवि तुट्टति न सायरे रयणाई' (वजा
गाया १,१, टी-पत्र ४३)। तुंबरु देखो तुबुरु (इक)। १५६) । वकृ. तुटुंत (सरण)।
तुणय पु[दे] वाद्य-विशेष (दे ५, १६)। तुबा स्त्री [तुम्बा] लोकपाल देवों की एक तुट्ट वि [टिन टूटा हुआ, छिन्न, खण्डित
तुण्णग देखो तुण्णाग (राज)। अभ्यन्तर परिषद् (ठा ३, २)। | (स ७१८ सूक्त १७; दे १, ६२)।
तुण्णण न [तुन्नन] फटे हुए वस्त्र का सन्धान तु'बाग पुन [तुम्बक कद्द , लौकी (दस ५,१ | तुट्टण न [त्रोटन] विच्छेद, पृथक्क्तरण (सूम (उप पृ ४१३)।
१, १,१, वजा ११६)।
तुण्णाग , पुं[तुन्नवाय] वन को साँधनेतुबिणीनी [तुम्बिनी] वल्ली-विशेष (हे ४, तुट्टिअ वि [त्रुटित, तुडित] छिन्न, खण्डित तुण्णाय । वाला, रफू करनेवाला, शिल्पी ४२७ राज)। (कुमा)।
(दि; उप पृ २१०; महा)
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