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जीविओसासिय-जुगवं
पाइअसहमहण्णवो जीविओसासिय वि [जीवितोच्छवासिक] जुअलिअ वि [दे] द्विगुणित (दे ३, ४७)। जुजुरूड वि [दे] परिग्रह-रहित (दे ३, ४७)।
जीवन को बढ़ानेवाला (भग ६, ३३) । जुअलिय देखो जुगलिय (णाया १, १)। जुग पु [युग] १ काल-विशेष-सत्य, त्रेता, जीविगा देखो जीविआ (स २१८)। जुअली स्त्री [युगली] युग्म, जोड़ा (प्राकृ ३८)। द्वापर और कलि ये चार युग (कुमा) । २ जीह प्रक [लज् ] लजा करना, शरमाना। जुआण देखो जुवाण (गा ५७, २४६)। पांच वर्ष का काल (ठा २, ४-पत्र ८६; जीहइ (हे ४, १०३ षड्)।
जुआरि स्त्री [दे] जुआरि, अन्न-विशेष (सुपा सम ७५)। ३ न. चार हाथ का यूप (प्रौपः जीहा स्त्री [जिहवा ] जीभ, रसना (प्राचाः "५४६; सुर १,७१)।
परह १, ४)। ४ शकट का एक अंग, धुर, स्वप्न ७८)। ल वि [वत् ] लम्बी जुइ स्त्री [द्युति] कान्ति, तेज, प्रकाश, चमक गाड़ी या हल खींचने के समय जो बैलों के जीभवाला (पउम ७, १२० नमि ८; सुर (प्रौप; जीव ३) । म, मंत वि[ मत् ] कन्धे पर रखे जाते हैं (उप पृ १३६ उत्त २, ६२)।
तेजस्वी, प्रकाशशाली ( स ६४१; पउम २)। ५ चार हाथ का परिमाण (अरण)। जीहाविअ वि [लज्जित] लजा-युक्त किया १०२, १५६)।
६ देखो जुअ= युग । °Cपवर वि [प्रवर] - गया, लजाया गया (कुमा)।
जुइ स्त्री [युति] संयोग, युक्तता (ठा ३, ३) युग-श्रेष्ठ (भग) 1 पहाण वि [प्रधान] जु देखो जुज (कुमा)। कवकृ. जुज्जंत (सम्म जुइ पुं [युगिन्] स्वनाम ख्यात एक जैन |
१ युग-श्रेष्ठ (रंभा)। २ पुं. युग-श्रेष्ठ जैन १०७ से १२, ८७)।
प्राचार्य की एक उपाधि (पव २६४, गुरु मुनि (पउम ३२, ५७)। जुत्रो [युध] लड़ाई, युद्धः 'जुधि''वातिभए
१) बाहु पु [बाह] १ विदेह वर्ष में जुईम वि [द्युतिमत्] तेजस्वी (सुप्र १, घेप्पई' (विसे ३०१६) ।
उत्पन्न स्वनाम-प्रसिद्ध एक जिनदेव (विपा जुअ [दे] निश्चय-सूचक अव्यय (सा ४)।
२, १)। २ विदेह वर्ष का एक त्रिजुउच्छ सक [जुगुप्स् ] घृणा करना,
खएडाधिपति राजा (प्राचू ४)। ३ मिथिला जुअ देखो जुग (से १२, ६०; इक; पएह निन्दा करना। जुउच्छ। (हे ४, ४ षड्से
का एक राजा (तित्थ)। ४ वि. यूप या खंभा १, १)। ६ युग्म, जोड़ा, उभय (पिंग; सुर
की तरह लम्बा हाथवाला, दीर्घ-बाहु (ठा ६) २, १०२; सुपा १९०)। जुउच्छिय वि [जुगुप्सित] निन्दित
मच्छ पुं[मत्स्य] की एक जाति (विपा जुअवि [युत युक्त, संलग्न, सहित (दे १, (निचू ४)।
१, ५-पत्र ८४ टी) संवच्छर पुं ८१ सुर ४, ६४)। जुंगिय विदे] जाति, कर्म या शरीर से
[संवत्सर] वर्ष-विशेष (ठा ५, ३)। जुअ देखो जुव (गा २२८; कुमाः सुर २, हीन, जिसको संन्यास देने का जैन शास्त्रों में
जुगंतर न [युगान्तर] यूप-परिमित भूमि१७७)। निषेध है (पुप्फ १२५)।
भाग, चार हाथ जमीन (पएह २, १)। जुअइ स्त्री [युवति] तरुणी, जवान स्त्री जुंगिय वि [दे] १ काटा हुआ (पिंड ४४६)।
"पलोयणा स्त्री [प्रलोकना] चलते समय (गउड; कुमा)। २ दूषित (सिरि २२३)।
चार हाथ जमीन तक दृष्टि रखना (भग)। जुअंजुअ (अप) प्र [युतयुत] जुदा-जुदा, जुज सक [युज ] जोड़ना, युक्त करना।
जुगंधर न [युगन्धर] १ गाड़ी का काष्ठअलग-अलग, भिन्न-भिन्न (हे ४, ४२२)। जुंजइ (हे ४, १०६)। वकृ. झुंजत (प्रोघ
विशेष, शकट का एक अवयव (जं१)। २ जुअण [दे] देखो जुअल = (दे) (षड्) 11 ३२६) ।
पुं. विदेह वर्ष में उत्पन्न एक जिन-देव (माचू जुअणद्ध पुं[युगनद्ध ज्योतिष प्रसिद्ध एक जुंजण न [योजन] जोड़ना, युक्त करना, |
१)। ३ एक जैन मुनि (पउम २०, १८)। योग, जिसमें बैल के कंधे पर रखे हुए युग- किसी कार्य में लगाना (सम १०६)।
४ एक जैन प्राचार्य (प्रावम)। जुमा या जुपाठ की तरह चन्द्र और सूर्य झुंजणया। स्त्री [योजना] १ ऊपर देखो
जुगल न [युगल] युग्म, जोड़ा, उभय (अणु, तथा नक्षत्र अवस्थित होते हैं वह योग (सुज झुंजणा (ौप; ठा७)। २ करण-विशेष
राय)। १२–पत्र २३३)। मन, वचन और शरीर का व्यापार; 'मणव
जुगलि वि [युगलिन्] स्त्री-पुरुष के युग्म रूप जुअय न [युतक] जुदा, पृथक् (दे ७, ७३) यणकायकिरिया पन्नरसविहाउ झुंजणाकरणं'
से उत्पन्न होनेवाला (रयरण २२)। (विसे ३३६०)। जुअरज न [यौवराज्य ] युवराज का भाव
जुगलिय वि [युगलित] १ युग्म-युक्त, द्वन्द्वया पद, युवरापन (स २६८)। सृजम [दे] देखो मुंजुमय (उप ३१८)।
सहित (जीव ३) । २ युग्म रूप से स्थित जअल न [युगल] १ युग्म, जोड़ा, उभय जुजिअ वि [दे] बुभुक्षित, भूखा (गाया १, (राज)। (पान)। २ वे दो पद्य जिनका अर्थ एक
१-पत्र ६६, ६८ टी)।
| जुगव वि [युगवत् ] समय के उपद्रव से दूसरे से सापेक्ष हो (था १४)।
जुजुमय न [दे] हरा तृण-विशेष, एक . वर्जित (अणु, राय)। जुअल पु [दे] युवा, तरुण, जवान (दे प्रकार की हरी घास, जिसको पशु चाव से जुगव । म [युगपत् ] एक ही साथ, ३, ४७)।
खाते हैं (स ४८७)।
| जुगवं एक ही समय में, 'कारणकज
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