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गढी श्री [नदी] नट की श्री (गाडा ६) २ लिपि विशेष (जिसे ४६४ टी) ३ नाचनेवाली स्त्री (बृह ३ ) 1 डुली स्त्री [दे] कच्छप, छु (दे ४,२० ) N णडूल न [ नड्डुल ] १ नगर विशेष (मोह ८८) । २ पुं. देश-विशेष ( ती १५ ) 1 [जी] [[]] नेक, मेग (३४,२०) [दे] रख मैथुन ९ दुदिन,
मेघाच्छन दिवस (दे ४, ४७) ड डुली देखो णडुली (दे ४, २०) 1 दात्री [ननान्] पति की बहिन, ननद (1.1) 1
णु [ ननु ] इन ग्रंथों का सूचक श्रव्यय१ अवधारण, निषय (प्रा १६११) । २धाका ३४ प्रश्न (उष सरण प्रति ५५ ) ।
णण्ण पुं [दे] १ कूप, कुआँ। २ दुर्जन, खल । ३ बड़ा भाई (दे ४, ४६ ) । णत्त न [नक्त ] रात्रि, रात (चंद १०) | पत्त देखो 'निवेशयनियनियुक्त परिपुत्तनतपुत्ती (मुवा ६) णत्तंचर देखो णकंचर (कुमा; पि १७० ) । णत्तण न [ नर्तन] नाच, नृत्य (नाट - शकु ८०) । णत्ति स्त्री ६७ टी) 1
[ज्ञप्ति ] ज्ञान ( धर्मसं ८२८,
दि
णन्ति पुं [नप्तृक] १ पौत्र, पुत्र का पुत्र पोता । २ दौहित्र, पुत्री का पुत्र, नाती ( हैं १. १२७ कुमा।.
पतिआ
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स्त्री [नत्री ] १ पुत्र की पुत्री, णती पौत्री (कुमा) । २ पुत्री की पुत्री, नातिन, नतिनी (राज) 1 णन्तु 4 [मप्लू, क] देखो णत्तिअ तुअ (निर २, ११, १३७, सुपा १६२: विपा १, ३) ।
देखो णत्तिआ (बृह १; विपा १,२ ) ।
पाइअसद्दमहो
नढी-मि
णणिआ देखो णतिभा ( ७.१५) १५) । णप्प सक [ज्ञा] जानना । गुप्पद (प्रात्र) 1 त्थ वि [ न्यस्त] स्थापित, निहित ( णाया णभ देखो णह = नभस् (हे १, १८७ कुमा १, १ ३; विसे ε१६) । वसु) 1 णत्थण न [दे] नाक में छिद्र करना (सुर णभसूश्य पुं [ नभःशूरक ] कृष्ण पुलविशेष, राहु ( सुख २० ) IV १४, ४१) ।
त्था स्त्री [दे] नासा-रज्जु, नाथा या नाथ (३४, १७० उवा 1 स्थि[स्] [भावक व्यय
।
(सप्प उवा सम्म ३९ ) -
सुआ
।
णी [क] १ पौत्र की श्री २ दौहित्र की स्त्री ( विपा १, ३) । तुई देखो णत्ती ( विपा १, ३ कप्प तुणि [न] १ पौष, पोता २ प्रपौत्र परपोता (दस ७, १८) ।
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णत्थि वि [ नास्तिक ] १ परलोक श्रादि नहीं माननेवाला (प्रा) २. नास्तिकमत का प्रवर्तक, चार्वाक वाय पुं. [वाद] नास्तिक दर्शन (उप १३२ टी) । णत्थियवाद दि [नास्तिकयादिन] धात्मा आदि के अस्तित्व को नहीं माननेवाला (धर्मवि ४) IV
[न] नाद करना, श्रावाज करना । वकृ. णदंत (सम ५० नाट - मृच्छ १५५) । पद [न] नादावाद
गवां मझे विस्सरं नयई नद' (सम ५० ) । नदी देखो गई (से ६, ६५; पण ११) । णहिअ वि [दे] दुःखित (दे ४, २० ) I दिअ न [ नर्दित] घोष, आवाज, शब्द (राज) -
वि [न] १ परिहित, प्राच्छादित (गा ५२० प ७,१२ सुपा १५५) २ निबन्त्रित, बँधा हुआ (सुपा ३५५)।
।
वि [न] कवचित, वर्मित (धर्मवि ४) । णद्ध वि [दे] प्रारूढ़ (दे ४, १८ ) 1
बवय न [ दे] १ श्रघृणा, घृणा या धिन का अभाव । २ निन्दा (दे ४, ४७) णपत [अप्रभूत] [परांत परिपूर्ण रवि अपर्याप्त,
पत[ अप्रभवत् ] [पय] होता (ग) 1
पुंसन [नपुंसक] नपुंसक, स्लीव, पुंसंग नाम बंड (घोष २१ श्रा १६ नामर्द, (श्रोघ णपुंसय ठा ३, १ सम ३७: महा) । वैय [वेद] कर्म-विशेष, जिसके उदय से स्त्री और पुरुष दोनों के स्पर्श की वाळछा होती है (ठा) 1
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[नम् ] नमन करना, प्रणाम करना । मामि (भग)। वकृ. णमंत, णममाण ( पि ३६७; आचा) । कवकृ णभिज्जंत (६, २५) . णमिण, णमिऊणं, णमेऊण (जो १; पि ५८५; महा) । कृ. णमणिन, णमिवम्बर ४६० उप २११ टी पउम ६, २१) । संकृ. णमिअ ( कम्म ४, १) 1
मंस तक [ नमस्यू ] नमन करना, नमस्कार करना । मंसइ (भग) । वकृ. णमंसमाण (गाया १ १० भग ) । संकृ. णमंसित्ता (ठा ३, १० भग) । हेकु. णमंत्तिए (आ) कृ णमंसणिज, णमंसियव (श्रीप सुपा २५ ४६) -
णमंसण न [ नमस्यन ] नमन,
( पनि ५.भग 1
णमंसणया णमंसणा
नमस्कार
श्री [नमस्यना] प्रणाम,
सिवि [ नमस्थित ] जिसको नमन किया गया हो वह (पह२, ४) । - णमकार देखो णमोकार (उप३०६)। [मन] प्रति प्रणाम, नमना (दे
७, १६: रयण ४६ ) । णमसिअ न [दे] उपयाचितक, मनौती (दे ४, २२) ।
मि [नमि] १ स्वनाम-क्यात एकीसवा जिन देव (सम ४३ ) । २ स्वनाम - प्रसिद्ध राजर्षि (उत्त ३९ ) । भगवान् ऋषभदेव का एक पौत्र (धरण १४ ) 1
णमिअवि [न] प्रव, जिसने नमन किया
हो वह 'पडिवक्खरायाणो तस्स राइणो मिया (महा) 1
णमिअ वि [ नमित ] नमाया हुआ (गा (80) M णमिअ देखो णम ।
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