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णिउस [निवृत्त]] विरत, उपरत, विपुल, विरक्त (प्रा)। सिवि [निर्वृत] पिन सिद्ध ( उत्तर १०४) ।
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तिब्ब देखो डिंजनि पुग् उिति श्री [निवृत्ति ] विराम (प्राह णिउद्धन [नियुद्ध ] बाहु-युद्ध, कुस्ती (उप २१२) ।
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णिउर पुं [निकुर ] वृक्ष - विशेष (गाया १, ε पत्र १६० ) ।
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जिउर न [नपुर ] की के पल का एक आभरण, पजनी, पायल (हे १, १२३; कुमा) । गिरवि[दे] नि, काटा हुआ जी, पुराना (षड्)। बिन [ निकुरम्ब] समूह, जत्था (पाथ सुर ३, ९१; गा ४९५; सुपा ४५४) । णिउब न [ निकुरुम्ब] समूह, जत्था (स ४३७; गा ४६५ श्रपि १७७ ) ।
पिउल पुं [दे] गाठ, गठरी 'एवं बहु भरणऊ समप्पियो दविगनिउलोत्ति' (महा) । णिऊढ वि [निगूढ ] गुप्त, प्रच्छन्न, छिपा (४५)।
} देखो णी=गम् ।
दि सक [निन्दु]] निन्दा करना, बुराई करना, जुगुप्सा करना। रिगदामि (पडि ) । वकृ. दिंत (28) www.forester (garaa), दिशा दिनाचा २ २ १ १ व ४०) हे जिंदिरं निदित्तए (महा ठा २१) कृ. णिदियव्य, जिंदणिज (पराह २ १ उप १०३१ टी खाया १, ३) ।
जिंद वि [निन्द्य ] निन्दा योग्य, निन्दनीय (१) ।
दि (अप) श्री [निद्रा] नींद निद्रा (अपि)। णिएअवि [नियत ] नियम-युक्त, 'श्रणिए जिंदण न [निन्दन] निन्दा, घृणा, जुगुप्सा वारी (६५)
(उप ४४६ ७२८ टी) ।
दिया देखो दिणा (उत्त २२, १) । जिंदणा स्त्री [निन्दना ] निन्दा, जुगुप्सा (धीप घोष ७२१ प २, १) । गिद्य [निन्दक ] निन्दा करनेवाला (पउम १०.२१) ।
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जिंदा स्त्री [निन्दा] घृणा, जुगुप्सा (श्राव ४) । मंदिअ वि [निन्दित] जिसकी निन्दा की गई हो वह बुरा (गा २६७ प्रासू १५८ ) । जिंदिणी स्त्री [दे] कुत्सित तृणों का उन्मूलन (दे ४, ३५) ।
जिंदु स्त्री [निन्दु ] मृत-वत्सा स्त्री, जस बच्चे जीवित न रहते हों ऐसी स्त्री ( अंत ७ श्रा १६) ।
fraj [निम्ब] नीम का पेड़ (हे १, २३०६ प्रासू २६ ) । णिंबोलिया स्त्री [निम्बगुलिका ] नीम का (१५)।
णिएल्ल देखो णिअल्ल = निज ( आवम ) । णिओअ सक [ नि + योजय् ] किसी कार्य में लगाना मोदि (शी) (माट-विक्र ५) ।
जिओज देलो जियोग से २६ अभि २७; सण से ३४८) । १० श्राज्ञा, प्रादेश
( स २१४) ।
णिओइल
[नियोजित ] नियुक्त किया हुप्रा, किसी कार्य में लगाया हुआ (स ४४२; श्रभि EC ) 1
णिओइअ वि [ नैयोगिक ] नियोग-सम्बन्धी ( प्राकृ ९) ।
णिओग [नियोग] मोक्ष, मुक्ति (१, १, १६, ५) ।
णिओग पु' [नियोग] १ नियम, आवश्यक कर्तव्य (विसे १८७६ पंचव ४) । २ सम्बन्ध, नियोजन (१) अनुयोग, सूप की
पाइअसहमणव
व्याख्या (विसे) ४ व्यापार, कार्यं ( वव २) । ५ अधिकार- प्रेरण (महा) ६ राजा नृप प्राज्ञा- विधाता ( जीत ) । ७ गाँव, ग्राम८ क्षेत्र, भूमि (बृह १) संयम ध्यान (सू १, १६) | देखो णिओअ । पुरन [ पुर] १ राजधानो । २ देश, राष्ट्र । ३ राज्य (जीव) ।
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णिओग वि [नियोगिन] नियोग विशिष्ट नियुक्त प्राप्त अधिकारी (७१) णिओजिय देखो णिओइअ (श्रावम) । वि जिंतूग
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णिउत्त-- णिकायणा
णिकर पुं [निकर] समूह, जत्था, राशि, ढेर, (कप्पू)।
णिकरण न [निकरण] १ निश्चय, निर्णय । २ निकार, दुःख उत्पादन (प्राचा) । णिकरियवि [निकरित] सारीकृत, सर्वथा संशोधित ( प ) ।
णिकस देखो जिस (२१२) । णिकाइय वि [निकाचित] १ व्यवस्थापित नियमित (दि) । २ प्रत्यन्त निबिड़ रूप से हुआ ( कम ) ( उवः सुपा ५७६ ) । न. कर्मों का निबिड़ रूप से बन्धन (ठा ४, २ ) । णिकाम सक [नि + कामय् ] अभिलाष करना किामना (१,१०० ११) ।
णि समयंत (सूम १ १०.११) णिकानन [निकाम ] हमेशा परिमाण से ज्यादा खाया जाता भोजन (पिंड ६४५) । णिक्षम [निकाम] १ नियनि २ अत्यन्त अतिशय ( सू २, १०) । णिकाममीण वि [निकाममीण ] श्रत्यन्त प्रार्थी (सूत्र १,१०,८ ) । णिकाय सक [ नि + काचय् ] १ नियमन करना, नियन्त्रण करना । २ निबिड़ रूपसे बांधना । ३ निमन्त्रण देना । णिकाईति (भग) । भूका. पिकासु (भगः सून २, १ ) । भवि. किाइस्संति (भग) । संकृ. णिकाय (भाषा)।
णिकाय पुं [निकाय] १ समूह, जत्था, यूथ, वर्ग: राशि (प्रोध ४०७ विसे ६००; दं २८)मुति (भाषा) ३ आवश्यक अवश्य करने योग्य अनुष्ठान - विशेष ( मणु) । "काय ["काय ] जीव-राशि, छत्रों प्रकार के जीवों का समूह ( दस ४) । णिकाय पुं [निकाच ] निमन्त्रण, न्यौता (सम २१) । णिचय देखो णिकाइय जे
समातहिए का कम्मारविनिकाया (सिरि १२२) | णिकायण न [निकाचन ] निमन्त्रण ( fis ४७५) ।
णिकायणा स्त्री [निकाचना ] १ कारण - विशेष जिससे कमों का निविड़ बल्ब होता है दि २५१५ भाग २ निविड़ बन्धन । ३ दापन, दिलाना (राज) ।
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