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पाइअसद्दमण्णवो
णीजूह-जोलुंछ णीजूह देखो णिज्जूह = दे. निमूह (राज)। णीर न [नीर] जल, पानी (कुमाः प्रासू ६७)। ३)। ३ रामचन्द्र का एक सुभट, वानरणीड देखो णिड (गा १०२; हे १, १०६)। निहि पुं["निधि] समुद्र, सागर (सुपा विशेष (से ४, ५)। ४ छन्द-विशेष (पिंग)। णीण सक [गम् ] जाना, गमन करना। | २०१)। रुह न [रुह] कमल (ती ३)। ५ पर्वत-विशेष (ठा २, ३)। ६ न. रत्न रणीणइ (हे ४, १६२)। णोणंति (कुमा)। वाह पुं[वाह] मेघ, अभ्र (उप पृ ६२)। की एक जाति, नीलम (णाया १, १)। ७ णीण सक [नी] १ ले जाना। २ बाहर ले हर पुं[गृह] समुद्र, सागर (उप पृ ११६)। वि. हरा वर्णवाला (परण १, राय) । कंठ जाना, बाहर निकालना; 'सारभंडाणि णीणेइ,
"हि पु[धि] समुद्र (उप ६८६ टी)। पुं [कण्ठ] १ शक्रेन्द्र का एक सेनापति, असारं अवउज्झई (उत्त १६, २२) । भवि.
कर पुं [कर] समुद्र (उप ५३० टो)। शक्रेन्द्र के महिष-सैन्य का अधिपति देव-विशेष नीणेहिइ (महा)। वकृ. णीणेमाण। कवकृ. ।
णीरंगी स्त्री [दे. नीरङ्गा] सिर का अवगुण्ठन, (ठा ५, १; इक)। २ मयूर, मोर (पान नीणिज्जंत. णीणिज्जमाग (पि ६२; शिरोवस्त्र, घूघट (दे ४, ३१, पात्र) । कुप्र २४७ )। ३ महादेव, शिव (कुम प्राचा) । संकृ. णोणेऊण, णीणेत्ता (महा णीरंज सक [भज] तोड़ना, भगना । २४७)। कणवीर पुं [करवीर ] हरे उवा)। णीरंजइ (हे ४, १०६)।
रंग के फूलोंवाला कनेर का पेड़ (राय) । णीणाविय वि [नायित] दूसरे द्वारा ले | णीरंजिअ वि [भग्न] तोड़ा हुमा, छिन्न 'गुफा स्त्री [गुफा] उद्यान-विशेष जाया गया, अन्य द्वारा मानीत (उप १३६ (कुमा)।
(प्रावम) : मणि पुंस्त्री [मणि] रल-विशेष, टी)।
णीरंध वि [नोरन्ध्रनिश्छिद्र (कप्पू)। नौलम, मरकत (कुमा)। लेस वि [ लेश्य] णीणिअ वि [गत गया हुआ (पास)। णीरण न [दे] घास,चाराः 'विमलो पंजलमग्गं
नोल लेश्यावाला (परण १७)। 'लेसा स्त्री णीणि वि [नीत] १ ले जाया गया (उप | नीरिंधणनीरणाइसंजुतं' (सुपा ५०१)।
[ लेश्या] अशुभ अव्यवसाय-विशेष (सम ५६७ टी; सुपा २६१)। २ बाहर निकाला जीरय वि नीरजस]१रजो-रहित, निर्मल,
११ ठा १)। "लेस्स देखो लेस (परण हुप्रा (णाया १, ४); 'उयरप्पविठ्ठछुरिमाए
१७)। लेस्सा देखो 'लेसा (राज)। °वंत | शुद्धः सिद्धि गच्छइ णीरो' (गुरु १६ पएण नीणिमो प्रतपन्भारो' (सुपा ३८१))
पुं [वत् ] १ पर्वत-विशेष (ठा २, ३ सम ३६, सम १३७ पउम १०३, १३४; सार्ध
१२)। २ द्रह-विशेष (ठा ५, २)। ३ न. णीणिआ स्त्री [नीनिका] चतुरिन्द्रिय जन्तु ११२)। २ पुं. ब्रह्म-देवलोक का एक प्रस्तट
शिखर-विशेष (ठा २, ३)। की एक जाति (जीव १)।
णील वि [नील] कच्चा, पाद (माचा २, ४, णीम ( [नीप] १ वृक्ष-विशेष, कदंब का पेड़। णीरव सक [आ + क्षिप] प्राक्षेप करना । २ न. फल-विशेष (दस ५, २, २१)। पीरवइ (हे ४, १४५)।
२,३)। केसी स्त्री ["केशी] तरुणी, युवति
(वव ४)। णीम पुं[नीप] वृक्ष-विशेष, कदम्ब का पेड़ णीरव सक [बुभुक्ष ] खाने को चाहना।
णीलकंठी स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष, बाण-वृक्ष (दे (पएण १; प्रौपः हे १, २३४)। पीरवइ (हे ४, ५) । भूका. गीरवीन
४, ४२)। णीमम वि [निर्मम ममत्व-रहित (अझ
| णीला स्त्री [नीला] १ लेश्या-विशेष, एक तरह १०६)। णीरव वि [आक्षेपक] आक्षेप करनेवाला
का प्रात्मा का अशुभ परिणाम (कम्म ४, णीमी देखो णीवी (कुमाः षड्)। (कुमा)।
१३; भग) । २ नीलवर्णवाली स्त्री ( षड्) । णीय वि [नीच] १ नीच, अधम, जघन्य | णीरस वि [नीरस रस-रहति, शुष्क (गउड;
णीलिअ वि [निःसृत] निर्गत, निर्यात (उवा; सुपा १०७) । २ वि. अधस्तन (सुपा
महा)। ६००)। "गोय न [गोत्र] १ क्षुद्र गोत्र । णीरसजल न [नीरसजल] आयंबिल तप
णीलिअ वि [नीलित नील वर्ण का (उप २ कर्म-विशेष, जो क्षुद्र जाति में जन्म होने (संबोध ५८)।
पृ ३२)। का कारण है (ठा २, ४ प्राचा)। ३ वि. णीराग) वि नीराग राग-रहित, वीतराग
णीलिआ देखो णीला (भग)। नीच गोत्र में उत्पन्न (सूम २, १)। णीराय (गउड; कुप्र १२५, कुमा)।
णीलिम पुंस्त्री [नीलिमन् नीलत्व, नीलापन, णीरेणु वि [नीरेणु] रजो-रहित, धूल-रहित णीय वि [नीत] ले जाया गया (माचा; उवः | (गउड)।
हरापन (सुपा १३७)। सुपा ६)।
णीरोग वि [नीरोग] रोग-रहित, तंदुरुस्त | णीली स्त्री [नीली] १ वनस्पति-विशेष, नील णीय देखो णिच्च = नित्य (उव) । (जीव ३)।
(परण १; उर ६,५) । २ नोल वर्णवाली स्त्री णीयंगम वि [नीचंगम नीचे जानेवालाणील प्रक|निर +सबाहर निकलना । (षड्) ३ माँख का रोग (कुप्र २१३)। (पुप्फ ४४३)। पीलइ (हे ४, ७६)।
णोलुंछ सक [क] १ निष्पतन करना। २ णीयंगमा स्त्री [नीचंगमा] नदी, तरंगिणी | णील पुं [नील] १ हरा वर्ण, नीला रंग (ठा पाच्छोटन करना। णीलुछइ (हे ४, ७१; (भत्त ११६)।
१)। २ ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २, षड्) । वकृ. णीलुंछत (कुमा)।
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