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(कुमा)।
४२६ पाइअसहमहण्णवो
तडकडिअ-तणुभव तडकडिअ वि [दे] अनवस्थित (षड् )। २)। ३ द्वार के ऊपर का भाग (से १२, तणिअ वि [तत] विस्तीर्ण, फैला हुमा तडकार पुं [तटकार] चमकारा, 'तडितडक्कारो' (सुपा १३३)।
तडी श्री [तटी] तट, किनारा (विपा १,१; तण वितिन] १ पतला (जी ७) । २ कृश, तडतडा प्रक [तडतडाय ] तड़-तड़ आवाज
दुर्दल (पंचा १६) । ३ अल्प, थोड़ा (दे ३, तड्डु । सक [तन्] १ विस्तार करना। २ ५१)। ४ लघु, छोटा (जीव ३)। ५ सूक्ष्म होना। वकृ. तडतडंत, तडतडेंत, तडतड्डव करना । तड्डइ, तड्डवइ (हे ४.१३७)।
(कप्प)। ६ स्त्री. शरीर, काय (दे २, ५६ तडयंत (राज; णाया १, &; सुपा १७६) । भूका-तड्डवीप (कुमा)।
जी ८)। तणुई, तण श्री [तन्वी] तडतडा स्त्री [तडतडा] तड़-तड़ आवाज (स तऋविअ । वि [तत] विस्तीर्ण, फैला हुआ ईषत्प्रारभारा-नामक पृथ्वी (ठा ८ इक)। २५७)।
तड्डिअ ) (पानः महा; कुमाः सुर ३, पज्जत्ति स्त्री [°पर्याप्ति] उत्पन्न होते समय तडफड) अकादे] तड़फना, छटपटाना, ७२)।
जीव द्वारा ग्रहण किये हुए पुद्गलों को शरीर तडफड तड़फड़ाना, व्याकुल होना। तड
| तड्डु स्त्री [तर्दु] काठ की करछो (प्राकृ रूप से परिणत करने की शक्ति (कम्म ३, प्फडइ (कुमा; हे ४, ३६६, विवे १०२)। २०)।
१२)। भव वि [ उद्नव] १ शरीर से तडफडसि (सुर ३,१४८)। वकृ. तडफडंत,
तण सक [तन्] १ विस्तार करना। २ उत्पन्न । २ पुं. लड़का (भवि)। भवा स्त्री डतफडंत (उप ७६८ टी; सुर १२, १६४,
करना । तणइ, तणए (षड्) । कर्म. तणि- [ उद्भवा] लड़की ( भवि ) । भू पुंस्त्री सुपा १७६; कुप्र २६)। ज्जए (विसे १३८३)।
[भू] १ लड़का । २ लड़की (माक)। 'य तडफडिअ वि [दे] १ सब तरफ से चलित,
तण न [दे] उत्पल, कमल (दे ५, १)। वि [ज देखो भव (उत्त १४)। रुह तड़फड़ाया हुआ, व्याकुल (दे ५, ६; स
तण न [तृण] तृण, घास (प्राप्रा उव) । इल्ल | पुंन रुह] १ केश, बाल (रंभा)। २ पुं. ५८९)।
वि[वत् ] तृणवाला (गउड)। जीवि पुत्र, लड़का (भवि)। वाय पुं[वात] तडमड वि [दे] क्षुभित, क्षोभ प्राप्त (दे ५,
विजीविन घास खाकर जीनेवाला (सुपा सूक्ष्म वायु-विशेष (ठा ३, ४)।
३७०) राय पुं [ राज] ताल-वृक्ष, ताड़ | तडयड वि [दे] क्रिया-शोल, सदाचार-युक्त
तणुअ वि [तनुक] ऊपर देखो (पउम १६,
का पेड़ ( गउड )। "विंटय, वेटय पुं (सट्ठि १०७)।
७ आव ५, भग १५; पाप) । [वृन्तक] एक क्षुद्र जंतु-जाति, त्रीन्द्रिय तडयडंत देखो तडतडा।
तणुअ सक [तनय ] १ पतला करना । २
जन्तु-विशेष (राज)। तडवडा स्त्री [दे] वृक्ष-विशेष, पाउली का तणग वि [तृणक] तृण का बना हुआ
कृश करना, दुर्बल करना । तणुएइ (गा ६१; पेड़ (दे ५, ५)।
काप्र १७४)। (माचा २, २, ३, १४)।
तणुआ । अक [तनुकाय] दुर्बल होना, तडाअ न [तडाग] तालाब, सरोवर (गा| तणय पुं [तनय] पुत्र, लड़का (सुपा २४७;
तणुआअ कृश होना । तणुभाइ, तणुप्रातडाग। ११०पि २३१; २४०)। ४२४)।
अइ, तणुप्रापए (गा ३० २६२, ५६) वकृ. तडि स्त्री [ तडित् ] बिजली (पाप)। डंड तणय वि [दे] संबन्धी, 'मह तणए' (सुर ३,
तणुआअंत (गा २९८)। पुं [दण्ड] विद्युइंड (महा)। केस j ८७ हे ४, ३६१)। [केश] राक्षस-वंशीय एक राजा, एक लंका
तणुआअरअ वि [ तनुत्वकारक ] कृशता तणयमुद्दिआ स्त्री [दे] अंगुलीयक, अंगूठी पति (पउम ६, ९६)। "वेअ [वेग (दे ५, ६)।
उपजानेवाला, दौर्बल्य-जनक (गा ३४८)। विद्याधर वंश का एक राजा (पउम ५, तणया स्त्री [तनया] लड़की, पुत्री (कुमा)। | तणुइअ वि [तनूकत] दुबंल किया हुआ, १८)। तणरासि । वि [दे] प्रसारित फैलाया
कृश किया हुआ (गा १२२; पउम १६, ४)। तडिअ वि [तत] विस्तृत, फैला हुआ (पान; तणरासिअहुआ (दे ५, ६)। नणुई स्त्री [तन्वी] १ पृथ्वी-विशेष, सिद्धपाया १, ८-पत्र १३३)।
तणवरंडी स्त्री [दे] उडुप, डोंगी, छोटी नौका शिला (सम २२)। २ पतला शरीरवाली, तडिआ स्त्री [तडित् ] बीजली (प्रामा)।
कृशांगी, कोमलांगी स्त्री (षड्)। तडिण वि [दे] विरल, अत्यल्प (से १३, |
तणसोल्लि स्त्री [दे] १ मल्लिका, पुप्प- ताइकय वि तनूकृत पतला किया हुआ तणसोल्लिया । प्रधान वृक्ष-विशेष (दे ५,६
पाया १,१६)। २ वि. तृण-शून्य (षड़)। तणुग देखो तणुअ (जं २, ३)। तडिणी स्त्री [तटिनी] नदी, तरंगिणी
तणहार तृणहार] १ त्रीन्द्रिय जन्तु तणुज देखो तणु-य (धर्मवि १२८)। (सरा)।
तणहारय । की एक जाति ( उत्त ३६, तणुजम्म पुं[तनुजन्मन् ] पुत्र, लड़का तडिम न [तडिम] १ भित्ति, भीत। २ कुट्टिम, १३८)। २ वि. घास काटकर बेचनेवाला, (धर्मवि १४८)। पाषाण प्रादि से बंधा हुआ भूमितल (से २, | घसियारा (अणु १४६)।
तणुभव देखो तणु-भव (धर्मवि १४२)।
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