________________
तणुवी-तम्भत्तिय पाइअसहमहण्णवो
४२७ तणुवी देखो तणुई (हे २, ११३, | तत्तडिअ न [दे] रंगा हुआ कपड़ा (गच्छ २ तद्धित प्रत्यय की प्राप्ति का कारण-भूत तणुवीआ (कुमा)। २, ४६)।
अर्थ (अणु)। तण स्त्री [तनू ] शरीर, काया (गा ७८; | तत्ति स्त्री [तृप्ति] तृप्ति, संतोष (कुमा, करु
तधा देखो तहा (ठा ३,१७)। पाम दं ५)। २ ईषत्प्रारभारा-नामक पृथिवी | २६) । "ल्ल वि [मत् ] तृप्ति-युक्त,
तन्नय देखो तण्णय (सुर १४, १७४)। (ठा ८)। अ वि [ज] १ शरीर से
तन्हा देखो तण्डा (सुर १, २०३; कुमा)। उत्पन्न । २ पृ. लड़का, पुत्र (उप ६८६)। तत्ति स्त्री [दे] १ आदेश, हुकुम (दे ५, २०;
तप देखो तव = तपस् (चंड)। 'अतरा स्त्री [कतरा] ईषत्प्रारभारा-नामक सण)। २ तत्परता (दे २०)। ३ चिन्ता,
तप्प सक [तप्] १ तप करना। २ अक. पृथिवी, जिसपर मुक्त जीव रहते हैं, सिद्धविचार (गा २, ५१; २७३ मा सुपा २३७
गरम होना। तप्पइ, तप्पंति (पिंग; प्रासू शिला (सम २२)। रुह पुंन [रुह] केश,
२८०)। ४ वार्ता, बात (गा २; वज्जा २)। रोम, बाल (उप ५६७ टी)। ५ कार्य, प्रयोजन (पएह १, २; वव १)।
तप्प सक [तपय ] तृप्त करना। वकृ. तण इय देखो तणुइअ (गउड)। तत्तिय वि [ तावत् ] उतना (प्रासू १५६)।
तप्पमाण (सुर १६, १६)। हेक. 'न इमो तणेण (अप) प्र. लिए, वास्ते (हे ४, ४२५; तत्तिल । वि [दे] तत्पर (षड् ; दे ५, ३;
जीवो सक्को तप्पेउं कामभोगेहि' (प्राउ ५०)। कुमा)। तत्तिल्लगा ५५७: प्रासू ५६)।
कृ. तप्पेयव्व (सुपा २३२) । तणेसि दे] तृण-राशि ( दे ५,३, षड् )। तत्तु (अप) देखो तत्थ = तत्र (हे ४, ४०४७ । तप्प न [तल्प] शय्या, बिछौना (पान)। तण्णय ( [तर्णक] वत्स, बछड़ा (पान: गा कुमा)।
अवि [ग] शय्या पर जानेवाला, सोनेतत्तुडिल्ल न [दे] सुरत, संभोग (दे ५, ६)। वाला (पराह १, २)। १६; गउड)।
तत्तुरिअ वि [दे] रजित ( षड्)। तप्प पुन [तप्र] डोंगी, छोटी नौका (पएह तण्णाय वि [दे] प्राद', गीला (दे ५, २;
| तत्तो देखो तओ (कुमा; जी २९)। "मुह १, १; विसे ७०६)। पाम गउडा से १, ३१, ११, १२६)।
वि [°मुख जिसका मुँह उस तरफ हो वह | तप्प पूंन [तप्र] नदी में दूर से बहकर आता तण्हा स्त्री [तृष्णा] १ प्यास, पिपासा (सुर २, २३४)।
हुमा काष्ठ समूह (णंदि ८८ टी)। (पान)। २ स्पृहा, वाञ्छा, इच्छा (ठा २, ३ | तत्तोहुत्त न दे] तदभिमुख, उसके सामने | तप्पक्खिअ वि [तत्पाक्षिक] उस पक्ष का प्रौप)। लु, लुअ वि [°वत् ] तृप्णा- (गउड)।
(था १२)। वाला, प्यासा 'समरतण्हालू' (पउम ८,८७; तत्थ म [तत्र] वहाँ, उसमें (हे २, १६१)। तप्पज न [तात्पर्य] तात्पर्य, मतलब (राज)। ८, ४७)।
| भव वि [भवत् ] पूज्य ऐसे आप (पि तप्पण न [तर्पण] १ सक्तु, सतुपा, सत्तू (पराह तण्हाइअ वि [वृष्णित] तृषातुर, अति प्यासा
| २६३)। य वि [त्य] वहाँ का रहनेवाला २, ५) । २ स्त्रीन. तृप्ति-करण, प्रीणन (सुपा (धर्मवि १४१)। (उप ५६७ टी)।
१९३)। ३ स्निग्ध वस्तु से शरीर की मालिश तत देखो तय = तत (ठा ४, ४)।
| तत्थ वि [त्रस्त भीत, डरा हुमा (हे २,१६१ (णाया १,१३)। तत्त न [तत्त्व] सत्य स्वरूप, तथ्य, परमार्थ कुमा)।
तप्पणग न [दे] जैन साधु का पात्र-विशेष, (उप ७२८ टी; पुप्फ ३२०)। ओ म | तत्थ देखो तच्च = तथ्य (धर्मसं ३०४ णदि । तरपणी (कुलक १०)। [तस् ] वस्तुतः (उप ६८६)। णु वि
तप्पणाडुआलिआ स्त्री [दे] सक्तमिश्रित ज्ञ] तत्व का जानकार (पंचा १)। तत्थरि [त्रस्तरि] नय-विशेषः 'तत्थरिनएण
भोजन (दश वै० चू०, वसुदेवहिंडी, धम्मितत्त पुं[तप्त] १ तीसरी नरक-भूमि का एक | ठविमा सोहउ मज्झ थुई' (अच्चु ४)।
लहिंडी)। नरक-स्थान (देवेन्द्र ८)। २ प्रथम नरक- | तदा देखो तया%D तदा (गा ६६६)।
तप्पभिई प्र[तत्प्रभृति तबसे, तबसे लेकर भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ४)। तदीय वि [त्वदीय] तुम्हारा (महा)।
(कप्प; णाया १, १)। तत्त वि [तप्त गरम किया हुआ (सम १२५ तदो देखो तओ (हे २, १६०)।
तप्पमाण देखो तप्प = तप॑य । तद्दीअचय न [दे] नृत्य, नाच (दे ५, ८)। विपा १, ६ दे १, १०५)। जला स्त्री [°जला] नदी-विशेष (ठा २, ३)। तहिअस । न [दे] प्रतिदिन, अनुदिन,
| तप्पर वि [तत्पर] आसक्त (दे ५, २०)। तद्दिअसि हररोज (दे ५, ८ गउड; | तप्पुरिस पुं [तत्पुरुष] व्याकरण-प्रसिद्ध तत्त प्र[तत्र] वहाँ । भव, होंत वि [°भवत् ] पूज्य ऐसे माप (पि २६३; तद्दिअह
समास-विशेष (अणु)। पा)।
तद्दोसि देखो त-होसि = त्वग्दोषिन् । अभि ५६)।
तप्पेयव्व देखो तप्प = तर्पय् । तत्तदूसुत्त न [तत्त्वार्थसूत्र] एक प्रसिद्ध जैन | तद्धिय पुं [तद्धित] १ व्याकरण-प्रसिद्ध तब्भत्तिय वि [तभक्तिक] उसका सेवक दर्शन-ग्रन्थ (मझ ७७)।
प्रत्यय-विशेष (पएह २, २; विसे १००३)।। (भग ५, ७)।
तपय।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org