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तम १, ३२ । सातवीं तमप्पभानमा जीत
४२८ पाइअसहमहग्णवो
तब्भव-तरंगलोला तब्भव पु [तद्भव वही जन्म, इस जन्म तमस देखो तम = तमस् , 'अंतरियो वा तय न [य] तीन का समूह, त्रिका 'कालके समान पर-जन्म। मरण न [ मरण] | तमसे वा न वंदई, वंदई उ दौसंतो' (पव२)। तए वि न मयं' (चउ ४५; श्रा २८)। वह मरण, जिससे इस जन्म के समान हो तमस्सई स्त्री तमस्वती घोर अन्धकारवाली तय देखो तया= तदा। पभिइ अ परलोक में भी जन्म हो, यहाँ मनुष्य होने से रात (बृह १)।
[प्रभृति] तब से (स ३१६) । प्रागामी जन्म में भी जिससे मनुष्य हो ऐसा तमा स्त्री [तमा] १ छठवीं नरक-पृथिवो तय देखो तया = त्वच । 'क्खाय वि मरण (भग २१, १)।
(सम ६६ ठा ७)। २ अधोदिशा (ठा १०)। [खाद] त्वचा को खानेवाला (ठा ४, १)। तब्भारिय [तद्भार्य] दास, नौकर, कर्म
तमाड सक [भ्रमय ] घुमाना, फिराना। | तया अ[तदा] उस समय (कुमा)। चारी, कर्मकर (भग ३, ७)।
तमाडइ (हे ४, ३०)। वकृ. तमाडंत तया स्त्री [त्वच ] १ त्वचा, छाल, तब्भारिय [तद्भारिक] ऊपर देखो (भग (कुमा)।
चमड़ी (सम ३६)। २ दालचीनी (भत्त तब्भूम विभौम] उसी भूमि में उत्पन्न
तमाल पुं [तमाल] १ वृक्ष-विशेष (उप ४१) । मंत वि [मत् ] त्वचा
१०३१ टीः भत्त ४२)। २ न. तमाल वृक्ष वाला (गाया १,१)। "विस पू[विष] (बृह १)। तर्भात [1] शीघ्र, जल्दी (प्राकृ ८१)। का फूल (से १, ६३)।
सपं की एक जाति (जीव १)। तम प्रक [तम्] १ खेद करना। २ सक.
तमिस पुं[तमिस्र] पाँचवाँ नरक का एक तयाणंतर न [तदनन्तर] उसके बाद (प्रौप)। इच्छा करना । तमइ (प्राकृ. ६६)। नरक-स्थान (देवेन्द्र ११)।
तयाणि । अ[तदानीम् ] उस समय (पि तमिस न [तमिस्त्र] १ अन्धकार (सूम १, तयाणि ) ३५८ हे १, १०१)। तम पुं[दे] शोक, अफसोस (दे ५, १)।
५, १)। गुहा स्त्री [गुहा] गुफा-विशेष तयाणुग वि [ तदनुग] उसका अनुसरण तम पुंन [तमस् ] १ अन्धकार । २ अज्ञान
करनेवाला (सून १, १, ४)। (हे १, ३२; पि ४०६; प्रौप; धर्म २)।
तमिसंधयार पुतमिस्रान्धकार] प्रबल | तर अक [४] कुशल रहना, नीरोग रहना। "तम पु[तम] सातकी नरक-पृथिवी का
अन्धकार, घोर अंधेरा (सूम १, ५, १)। । जीव (कम्म ५, पंच ५)। 'तमप्पभा स्त्री
तरई (पिंड ४१७)। तमिस्स देखो तमिस (दे २,२६)। [तरना] सातवों नरक-पृथिवो (अणु)।
तर अक[स्वर ] त्वरा होना, जल्दी होना, तमी स्त्री [तमी] रात्रि, रात (गउड)। 'तमा स्त्री [तमा] सातवीं नरक-पृथिवी
तेज होना । तर (विसे २६०१)। तमुकाय देखो तमुक्काय (भग ६, ५–पत्र (सम ६६, ठा ५)। तिमिर न ["तिमिर]
तर अक [ शक् ] समर्थ होना, सकना । तरइ २,६८)। १ अन्धकार (बृह ४)। २ अज्ञान (पडि) ।
(हे ४, ८६)। वकृ. तरंत (मोघ ३२४) । तमुक्काय तमस्काय] अंधकार-प्रचय (गा | ३ अन्धकार-समूह (बृह ४)। "प्पभा स्त्री
तर सक[४] तैरना, तरइ (हे ४, ८६)। [प्रभा] छठवों नरक-पृथिवी (पएण १)। तमुय वि [तमस् ] १ जन्मान्ध, जात्यन्ध ।
कर्म, तरिज्जइ, तीरइ (हे ४, २५०; गा तमंग तिमझ] मतवारण, घर का वरण्डा, २ अत्यन्त अज्ञानी (सूम २, २)।
७१)। वकृ. तरंत, तरमाण (पामः सुपा छजा (सुर १३, १५६)। तमोकसिय वि [तमःकाधिक] प्रच्छन्न क्रिया |
१८२)। हेकृ. तरिउं तरीडं (गाया १, तमंधयार [तमोन्धकार] प्रबल अन्धकार करनेवाला (सूत्र २, २)।
१४ हे २, १९८)। कृ. तरिअव्व (श्रा (पउम १७, १०)। तम्म प्रक[तम् ] खेद करना। (गा ४८३)।
१२; सुपा २७६)। तमण न [दे] चूल्हा, जिसमें आग रखकर | तम्म देखो तम = तम् । तम्मइ (प्राकृ. ६६)।
तर न [तरस् ] १ वेग । २ बल, पराक्रम । रसोई की जाती है वह (दे ५, २)। तम्मण वि [तन्मस् ] तल्लोन, तच्चित्त (विपा
मल्लि वि [°मल्लि] १ वेगवाला। २ बल
वाला। 'मल्लिहायण वि [ मल्लिहायन तमणि पुंस्त्री [दे] १ भुज, हाथ । २ भूर्ज, वृक्ष-विशेष की छाल, भोजपत्र (दे २, २०) ।
तरुण, युवा (प्रौप)। तम्मय चि [तन्मय] १ तल्लीन, तत्पर । २ तमय पुं[समक] १ चौथा नरक का एक
उसका विकार (पएह १, १) ।
। तरंग पुं तरङ्ग] १ कल्लोल, वीचि, लहर
(परह १,३; औप)। गंदण न [नन्दन] नरक-स्थान (देवेन्द्र १०)। २पाँचवीं नरक- ताम्म न [दे] वस्न, कपड़ा (गउड)।
नृप-विशेष (दंस ३) । 'मालि पुं[मालिन भूमि का एक नरक-स्थान (देवेन्द्र ११)। | तम्मिर वि [तमिन्] खेद करनेवाला (गा| मन मारमा तमस न [तमस् ] अन्धकार, 'तमसाउ मे ५८६)।
१ एक नायिका। २ कथा-ग्रंथ-विशेष (दंस ३)। दिसा य' (पउम ३६, ८)।
तय वि [तत विस्तार-युक्त (दे १, ४६; से तरंगलोला स्त्री [तरङ्गलोला] बप्पभट्टिसूरितमस वि तामस] अन्धकारवाला (दस ५,
इस ५, २, ३१; महा)। २ न. वाद्य-विशेष (ठा २,
२, ३१; महा)। २ न. वाद्य-विशेष (ठा २, कृत एक अद्भुत प्राकृत जैन कथा-ग्रंथ (सम्मत्त १, २०)।
१३८)।
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