________________
पाइअसहमहण्णवो
तलहट्ट-तस
तलहट्ट सक [सिच्] सींचना । तलहट्टइ, तल्लेस वि [तल्लेश्य] उसी में जिसका २ धान्य को खेत से काटकर भक्षण योग्य तलहट्टए (सुपा ३६३)। वकृ. तलहटुंत | तल्लेस्स) अध्यवसाय हो, तल्लीन, तदासक्त बनाने की क्रिया (सुपा ५४६)। ३ तवा, (सुपा ३९३)। विपा १, २, राज)।
पूषा आदि पकाने का पात्र (द २, ५६)। तलहट्टिया स्त्री [दे] पर्वत का मूल, पहाड़ तल्लोविल्लि स्त्री [दे] तड़फड़ना तड़फना, तवणीय देखो तवणिज (सुपा ४८)। के नीचे की भूमिः तलहटी, तराई, गुजराती व्याकुल होनाः 'थोडइ जलि जिम मच्छलिया | तवमाण देखो तव = तप । में-तळेटी (सम्मत्त १३७)।
तल्लोविल्लि करंत' (कुप्र८६)। | तवय वि [दे] व्यापृत, किसी कार्य में लगा तलाई स्त्री [तड़ागिका ] छोटा तालाब | तव प्रक [तप्] १ तपना, गरम होना । २ | हुमा (दे ५, २)। (कुमा)।
सक. तपश्चर्या करना । तवइ (हे १, १३१; | तवय पुं [तपक] तवा, भूनने का भाजन तलाग। न [तड़ाग तालाब, सरोवर (प्रौप; गा २२४)। भूका. तविसु (भग)। वकृ. (विपा १, ३, सुपा ११८७ पास)। तलाय हे १, २०३; प्रातः गाया १, तवमाण (श्रा २७)।
| तवसि देखो तवस्सिः 'पयमितपि न कप्पइ 4 उव)। तब सक [तापय ] गरम करना। तवेइ
| इत्तो तवसीण जं गंतुं' (धर्मवि ५३, १६)। तलार पुं [दे] नगर-रक्षक, कोतवाल (दे ५,
(भग)।
| तवस्सि वि [तपस्विन्] १ तपस्या करनेवाला ३, सुपा २३३, ३६१; षड् ; कुप्र १५५)। तव पुंन [तपस् ] तपस्या, तपश्चर्या (सम
(सम ५१ उप ८३३ टी)। २ पुं. साधु, मुनि, तलारक्ख पुं [दे. तलारक्ष] ऊपर देखो
ऋषि (स्वप्न १८)। (श्रा १२)।
११ नव २६; प्रासू २८)। गच्छ पुं [गच्छ] जैन मुनियों की एक शाखा, गण
तविअ वि [तप्त] तपा हुमा, गरम (हे २, तलाव देखो तलाग (उवाः पि २३१)।
१०५; पात्र)। विशेष (संति १४)। गण पुं [गण] तलिअ वि [तलित] भूना हुआ, तला हुआ
तविअ वि [तापित] १ गरम किया हुआ। पूर्वोक्त ही अर्थ (द्र ७०)। °चरण, चरण (विपा १, २)।
२ संतापितः 'एयाए को न तविनो, जयम्मि न [°चरण] १ तपश्चर्या, तपः-करण (सूम तलिआन [दे] उपानह, जूता, (प्रोष
लच्छीए सच्छंद' (सुपा २०४ महाः पिंग)। तलिगा ३९ ९८; बृह १)। १, ५, १; उप पू ३६०; अभि १४७)।२
तविअ वि [तपित] तीसरी नरक-भूमि का तलिण वि [तलिन] १ प्रतल, सूक्ष्म, बारीक तप का फल, स्वर्ग का भोग (णाया १, ६)। (पएह १, ४; औप; दे ५, ६)। २ तुच्छ, चरणि वि [°चरणिन्] तपस्या करनेवाला
एक नरक स्थान (देवेन्द्र ८)। क्षुद्र (से १०, ७) । ३ दुर्बल (पाप)। (ठा ५, ३) । देखो तवों ।
सविआ स्त्री [तापिका] तवा का हाथा (दे
१, १६३)। तलिम पुन [दे] १ शय्या, बिछौना (दे ५, | तव देखो थव (हे २, ४६; षड् )।
तवु देखो तउ (पउम ११८, ८)। २०; पान; णाया १, १६-पत्र २०१७ तव देखो थुण । तवइ (प्राकृ ६७)।
तवो देखो तओ (रंभा)। २०२ गउड)। २ कुट्टिम, फरस-बन्द जमीन तबग्ग पुं [तवर्ग] 'त से लेकर 'न' तक पाँच | तवो देखो तब = तपस् । 'कम्म न [ कर्मन्] (द ५, २०; पात्र)। ३ घर के ऊपर की
अक्षर । पविभत्ति न [प्रविभक्ति] | तपः-करण (सम ११)। धण पुं [धन] भूमि । ४ वास-भवन, शय्या-गृह । ५ भ्राष्ट्र, नाट्य-विशेष (राय)।
ऋषि, मुनि (प्रारू)। 'धर पुं [धर] भूनने का भाजन-बरतन (दे ५, २०)।
तवण पुंतिपन] १ सूर्य सूरज (उप १०३१ तपस्वी, मुनि (पउम २०, १९५; १०३, तलिमा स्त्री [तलिमा] वाद्य-विशेष (विसे | टी; कुप्र २१५)। २ रावण का एक प्रधान १०८) । वण न [वन] ऋषि का प्राश्रम ७८ टी, गदि टी)।
सुभट (से १३, ८५)। ३ न. शिखर-विशेष | (उप ७४५; स्वप्न १६)। तलुण देखो तरुण (णाया १, १६; रायः (दीव)।
तव्वणिय वि [दे] सौगत, बौद्ध, बुद्ध-दर्शन वा १५)।
| तवण पुं[तपन] तीसरी नरक-भूमि का एक | का अनुयायी; 'तव्वणियाण बियं विसयसुहतलेर [दे] देखो तलार (भवि)। नरक-स्थान (देवेन्द्र ८) तणयास्त्री [तनया] | कुसत्थभावणाघरिणयं' (विसे १०४१)। तल्ल न [दे] १ पल्वल, छोटा तालाब (दे तापी नदी (हम्मीर १५)।
तव्वन्निग वि [दे. तृतीयवर्णिक] तृतीय ५, १६) । २ तुण-विशेष, बरू (दे ५, १६; | तवणा स्त्री [तपना] प्रातापना (सुपा ४१३)।। पाश्रम में स्थित (उप पृ २६८) । पएह २, ३) । ३ शय्या, बिछौना (दे ५, तवणिज न [तपनीय] सुवर्ण, सोना (पएह तविह वि [तद्विध] उसी प्रकार का (भग)। १६ षड्)। । १,४; सुपा ३९)।
तस प्रक [त्रस् ] डरना, त्रास पाना । तसइ तल्लक पुं [तल्लक] सुरा-विशेष (राज)। तवणिज पुंन [तपनीय] एक देव-विमान | (हे ४, १९८) । कृ. तसियव्व (उप ३३६ तल्लड न [दे] शय्या, बिछौना (दे ५, २)।। (देवेन्द्र १३२)।
टी)। तल्लिच्छ वि [दे] तत्पर, तल्लीन, (दे ५, तवणी स्त्री [दे] १ भक्ष्य, भक्षण-योग्य कण तस पुं [स] १ स्पर्श-इन्द्रिय से अधिक ३; सुर १, १३ पास)।
मादि (द ५, १; सुपा ५४८ वज्जा ६२)। इन्द्रियवाला जीव, द्वीन्द्रिय आदि प्राणी (जीव
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org