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णिहाण-णीछूट पाइअसहमहण्णवो
४१७ णिहाण न [निधान] वह स्थान जहाँ पर णिहिल वि [निखिल] सब, सकल (अच्चु णिहो अ [न्यग् ] नीचे (सूत्र १, ५,१, ५)। धन आदि गाड़ा गया हो, खजाना, भण्डार पारा ५५)।
णिहोड सक [नि + वारय] निवारण करना, (उवा: गा ३१८ गउड)।
णिहिल्लय देखो णिहिअ (सुख २, ४३)। निषेध करना। णिहाय ' [दे] १ स्वेद, पसीना (द ४, ४६)। णिही स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष (राज)। रिणहोडइ (हे ४, २२) । वकृ. णिहोडंत २ समूह, जत्था (दे ४, ४६; से ४, ३८ णिहीण वि [निहीन न्यून (कुप्र ४५४)। । (कुमा)। स ४४६ भविः पान; गउड सुर ३, २३१)। णिहीण वि [निहीन] तुच्छ, खराब, हलका, णिहोड सक [ पातय् ] १ गिराना । २ नाश णिहाय पुं[निघात] प्राघात, प्रास्फालन क्षुद्र, "अस्थि निहीणे देहे कि रागनिबंधणं करना । णिहोडइ (हे ४, २२)। (से १५, ७०; महा)।
तुज्झ ? (उप ७२८ टी)।
| णिहोडिय वि [पातित] १ गिराया हुमा णिहाय देखो णिहा= नि +धा, नि + हा।
णिहु स्त्री [स्निहु] औषधि-विशेष (जीव १)। (दंस ३) । २ विनाशित (उव ५६७ टी)। णिहाय पुं [निट्ठाद] अव्यक्त शब्द (सुख |
णि वि [निभृत] १ गुप्त, प्रच्छन्न, छिपाणी सक [गम् ] जामा, गमन करना । णोइ
हुमा (से १३,१५; महा)। २ विनीत, अनुद्धत - (हे ४, १६२; गा ४६ अ) भवि. णीहसि णिहार ' [निहार] निगम (पएह १, ५ (से ४, ५६) । ३ मन्द, धीमा (पाम महा)।
(गा ७४६)। वकृ. जिंत, णत (से ३, २; ४ निश्चल, स्थिर (उत्त १६)। ५ असंभ्रान्त,
गउड; गा ३३४; उप २६४ टीः गा ४२०)। णिहारिम न [निहरिम] जिसके मृतक
संभ्रमरहित (दस ६)। ६ घृत, धारण किया। संकृ. जिंतूण, नीउं (गउड विसे २२२) । शरीर को बाहर निकालकर संस्कार किया हुमा । ७ निर्जन, एकान्त । ८ अस्त होने के
णी सक [नी] १ ले जाना । २ जानना । ३ जाय उसका मरण (भग)। २ वि. दूर जानेलिए उपस्थित (हे १, १३१)। ६ उपशान्त
ज्ञान कराना, बतलाना । ऐइ, रणयइ (हे ४, वाला, दूर तक फैलनेवाला (पएह २, ५)। । | (परह २, ५)।
३३७; विसे ६१४)। वकृ, णेत (गा ५०% णिहाल देखो णिभाल। णिहालेहि (स णिहुअ वि [दे] १ व्यापार-रहित, अनुद्युक्त,
कुमा)। कवकृ. णिज्जंत, णीअमाण (गा १००)। वकृ. णिहालंत, णिहालयंत (उप | निश्चेष्ट (दे ४, ५०; से ४, १० सूम १,८
६८२ अ से ६, ८१, सुपा ४७६)। संकृ. ६४८ टी; ६८६ टो)। संकृ. णिहालेर्ड बृह ३) । २ तूष्णीक, मौन (दे ४, ५०;
णइअ, उ, णेउआण, णेऊण (नाट(गच्छ १)। कृ.णिहालेयव्य (उप १००७)।
| सुर ११, ८४)। ३ न. सुरत, मैथुन (दे ४, मृच्छ २६४ कुमा; षड्; गा १७२) । हेकृ.
५० षड्)। णिहालण न [निभालन] निरीक्षण, अवलोकन णिहअण देखो णिहुवण (गा ४८३)।
णेउं (गा ४६७, कुमा)। .अ, णेअव्व (उप पृ ७२, सुर ११, १२, सुपा २३)।
(पउम ११६, १७; गा ३३६)। प्रयो. णिहुआ स्त्री [दे] कामिता, संभोग के लिए णिहालिअ वि [निभालित] निरीक्षित
ऐयावइ (सण)। प्रार्थित स्त्री (दे ४, २६)। (पापः स १००)।
णीअअ वि [दे] समीचीन, सुन्दर (पिंग)। णिहुण न [दे] व्यापार; धन्धा (दे ४. २६)।
णीआरण न [दे] बलि-घटी, बलो रखने का णिहि वि [निधि] १ खजाना, भंडार (णाया
णिहुत्त वि [दे] निमग्न, हूबा हुआ (पउम | छोटा कलश (दे ४, ४३)। १, १३)। २ धन मादि से भरा हुआ पात्र । १०२, १९७)।
णीइ स्त्री [नीति] १ न्याय, उचित व्यवहार, (हे १, ३५, ३, १६ ठा ५, ३); 'अच्छेरंव
णिहुत्थिभगा स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष न्याय्य व्यवहार (उप १८६; महा)। २ नय, रिणहि विष सग्गे रज्जं व अमप्रपाणं व (परण १-पत्र ३५)।
वस्तु के एक धर्म को मुख्यतया माननेवाला (गा १२५)। ३ चक्रवर्ती राजा की संपत्ति
णिहुव सक [ कामय् ] संभोग का अभिलाष मत (ठा ७) । सत्थ न [शास्त्र] नीतिविशेष, नैसर्प आदि नव निधि (ठा )। करना । णिहुवइ (हे ४, ४४)।
प्रतिपादक शास्त्र (सुर ६, ६५; सुपा ३४०) 'नाह पुं [ नाथ] कुबेर, धनेश (पास)।
णिहुवण न [निधुवन सुरत, संभोग (कप्पू: महा)। णिहि पुत्री [निधि लगातार नव दिन का
काप्र १९४); 'णिहुवणचुंबिप्रणाहिकूविमा' णीका स्त्री [नीका ] कुल्या, नहर, सारणि उपवास (संबोष ५८)। (मै ४२)।
(कुमा)। णिहिअ वि [निहित] स्थापित (हे २, णिहअ न [दे] १ सुरत, मैथुन (दे ४,२६)। णीखय वि [निःक्षत] निखिल, संपूर्णः 'नय प्राप्र)।
२ वि. अकिञ्चित्कर (विसे २६१७)। देखो नीखयवक्खाणं तीरइ काऊण सुत्तस्स' (विचार णिहिण्ण वि [निर्मिन] विदारित (अच्नु णीहूय।
णिहेलण न [दे] १ गृह, घर, मकान (द ४, णीचअ न [नीचैस् ] १ नीचे, अधः (हे णिहित्त देखो णिहिअ (गा ५६५, काप्र | ५१ हे २, १७४; कुमा, उप ७२८ टी; स १, १५४) । २ वि. नीचा, प्रधः-स्थित ६०६ प्राप्र)।
१८० पामः भवि)।२ जघन, बी के कमर (कुमा)। णिहिप्पंत देखो णिहा = नि+धा। | के नीचे का भाग (द ४, ५१)। | णीछूट देखो णिच्छूट (णंदि)।
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