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पाइअसमायो
णिवुड्ढि स्त्री [निवृद्धि] १ वृद्धि का अभाव | णिवेसण न [ निवेशन] गृह, घर (उत्त (ठा २, ३ ) । २ दिन की छोटाई (भग) । णिवुण देखो गिउण (प्रच्नु ε६) । वित्त देखो शिवट्ट = निवृत्त ( स ५८८ ) । forget [ निवृति ] परिवेष्टन (प्राकृ १२ ) । शिवूढ देखो णिव्वूढ (सू २, ७, ३८ ) । निवेश एक [नि + वेद ] सम्मानपूर्वक
१३, १८) । णिवेसात्रियवि [निवेशित] बैठाया हुआ (महा)।
णिव्व न [नीघ्र ] छदि, पटल प्रान्त ( ४, ४८ पान ) ।
विन[नी] खगर के ऊपर का खरेल (दि १५९)।
ज्ञापन करना, अर्ज करना। २ अर्पण करना । ३ मालूम करना। कर्म. रिगवेइजइ (निचू १ ) संकृ. णिवेइऊण ( स ५६६ ) । हेक. णिवेएडं (पंचा १५) । कृ. णिवेयगीअ ( स १२० ) । णिवेग व [निवेदक ] सम्मानपूर्वक ज्ञापन करनेवाला, प्रार्थी (सुपा २६८ ) ।
णिव्व न [दे] १ ककुद, चिह्न २ व्याज, बहाना (दे ४, ४०)।
[निर्वल ] वल्कल-रहित,
णिव्वक्कर वि [द] परिहास-रहित, सत्य (कुत्र १६७) । from fa (पि ६२) । देखो गिव्वत्त = निर् + वत्तंय् । णिव्वट्ट संकृ. णिव्यट्टित्ता (ठा २, ४ ) । विट्ट (प) देखो विट्ट (हे ४, ४२२ टि)। णिब्वट्टग व [निवर्तक] बनानेवाला, कर्ता
( श्राव ४) ।
व्विट्टिम देखो विट्टिम ( दस ७, ३३ ) । निव्वट्टिय वि [निर्वर्तित] निष्पादित, बनाया हुआ (प्राचा २, ४, २) । गिवड एक [च] दुःख को छोड़ना रिव्ess ( पड् ) ।
पिट [भू] होगा, जुदा १ पृथक् होना। २ सष्ट होना। रिगव्वss (हे ४, ६२) ।
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णिव्वड देखो णिव्वल = निर्+ पद् (सुपा १२२) । ब्लिडि वि [भूत] पृथ-भूत जो जुदा हुआ हो (से ६, ८८) २ स्पष्टीभूत, जो व्यक्त हुआ हो (सुर ७, १०४) । विडिअ वि [निष्पन्न ] सिद्ध, कृत, निवृत्त (पाच): पत्तयन्याय सम्म इमीए विडिया' (सुपा १२२) । rose [a [] नग्न, नंगा (दे ४, २८ ) । विवि [निर्माण] चित वर्जित, बिना घाव का ( गाया १,३: औप ) । णिव्वण्ण एक [निर्+ वर्ण] श्लापा करना, प्रशंसा करना। २ देखना । वकृ. व्विण्णंत (से ३, ४४, उप १०३१ टी; महा) ।
णिवेअण [ निवेदन] १ सम्मान पूर्वक णिवेअणय ज्ञापन, विनय (पंचा १
}
निवू ११) । २ नैवेद्य देवता को अर्पित श्रन्न आदि (पउम ३२. ३)
णिवेणा स्त्री [निवेदना ] ऊपर देखो (खाया १,५ ) पिंड [ "पिण्ड ] पुं देवता को अर्पित ग्रन्न श्रादि, नैवेद्य ( निजू
।
११) । णिवेअय देखो णिवेअग (सुपा २२५ स ५१६) ।
विश्व [निवेदित] सम्मान शापित (महा भवि
णिवेदइत्तअ वि [निवेदयितृ] निवेदन करनेवाला अभि १३९) ।
निवेस सक [मि + वेश ] स्थापना करना, बैठाना शिवेस शिवेनेद (सा कप्प ) । संक्र. णिबेसत्ता, निषेसिडें गिवेसऊण णिवेसित्ता, निवेसिय ( उत ३२ महा सण कप्प; महा) । कृ. १९४ ) |
वेिस
[निवेश] १ स्थापन, प्राधान (ठा १३ उप पृ २३० ) । २ प्रवेश (निचू ४) । ३ श्रावास स्थान, डेरा (बृह १) । गिवेस [नृपेश] महाराजा चक्रवर्ती राजा (सुपा ४६३) ।
णिवेसण न [निवेशन] १ स्थान, बेठना (घाचा २ एक हो दरवाजेवाले अनेक गृह ( श्राव ४) ।
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शिवुटि णिव्यर
णिव्वत्त सक [ निर् + वर्त्तय् ] बनाना, करना, सिद्ध करना । णिव्वत्तेइ (महा) । संकृणिव्यत्तिऊण, विऊण (मा)। वित्त एक [निर्वृत्तम्] गोल बनाना, वर्तुल करना । कवकृ. णिव्वत्तिजमाण (भग) ।
विश्वत व [निर्वृत] रचित निर्मित ( महाः श्रौप ) ।
वित्त व [निर्वयें] बनाने योग्य, साध्य ( प्राकृ २० ) ।
जिव्यन्त न [निन] निष्पत्ति, रचना, धना (उप १० ) । विकरणिया, गिरजा श्री [धिकराणी] श बनाने की क्रिया (ठा २, १, भग ३, ३) ।
वित्तणया स्त्री [निर्वर्त्तना ] ऊपर देखो मिठप्रत्तणा (पररण ३४ उत्त ३) । णिव्यत्तय वि [निर्वर्त्तक] निष्पन्न करनेवाला,
बनानेवाला (विसे ११४२३ स ५६३ हे २, ३०) ।
णिव्यत्ति श्री [निर्वृत्ति ] निष्पत्ति, विनिर्माण (पिसे २००२) देखो ब्यति । वित्तिय [न] निष्पादित बनाया हुप्रा ( स ३३६: सुर १५, २२१: संक्षि १० ) । व गोलाकार निव्यतिय [[]]कार किया हुधा (भाग
[] परिभुक्त (दे ४, १८) णिव्वय अक [ निर + वृ ] शान्त होना, उपशान्त होना । कृ. णिव्वयणिज्ज (स ३०१) ।
गिव्वय वि [निर्वृत] १ उपशान्त, शम-प्राप्त (१४, २) २ परित परिणामप्राप्त ( दसनि १ ) । विवि [नि] सहित नियमव्रत-रहितः रहित (पउम २८८ उप २६४ टी ) । व्णिन [निर्वचन ] १. निरुक्ति, शब्दार्थ कथन ( ग्राम ) । २ उत्तर, जवाब (ठा १० ) । ३ वि. निरुक्ति करनेवाला, निर्वाचकः 'जाव दविप्रोवोगो, अपच्छिमविप्रप्पनिव्वयरणों'
( सम्म ८ ) । णिव्ययणिज्ज पिम्पर एक
देखो णिव्वय = निर् + वृ । [ कथय् ] दुःख कहना
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