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४१४ पाइअसद्दमहण्णवो
णिसाम-णिसुढिअ णिसाम वि [निःश्याम] मालिन्य-रहित, णिसिद्ध वि [निपिद्ध] प्रतिषिद्ध, निवारित णिसीहिआ स्त्री [निशीथिका] १ स्वाध्यायनिर्मल (से ६, ४७)। (पंचा १२)।
भूमि, अध्ययन-स्थान (पाचा २, २, २)। णिसामण देखो णिसमण (सुपा २३)। णिसिय विन्यस्त] स्थापित (धर्म ७३)। २ थोड़े समय के लिए उपात्त स्थान (भग णिसामिअ वि [दे. निशमित] १ श्रुत, णिसियण न [निषदन] उपवेशन (पव)। १४, १०)। ३ प्राचाराङ्ग सूत्र का एक प्राकणित (दे ४, २७; गा २६)। २ उप- णिसिर सक [नि + सृज] १ बाहर निका- अध्ययन (पाचा २, २, २)। शमित, दबाया हुआ। ३ सिमटाया हुआ, लना । २ देना, त्याग करना। ३ करना। णिसीहिआ स्त्री [नेपेधिकी] १ स्वाध्यायसंकोचितः 'नस्सामियो फणाभोयो' (स णिसिरइ (भास ५, भग); "रिणरवराहाण । भूमि (सम ४०)। २ पाप-क्रिया का त्याग ३५८)।
निसि रंति जे न दंडं, तेवि हु पाविति निव्वाणं" (पडि; कुमा)। ३ व्यापारान्तर के निषेध रूप णिसामिर वि [निशमयितु] सुननेवाला (सुर १५, २३४) । कम. निसिरिज्जइ, प्राचार (ठा १०)। देखो णिसेहिया ।
निसिरिज्जए (विले ३५७) : तकृ. निसिरंत णिहिणी जी निशीथिनी] रात्रि, रात णिसाय वि [दे] प्रसुप्त (दे ४, ३५)। (पि २३५)। कवकृ. निसिरिजमाण (पि (उप पृ १२७) । 'नाह पुं [नाथ] चन्द्रमा णिसाय वि [निशात] शान दिया हुआ,
२३५) । संकृ. णिसिरित्ता (पि २३५)। (कुमा)। तीक्ष्ण (पान)। प्रयो. निसिराति (पि २३५)।
णिसुअ वि [दे. निश्रुत श्रुत, प्राणित णिसाय निषाद] १ चाण्डाल, एक प्राचीन णिसिरण न [निसर्जन] १ निस्सारण (भास जाति (दे ४,३५) । २ स्वर-विशेष (ठा ७)। २)। २ त्याग (णाया १,१६)।
महा, पाय)। णिसावंत वि [निशातान्त तीक्ष्ण धार
णिसिरणया) स्त्री [निसर्जना] १ त्याग, णिसंद [निसुन्द] रावण का एक सुभट
णिसिरणा दान (आचा २, १, १०)। पिडा वाला (पान)। णिसास सक [निर + श्वासय् ] निःश्वास |
२ निस्सारण, निष्कासन (भग)।
णिसुंभ सक [नि + शुम्भ ] मार डालना, |णिसीअ अक [नि + पद् बैठना। णिसीआइ डालना। वकृ. णिस्सासएंत (पउम ६१,
व्यापादन करना । कवकृ. णिसुंभंत, णिसु(भग)। वकृ. णिसीअंत, णिसीअमाण ७३)।
भंत (से ५, ६६, १४,३; पि ५३५)। णिसास देखो णीसास (पिंग)।
(भग १३, ६; सूअ १, १, २)। संकृ.
णिसुंभ पुं [निशुम्भ] १ स्वनाम-ख्यात एक
णिसी इत्ता (कप्प) । हेकृ. णिसीइत्तए णिसि देखो णिसा (हे १, ८; ७२; षड् :
राजा, एक प्रतिवासुदेव (पउम ५, १५६ (कस)। कृ. णिसीइयव्य (णाया १, १, सुर १, २७) । पालअ पुं [पालक]
पव २११) । २ दैत्य-विशेष (पिंग)। भग)। छन्द-विशेष (पिंग)। भत न [भक्त] न भक्त णिसीअण न [निषदन] उपवेशन, बैठना
| णिसुंभण न [निशुम्भन] १ मर्दन, व्यापादन, रात्रि-भोजन (ोघ ७८७ )। भुत्त न (उप २६४ टी; स १८०)।
विनाश । २ वि. मार डालनेवाला (सूत्र १, [भुक्त] रात्रि भोजन (सुपा ४६१)।
णिसीआवण न [निषादन] बैठाना (कस ४, णिसुंभा स्त्री [निशुम्भा] स्वनाम-ख्यात एक णिसिअ देखो णिसीअ रिणसिप्रइ ( सण;
२: टी)। कप्प) । संकृ. रिणसिइत्ता (कप्प)।
___ इन्द्राणी (गाया २; इक)। | णिसीढ देखो णिसीह - निशीथ (हे १, २१६; णिसुभिय वि [निशुम्भित] निपातित, व्यासिअ वि [निशित] शान दिया हुआ, कुमा)।
पादित (सुपा ४६०)। तीक्ष्ण (से ५, ४६; महाः हे ४, ३३०)। णिसीदण देखो णिसीअण (प्रौप)।
णिसुट्ट । वि दे] ऊपर देखो (हे ४, सिक्क सक [नि+सिच् ] प्रक्षेप करना,
णिसीह पुन [निशीथ] १ मध्य रात्रि (हे १, णिसुट्ठि | २५८ से १०, ३६) । डालना। संकृ. णसिक्किय (माचा)।
| २१६; कुमा)। २ प्रकाश का प्रभाव (निचू णिसुड देखो णिसुढ = नम् । निसुडइ (षड् )। णिसिज्जा देखो णिसज्जा (कप्प; सम ३५; ३)। ३ न. जैन आगम-ग्रन्थ विशेष (रणंदि)। णिसुड्ढ देखो णिसुट्ट (हे ४, २५८ टि)।
ठा ५, १) । ३ उपाश्रय, साधुनों का स्थान णिसीह पुं [नृसिंह] उत्तम पुरुष, श्रेष्ठ मनुष्य णिसुढ अक [नम्] भार से आक्रान्त होकर (पंच ४)। (कुमा)।
नीचे नमना, झुकना। णिसुढइ (हे ४,१५८)। सिज्झमाण देखो णिसेह = नि + षिध् । णिसीहिअ वि [नैशीथिक] निज के लिए णिसुढ सक [नि + शुम्भ ] मारना, मार णिसिट्ठ वि [निसृष्ट] १ बाहर निकाला __ लाया गया है ऐसा नहीं जाना हुआ भोज-। कर गिराना । कवकृ. णिसुढिजत (से ३, २ दत्त, प्रदत्त (पाच)। नादि पदार्थ (पिड ३३६)।
णिसुढिअ वि [नत] भार से नमा हुआ ३ अनुज्ञात (बृह १)। ४ बनाया हुआ। णिसीहिआ स्त्री नैपेधिकी] १ शव-परिष्ठा- (पान)। क्रिवि. 'आमयहराई ...पउमो निहो निसिट्ठ पन-भूमि, श्मशान-भूमि (अणु २०)। २ णिसुढिअ वि [निशुम्भित] निपातित (से उवरणमेई' (उप ६८६ टी)। - बैठने की जगह (राय ६३)।
१२, ६१)।
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