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णिवत्तय - णिवुड्ढ
वित्तय वि [निवर्त्तक] १ वापस आनेवाला, लौटनेवाला । २ लौटानेवाला, वापस करनेवाला ( है २, ३०; प्राप्र ) । वित्त स्त्री [ निवृत्ति ] निवत्तन ( उव) । णिवत्तिअवि [निवर्त्तित] रोका हुआ, प्रतिषिद्ध ( स ३६४) ।
विति वि [निर्वर्त्तित] निष्पादित, 'निव
त्तिया सवपूया' (स ७६३) । पिडि देखी शिवन्ति ( १ ) । विनदेखो विण्ण (७६०)। शिवय धक [नि + पत्] समानान्त होना । निवयंति (पव ८४ टी ) । fras देखो fras | शिवइजा, (कृष्ण का ३,४) व णिवयंत ( उप १४२ टी; सुर ४, ६५: कप्प ) । विय [निपात] नीचे गिरना, श्रधः - पतन (सुर १५, १६७)। शिवरुण [निवरुण] वृक्ष-विशेष (उप पुं १०३१ टी) ।
णिवस क [नि + वस् ] निवास करना, रहना । रिणवस (महा) । वकृ. णिवसंत ( सुपा २२५) । हेकृ. णिवसिड (सुपा ४६३) ।
णिवसण न [निवसन] वस्त्र, कपड़ा (ग्रभि १३९; महाः सुपा २०० ) ।
विसिय वि [निवसित] जिसने निवास
किया हो वह (महा)
विसिर वि [निवसितृ ] निवास करनेवाला ()
विह सक [ गम् ] जाना, गमन करना । (४१५२) ।
विदे
विह अक [नश] भागना, पलायन करना । ४. १७० ) । शिवहर [वि] पीसना ४, १५)। णिवह पुन [निषद] समूह राशि जत्था से २, ४२० र १, ३१ प्रा १४४) ताफलना १५२ ) । विहन [] समृद्धि (४,२६) वैभव । निर्वाह वि [नष्ट ] नाश- प्राप्त (कुमा) । निवि [पिष्ट] पीसा हुआ (कुमा शिवाइ वि [निपातिन् ] गिरनेवाला ( श्राचा) ।
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निवारण करनेवाला, रोकनेवाला, 'उवसग्गनिवारण एसो ( पनि १० ) । शिवाय देखो णिवारग (उप ५३० टी) । णिवारि वि [निवारिन्] निवारक, प्रतिपेधक । स्त्री. रिणी (महा) । पिारयवि [निवारित] रोका हुआ निषिद्ध (भगः प्रासू १६९)। शिवास [निवास] १ निवन रहता। २ वासस्थान, देश (कुमा महा)
णिवासि वि [निवासिन्] निवास करनेवालारहनेवाला (महा)।
णिविअ देखो णिमिअ = न्यस्त ( से १२.३० ) | णिविट्ट देखो णिवट्ट = निवृत्त (सरण) । बैठा जिवि [निविष्ट] १ स्थित ठा हुधा (महा)। २ श्रासक्त, लीन (राज) । विट्ठि वि [निर्विष्ट ] लब्ध, उपात्त. गृहीत (ठा ५.२ ) । कप्पट्ठि स्त्री [कल्पस्थिति ] जैन साधुनों का एक तरह का श्राचार (ठा ५, २) ।
णिविड देखो णिचिड (षड्; हे १, २४०) । णिविटिज देखो फिबिडिय (गड पि २४० ) । शिवाय वि [ निवात] पवन-रहित, स्थिर णिवित्ति खो [निवृत्ति ] १ निवर्तन. उपरम प्रवृत्ति का प्रभाव (विसे २७६८ स १५४) । ( परह २ ३ स ४०३ ७४३) । २ वापस लौटना प्रत्यावर्तन (सुपा ३३२ ) ।
णिवायण न [निपातन] १ गिराना, निपा- णिविद्ध वि [दे] १ सोकर उठा हुआ । २
तन, ढाहना ( परह १, २ ) । २ व्याकरणप्रसिद्ध शब्द- सिद्धि, प्रकृति आदि के बिना विभाग किये ही श्रखण्ड शब्द की निष्पति (विले २३) ।
निराश, हताश । ३ उद्भट । ४ नृशंस, निर्दय (३४, ४८) । (दे
विचार एक [निवार ]निवारण करना, निषेध करना, रोकना । रिणवारेइ (उव महा) ।
यात (महा) व निवारीअंत, निवारिमाण (नाट–मुख १५४६ १३५) । . णिवारिवव्य, णिवारेयश्व (सुषा ४८२: महा निवा[निवारक] निषेध करनेवाला रोकनेवाला (सुर १, १२६; सुपा ६३९ ) । निवारण न [निवारण] १ निषेध, वावट (भग ६.३३) । २ शीत आदि को रोकनेवाला, गृह, वन भादि: 'न मे निवारणं प्रत्थि, छवित्ताणं न विजई (उत्त २७) । ३ वि.
णिविन्न वि [निर्विज्ञ] विशिष्ट ज्ञान से रहत (तंबु ४५) । जिविस [नि विश् ] ना. अक + बैठना दिसंत (१२) । णिविस (घ) देखो मिस (मनि णिविसि [ निवेष्ट ] बेठनेवाला (सण) निवममाण वि[म्युद्यमान] नीयमान जो ले जाया जाता हो वह ( आचा २, ११, ३) । शिवुडु र [निदृष्ट] वरसा हुमा (धाचा २, ४, १, ४) ।
णिवुड सक [नि+बधे ] व्या १ करना, छोड़ना । २ हानि करना । वकृ. निवुड्माण (११) संक. णिवु हिता (१)
णिवाण न [निपान] कूप या तालाब के पास पशुओं के जल पीने के लिए बनाया हुआ जल - कुण्ड, चरही ( स ३१२ ) । 'साला स्त्री [शाला] पशुओं का पानी पिलाने का स्थान (महा) । विएजाणिवाय देखो णिवाड । शिवाय (कुमा) । माण शिवा (१३१) ।
पाइअसद्दमणव
णिवाड सक [ नि + पातय् ] नीचे गिराना । (६०) व निवाडयंत (स ६८) णिचाइना (जीव ) fणवाडि वि [निपातित ] नीचे गिराया हुआा
जिवाहिर वि [निपातयितु] नीचे गिराने
वाला ( स ) ।
शिवाय [दे] स्वेद, पसीना (३४, ३४२ सुर १२, ८) ।
शिवाय [निपास] १ पान अधःपतन, गिरना (गा २२२ सुपा १०३ ) । २ संयोग, संबन्धः ‘दिट्ठिणिवाना ससिमुहीए' (गा १४८: उत्त २० गउड) । ३ च प्र श्रादि व्याकरणप्रसिद्ध अय्यय राह २ २ २०३ ) ४ विनाश (पिंड)।
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