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णिरुत्तिअ-णिली
पाइअसद्दमहण्णवो
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णिरुब्भन देखो गिरंभ।
णिरुत्तिअ वि [नैरुक्तिक] व्युत्पत्ति के अनुसार णिरुवम वि [निरुपम असमान, असाधारण णिरूविअ वि [निरूपिन] १ देखा हुया (से जिसका अर्थ किया जाय वह शब्द (अरण)।। (प्रौप महा)।
१३, १३; सुपा ५२३) । २ मालोचना कर णिरुत्तिय न [नरुत्तिक] निरुक्ति, व्युत्पत्ति; णिरुवयरिय वि [निरुपचरित] वास्तविक, कहा हुआ । ३ विवेचित, प्रतिपादित (हे २, 'नो कथवि नारिणत्ति निरुत्तिय चेइसद्दस्स' तथ्य (गाया १, ५) ।
४०)। ४ दिखलाया हुआ । ५ गवेषित (प्रारू)। (संबोध-१२)।
णिरुवयार वि [निरुपकार] उपकार-रहित णिरूसुअ वि [निरुत्सुक] उत्कण्ठा-रहित णिरुदर वि [निरुदर] छोटा पेटवाला, (उव)।
(गउड)। अनुदर । स्त्री. रा (पएह १, ४)। णिरुवलेव वि [निरुपलेप] लेप-वजित, प्र. णिरूह ' [निरूह] अनुवासना-विशेष, एक णिरुद्ध वि [निरुद्ध] १ रोका हुआ (णाया लिप्त (कप्प); 'रयरणमिव णिरुवलेवा' (पउम तरह का विरेचन (णाया १, १३) । १,१) । २ आवृत, आच्छादित (सूत्र १, २, १४, ६४)।
णिरेय वि [निरेजस् ] निष्कम्प, स्थिर ३) । ३ . मत्स्य की एक जाति (कप्प)। णिरुवसग्ग वि [निरुपसर्ग] १ उपसर्ग-रहित, (भग २५, ४)। णिरुद्ध वि [निरुद्ध] थोड़ा, संक्षिप्त (सूत्र १, उपद्रव-वजित (सुपा २८७) । २ पुं. मोक्ष, णिरंयण वि [निरेजन] निश्चल, स्थिर १४, २३)।
मुक्ति (पडि; धर्म २) । ३ न. उपसर्ग का (कप्पः प्रौप)। णिरुद्वव्या
प्रभाव (दव ३)।
णिरोणाम पुं [निरवनाम नम्रता-रहित, णिरुवह्य वि [निरुपहत] १ उपघात-रहित, गर्वित, उद्धत (उव) । णिरुलि घुश्री [दे] कुम्भीर-नक्र की प्राकृति- अक्षत (भग ७, १)। २ रुकावट से शून्य, जिरोय वि [नीरोग रोग-रहित (प्रौप; णाया वाला एक जन्तु (दे ४, २७)। अप्रतिहत (सुपा २६८)।
१, १)। णिरुवकिट्ट देखो णिरुवक्किट्ठ (भग)। णिरुवहि वि [निरुपधि] माया-रहित, णिरोव पुं [दे] प्रादेश, प्राज्ञा, रुक्का (सुपा णिरुवक्कम विनिरुपक्रम] १ जो कम न निष्कपट (दसनि १)।
२२४)। किया जा सके वह (मायुष्य) (सर २.१३२णिरुवार सक ग्रहJ ग्रहण करना । रिगरु-णिरोक्यार वि अनिरुपकारापकर सुपा २०४)। २ विघ्नरहित, अबाध, 'नियबारइ (हे ४, २०६)।
नहीं माननेवाला (मोघ ११३ भा)। निरुवक्कमविक्कमप्रकृतसमग्गरिउचक्को' (सुपा
णिरुवारिअ वि [गृहीत] उपात्त, गृहीत णिरोवयारि वि[निरुपकारिन्] ऊपर देखो (कुमा)।
• (उव)। णिरुवकय वि [दे] अकृत, नहीं किया हुआ णिरुवालभ वि [निरुपालम्भ] उपालम्भ- णिरो
णिरुवालंभ वि [निरुपालम्भ] उपालम्भ-णिरोविअ देखो णिरूविअ (सुपा ४५६%; शून्य (गउड)।
महा)। णिरुवक्किट वि [निरुपक्लिष्ट] क्लेश-वजित,
णिसव्विग्ग वि [निरूद्विग्न] उदग-रहित गिरोह [निरोध] रुकावट, रोकना (ठा दुःखरहित (भग २५, ७)। (णाया १,१-पत्र ६)।
४, १७ प्रौपः पान)। णिरवक्केस वि [निरुपक्लेश] शोक प्रादि
णिरुस्साह वि [निरुत्साह] उत्साह-हीन णिरोग वि [निरोधक] रोकनेवाला (रंभा)। केशों से रहित (ठा ७)। (सूम १, ४, १)।
णिरोहण न [निरोधन] रुकावट (पएह १, णिरुवक्ख विनिरुपाय] शब्द से न कहा
णिरूव सक [नि + रूपय] १ विचार कर १)। जा सके वह, अनिर्वचनीय (धर्मसं २४१;
कहना । २ विवेचन करना। ३ देखना । ४ णिलंक पुं[दे] पतग्रह, पोकदान, ष्ठीवन
दिखलाना । ५ तलाश करना । निरुवेइ पात्र, थूकने का पात्र (दे ४, ३१)। णिरुवग वि [निरुपक] प्रतिपादक (सम्मत्त
(महा) । वकृ. णिरूविंत, निरूवमाण णिलय पुं[निलय] घर, स्थान, माश्रय (से १९०)
(सुर १५, २०५; कुप्र २७५) । संकृ. २, २गा ४२१; पाम)। णिरुवगारि वि [निरुपकारिन्] उपकार को
णिरूविऊण (पंचा ८) । कृ.णिरूवियव्य णिलयण न [निलयन] वसति, स्थान नहीं माननेवाला, प्रत्युपकार नहीं करनेवाला (पंचा ११) । हेकृ. निरूविउं (कुप्र २०८)। (विसे)। (प्रावम)। -णिरूवण न [निरूपण] १ विलोकन, निरी
णिलाड न [ललाट] भाल, कपाल (कुमा)। णिरुबग्गह वि [निरुपग्रह] उपकार नहीं क्षण (उप ३३७)। २ वि. दिखलानेवाला णिलिअ देखो णिलीअ । णिलिअइ (षड्) । करनेवाला (ठा ४, ३)। स्त्री. °णी (पउम ११, २२) ।
णिलिंत नीचे देखो। णिरुवट्राणि वि [निरुपस्थानिन] निरुद्यमी, णिरूवणया स्त्री [निरूपणा] निरूपण (उप गिलिज । सक[नी + ली]१ प्राश्लेष करना, आलसी (प्राचा)।
णिलीअभेंटना, गले से लगाना । २ दूर णिरुवदव वि [निरुपद्रव] उपद्रव-रहित, णिरूवाविअ वि [निरूपित] गवेषित, जिस करना। ३ प्रक. छिप जाना। णिलिजइ णिलीप्राबाधा-वजित (औप)।
की खोज कराई गई हो वह (स ५३६७४२) अइ (हे ४,५५)। णिलिजिजा (कप्प)। वकृ.
६३०)।
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