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साब)।
३८८ पाइअसहमहण्णवो
णिअंस-णिअय णिअंस सक [नि+ वस् ] पहनना। रिणयं-णिअट्टि स्त्री [निवृत्ति १ निवर्तन, पीछे णिअत्त देखो णिअट्ट = निवृत्त (पउम २२,
सइ (महा)। संकृ.णियंसित्ता (जीव ३ | हटना (प्राचू १)। २ अध्यवसाय-विशेष ६२: गा ६५८; सुपा ३१७)। पि ७४) । प्रयो. णियंसावेइ (पि ७४) (सम २६)। ३ मोह-रहित अवस्था (सूत्र णिअत्तण न [निवर्तन] १ भूमि का एक णिअंसण न [दे. निवसन] वस्त्र, कपड़ा १, ११) बायर न [ बादर] १ गुण- नाप (उवा) । २ निवृत्ति, व्यावर्तन (प्राव ४)। (दे ४, ३८; गा ३५१, पाम गउडः परह | स्थानक-विशेष (सम २६)। २ पुं. गुण-णिअत्तणिय वि [निवर्तनिक ] निवर्तन १, ३; सुपा १५१ हेका ३१ ।। स्थानक-विशेष में वर्तमान जीव (प्राव ४)। परिमाणवाला (भग ३, १)। णअंसणि स्त्री [निवसनी] वस्त्र, कपड़ा | णिअट्रिय वि [निवर्तित] व्यावत्तित, पीछे | णिअत्ति देखो णिअट्टि (उत्त ३१) । (पब ६२)।
हटाया हुआ (ौप)।
णिअत्थ वि [दे] १ परिहित, पहना हुआ णिअक्क सक [दृश ] देखना। रिणका | णिअट्टिय वि [निर्वतित] रचित, निर्मित, (दे ४, ३३; प्रावमः भवि)। २ परिधापित, (प्राप्र) बनाया हुआ (प्रौप)।
जिसको वस्त्र आदि पहनाया गया हो वह णिअक्कल विदे] वर्तुल, गोलाकार पदार्थ | णि अट्टिय वि [न्यर्दित] अनुगत, अनुसृत | 'रिणयत्था तो गणियाए' (विसे २६०७)। (दे ४, ३६; पाप्र)।
(ोप)।
|णिअद सक [नि + गद] कहना, बोलना। णिअग वि [निजक] आत्मीय, स्वकीय (उवा)।
णिअड न [निकट] १ निकट, समीप, नज- सिप्रददि (शौ) (नाट-चैत ४५)। वकृ.
दीक, पास (गा ४०२; पान सुपा ३५२)। णिअंदत (नाट)। णिअच्छ सक [दृश ] देखना । णिमच्छइ
२ वि. पास का, समीप का (पान)। णिअद्दिय देखो णिअट्टिय = न्यदित (राज)। (हे ४, १८१)। वकृ. गिअच्छंत, णिअ
णिअडि वि [निकृतिन् मायावी, कपटी णिअद्धण न [दे] परिधान, पहनने का वस्त्र च्छमाण (गा २३८; गउडा गा ५००)।
(दस ६, २३)। संकृ. णिअच्छिऊण, णिअच्छि (सुर
(षड्)। णिअडि स्त्री [निकृति] की हुई ठगाई को | | णिअम सक [नि+ यमय ] नियन्त्रित १, १५७; कुमा)। कृ. णि अच्छियव्व
ढकना-छिपाना (राय ११४) । (गउड)|v
करना, नियम में रखना । संकृ. णिअमेऊण णिअच्छ सक [नि + यम् ] १ नियमन |
णिअडि स्त्री [दे. निकृति] माया, कपट (पि ५८६)।
(दे ४, २६, परह १, २, सम ५१; भगणिअम सक [नि + यमय ] १ रोकना। करना, नियन्त्रण करना। २ अवश्य प्राप्त करना। ३ जोड़ना। संकृ. णिअच्छइत्ता
१२, ५, सूत्र २, २, गाथा १, १ २ वचन से कराना। ३ शरीर से कराना ।
प्राव ५)। (सूम १, १, १, २)
निप्रमे (प्राचा २, १३, १)। णिअडिअ वि [निगडित नियन्त्रित, जकड़ा णिअम णिअच्छ अक [नि+ गम् ] १ संगत होना,
नियमा१निश्चय (जी १४) । हुप्रा (गा ५५६; उप पृ ५२; सुपा ६३)। युक्त होना। २ सक. अवश्य प्राप्त करना।
२ ली हुई प्रतिज्ञा, व्रतः 'परिवाविज्जइ णिअडिअ वि [निकटिक] समीप-वर्ती, णिप्रमा रिंगमसमत्ती तुमे मज्झ (उप ७२८ नियच्छइ (सून १, १, १, १०, १, १, २,
| पार्श्व में स्थित (कप्पू)। १७; १, १, २, १८)
टी)। ३ प्रायोपवेशन, संकल्प-पूर्वक अनशनणिअच्छि वि [दृष्ट] देखा हुआ (पास)।
| णिअडिल्ल वि [निकृतिमत्] कपटी, मायावी मरण के लिए उद्यम (से ५, २)। "साप (ठा ४, ४ औपः भग ८, ६)
[°सात् ] नियम से (प्रौप)। सो प्र णिअट्ट अक [नि+ वृत् ] निवृत्त होना, पीछे हटना, रुकना । णिमट्टइ (सण)। वकृ.
णिअड्ढ सक [नि+ कृष] खींचना ।। [शस् ] निश्चय से (श्रा १४) । णियट्टमाण (प्राचा)।
संकृ. नियड्ढिऊणं (सम्मत्त २२७)। णिअमण न [नियमन] नियन्त्रण, संयमन
णिअण वि [नग्न] नंगा, वस्त्र-रहित (पव (विसे १२५८)। णिअट्ट सक [निर + वृत्] बनाना,
२७१)।
णिअमिय वि [नियमित] नियम में रखा रचना, निर्माण करना (प्रौप)। णिअत्त वि [निकृत्त] काटा हुअा, छिन्न
हुआ, नियन्त्रित (से ४, ३७)। णिअट्ट सक [नि+ अ ] अनुसरण करना (भग ६, ३३)।
णिअय न [दे] १ रत, मैथुन । २ शयनीय, (औप)।
णिअत्त वि [नित्य] शाश्वत, अविनश्वर; - शय्या। ३ घट, घड़ा, कलश (दे ४, ४८)। णिअट्ट पुं [निवर्त] व्यावर्तन, निवृत्ति अणि
। 'सुक्खं जमनियत्तं' (तंदु ३३; सूत्र १, १, ४ वि. शाश्वत, नित्य (दे ४, ४८ पान; यट्टगामीणं' (आचा)।
सूत्र १,८ राय)। णिअट्ट वि [निवृत्त] व्यावृत्त, पीछे हटा हुआ | णिअत्त देखो णिअट्ट = नि + वृत् । णिमत्तइ | | णिअय वि [निजक] निजका, स्वकीय, (धर्म २)।
(महा पि२८६) । वकृ.णिअत्तंत,णिअत्त- प्रात्मीय, अपना (पाम)। णिअट्टि वि [निवत्तिन] निवृत्त होनेवाला माण (गा ७६, ५३७ से ५, ६७ नाट)। णिअय वि [नियत] नियम-बद्ध, नियमानुसारी (धर्मसं ७६४)। प्रयो. रिणप्रत्तावेहि (पि २८६)।
(उवा)।
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