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णासग-णिअंबिणी.
पाइअसद्दमहण्णवो
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णासग वि [नाशक] नाश करनेवाला (सुर णाहिणाम न [दे] वितान के बीच की रस्सी ३)। २ अवश्य-भाविता (ठा ४,४ सूप १,१, २, ५८) । | (दे ४, २४)।
२) पव्वय पुं [पर्वत] पर्वत-विशेष (जीव णासण न [नाशन] १ पलायन, अपक्रमण णाहिय वि नास्तिक] १ परलोक प्रादि
३)। वाइ वि [वादिन] 'सब कुछ भवितभागना (धर्म २)। २ वि. नाश करनेवाला (से | को नहीं माननेवाला। २ पु. नास्तिक मत
व्यता के अनुसार ही हुअा करता है, प्रयल ३,२७: गण २२) । स्त्री. णी (से ३, २७) का प्रवर्तक । वाइ.वादि विवादिना वगैरह अकिश्चित्कर हैं। ऐसा माननेवाला, णासग न न्यासनापन, रखना, व्यव- नास्तिक मत का अनुयायी (सुर ६, २०; स भाग्यवादी या दैववादी (राज)। स्थापन (अणु)।
१६४), वाय पं [वाद] नास्तिक-दर्शन णिअंटिअ वि [नियन्त्रित] १ नियमित । णासणा स्त्री [नासना] विनाश (विसे ६३६) (गच्छ २) ।
२ न. प्रत्याख्यान-विशेष, हृट से या रोगी से णासव सक [नाशय] नाश करना । णाहिविच्छेअ दे] जघन, कटी के
अमुक दिन में अमुक तप करने का किया णासवइ (हे ४, ३१)। णाहीए-विच्छेअ नीच का भाग (दे ४;
हुमा नियम (पब ४)। णासविय विनाशित] नष्ट किया हुआ, २४)।
णिअंटिय वि [नियन्त्रित] १ बँधा हुआ, भगाया हुआ (उप ३५७ टी; कुमा) । णि अ [नि] इन प्रों का सूचक अव्यय-१
जकड़ा हुमा। २ न. अवश्य-कर्तव्य नियमणासा स्त्री [नासा] नाक, घ्राणेन्द्रिय (गा २२ | निश्चय (उत्त १)। २ नियतपन, नियम (ठा
विशेष (ठा १०) १०)। ३ आधिक्य, अतिशय (उत्त १; विपा पाचा कुपा)।
णिअंठ वि [निर्ग्रन्थ] १ धन रहित। २ पुं. १, ६)। ४ अधोभाग, नीचे (सण)। ५
जैनमुनि, संयत, यति (भग; ठा ३, १; णासि वि [नाशिन] विनश्वर, नष्ट होनेवाला नित्यपन । ६ संशय । ७ अादर । ८ उपरम,
५, ३) । ३ जिन भगवान (सूत्र १, ६)।(विसे १९८१)।
विराम । ६ अन्तर्भाव, समावेश । १० समी-णिअंठ पुं [निन्थ ] भगवान् बुद्ध (कुप्र णासिक देखो णासिक (णंदि १६५)।
पता, निकटता। ११ क्षेप, निन्दा । १२ ४४२) णासिक न [नासिक्य] दक्षिण भारत का एक बन्धन । १३ निषेध । १४ दान। १५ राशि, णिअंठि देखो "णिग्गंथी। पुत्त पुं [पुत्र] स्वनाम-प्रसिद्ध नगर, जो आजकल भी 'नासिक समूह। १६ मुक्ति, मोक्ष (हे २, २१७;
१ एक विद्याधर-पुत्र, जिसका दूसरा नाम नाम से प्रसिद्ध है, जहाँ शूपर्णखा की नाक २१८)। १७ अभिमुखता, संमुखता (सूत्र १,
सत्यकि था (ठा १०)। २ एक जैनमुनि, जो कटी थी; पंचवटी (उप पृ २१३, १४१ टी)।
है)। १८ अल्पता, लघुता (पएह १, ४)। भगवान् महावीर का शिष्य था (भग ५, ८)। णासिगा स्त्री [नासिका] नाक, घ्राणेन्द्रिय णि प्र[निर 1इन अर्थों का सूचक अव्यय
णिठिय वि [नैर्ग्रन्थिक] १ निर्ग्रन्थ-संबन्धी। (महा)। १ निश्चय (उत्त ६) । २ प्राधिक्य, अतिशय ।
२ जिन देव-संबन्धी ५ स्त्री.या; 'एसा प्राणा णासिय वि [नाशित] नष्ट किया हुआ (महा)। (उत्त १)। ३ प्रतिषेध, निषेध (सम १३७; रिणयंठिया' (सूम १, ६)।णासियव्व देखो णास = नश् ।
सुपा १६८)। ४ बहिर्भाव । ५ निर्गमन, | णिअंठी देखो णिग्गंथी (ठा )। णासिर वि [नशित] नष्ट होनेवाला, विनश्वर | निष्क्रमण (ठा ३, १; सुपा १३)। णिअंत वि [नियत] स्थिर (सूत्र १,८० (कुमा)।
णिअ सक [दृश ] देखना । रिणमइ (षड्; १२) । णासीकय वि [न्यासीकृत] धरोहर या हे ४,१८१)। वकृ. णित (कुमाः महा; णिअंत वि [नियत् ] बाहर निकलता • अमानत रूप से रखा हुआ (श्रा १४)। सुपा २६६) । संकृ. निएउं (भवि)।। (सम्मत्त १५६)। णासेक देखो णासिक (उप १४१)। जिअ वि [निज] आत्मीय, स्वकीय (गा णितिय वि [नियन्त्रित] संयमित, जकड़ा णाह पुं[नाथ] स्वामी, मालिक (कुमाः प्रासू १५०/ कुमाः सुपा ११)।
हुआ, बैंधा हुआ (महा; सण)। १२६६)
णिअ वि [नीत] ले जाया गया (से ५, ६ णिअंधण न [दे] वस्त्र, कपड़ा (दे ४, २८)। णाहड [नाहट] एक राजा का नाम (ती |
णिअंब पुं[नितम्ब] १ पर्वत का एक भाग, णि वि [नीच नीच, जघन्य, निकृष्ट (कम्म | पर्वत का वसति-स्थान (मोघ ४०)। २ स्त्री णाहल पुं[लाल] म्लेच्छ की एक जाति
की कमर का पीछला भाग, कमर के नीचे (हे १, २५६; कुमा)। णिअ देखो णिव (सूम २, ६, ४५)
का भाग, चूतड़ (कुमाः गउड)। ३ मूल भाग णाहि देखो णाभि (कुमाः कप्पू)। रुह पुं
| णिअइ स्त्री [निकृति माया, कपट, छल, (से ८,१०१)। ४ कटी-प्रदेश, कमर (जं ४)। [रुह] ब्रह्मा, चतुर्मुख (अच्च ३६)। धोखा (पएह १, २)।
णिअंबिणी स्त्री [नितम्बिनी] १ सुन्दर णाहिं (अप) म [नहि नहीं, नाहीं (हे ४, | णिअइ स्त्री [नियति] १ नियतपन, भवित- नितम्बवाली स्त्री। २ स्त्री, महिला (कप्पू ४१६; कुमाः भवि)
व्यता, होनी, भाग्य, नियमितता (सूत्र १.१, पान सुपा ५३८V
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