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णिअया - णिउत्त
णिअया स्त्री [नियता ] जम्बू-वृक्ष विशेष, जिससे यह जम्बूद्वीप कहलाता है (एक) । णिअर [निकर] राशि, समूह, जत्था, ढेर (गा ५६६; पान (गउड ) । अरण [दे] एड शिक्षा (४९) । अअवि [] राशि रूप से स्थित (दे ४, ३८ ) ।
जिल न [ दे ] नूपुर
या पायजेब, स्त्री का पादाभरण - विशेष (दे ४, २८ ) । frre [निगड] बेदी
विप। १, ६) । देखो णिगल ।
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णिअलाइअ वि [निगडित] सांकल से णिअलाविअ नियन्त्रित जकड़ा हुआ (गा णिअलिअ ४५४६ ५०० पास नउड से ५, ४८ ) ।
[दे. नियह] हाहादेव विशेष (ठा २,३) । अल्लवि [निज ] स्वकीय, आत्मीय (महा) । णिअस देखो णिअंस । नियसइ (सुपा ६२ ) । णिअसन देखी णिअंसण (देवा ५६६ काप्र २०१) ।
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णिअसिय वि [निवसित] परिहित, पहना हुआ (सुपा १५३)। जिअ देखो जिव (नाट मालती १२० ) । श्री [निदा]-सा] ( १०३) । निआ देखो णिजय (३) बाइ वि = (दे) । [यादिन] नित्यवादी पदार्थको निय मानवता (4) जिआइव देखो णिका (११) । जिआग [नियाग] १ नियत योग निश्चित पूजा ३ मोक्षः मुक्ति (याचा १, १, २ ) । ४ न. आमन्त्रण देकर जो भिक्षा दी जाय वह (दस ३) । णिआग देखो णाय = न्याय ( श्राचा) । णिआण न [निदान ] १ आरम्भ, सावद्य व्यापार (सूत्र १,१०,१) । २ रोग- कारण, रोग की पहचान (पिंड ४५९ ) । आिण न [ निदान ] १ कारण, हेतुः 'अहो अप्पं नियाणं महंतो विवान' ( स ३९० पान छाया १, १३) । २ किसी व्रतानुष्ठान की फल प्राप्ति का अभिलाष
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पाइअसहमणव
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संकल्प - विशेष (श्रा ३३ ठा १० ) । ३ मूल कारण (भाषा)। कड वि [] जिसने अपने शुभानुष्ठान के फल का अभिलाष किया हो वह (सम १५३) कारि विणिज तक [नि युज् ] जोड़ना, संयुक्त [कारिन्] वही अनन्तर उक्त श्रर्थं (ठा ६) । णिआण न [निपान] कूप या तालाब के पा पशुओं के जल पीने के लिए बनाया हुआ जलकुण्ड, ग्राहाय, हौदी, चरी
करना, किसी कार्य में लगाना । कर्म. पिउंजीअसि ( पि ५४६ ) । वकृ. णिडंजमाण (सूम १.१०) सं. निजिऊण, निरंजिय ( स १०४ महा)। कृ. णिउंजियच्य १० कुमा
णिउंज पु [निकुञ्ज ] १ गहन, लता प्रादि से निविड़ स्थान (कुमा २१७ २ (१२३) । णिरंभ ' [निशुम्भ ] कुम्भका एक पुत्र (से १२.६२) । णिउंभिला स्त्री [निकुम्भिला ] यज्ञ-स्थान ( से १५, ३६) ।
पग्गं पइसहं पइनिया' (उप ७२८ टी) । णिआणि स्त्री [ दे ] खराब तृणों का उन्मूलन (दे ४, ३५)
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णिआम देखो णिअम = नियमय् । संकृ. उबग्गा णिजनिता ग्रामोलाए परिवए णिआम देखो सिम (१.१००) । ( १.३, २) । णिआमगवि [नियामक ] नियम-कर्ता, णिश्रमय नियन्ता (सुपा ३१९) २ निश्चायक, विनिगमक ( विसे ३४७०, स १७० ) । णिआमिअवि [नियमित ] नियम में रखा हुधा, नियन्त्रित (स २६३ ) । जिआव [नियाग] प्रशस्त धर्म (सुध १ १, २, २०) ।
आर सक [काणेक्षित कृ] कानी नजर से देखना । मिाइ (हे ४, ६६) । मिरिज वि] [ क्षितीकृत]
नजर से देखा हुआ, श्राधी नजर से देखा हुग्रा । २ न. श्राधी नजर से निरीक्षण (कुमा) ।
हि [निदाघ ] १ ग्रीष्म काल, ग्रीष्म ऋतु । २ उष्ण, धर्म, गरमी (गउड) । जिअ [क] निश्य का निए पिंडे दिज्जई' ( श्राचा २, १, १, १ ) । जिग [दे. निश्य, नैत्यिक] निव्या णिइय शाश्वतं श्रविनश्वर (परह २,४
पत्र १४१ सून १ १ ४२ ४ दि श्राचा, सम १३२ ) ।
विवि [निष्कृप] निर्दय कठोर (प्राह २६) णिउअ वि [निवृत ] परिवेष्ठित, परीक्षित ( हे १, १३१) ।
णिउअ वि [नियुत ] सुसंगत; सुविष्ट (गाया १, १८ ) ।
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णिउंचिअ वि [निकुचित] संकुचित, सकुचा हुआ थोड़ा मुड़ा हुधा या २६३ से ६. १६३ पात्रः स ३३५) ।
णिउक्क वि [दे] तूष्णीक, मौन रहनेवाला (दे ४, २७ पात्र) ।
किण [दे] १ वायस काक, कौया। २ वि. मूक, वाक् शक्ति से हीन (दे ४, ५१) । णिउज्जन [न्युब्ज ] आसन-विशेष (दि
१२८ टी) ।
णिउज्जम वि [निरुद्यम ] उद्यम रहित, आलसी (सू २, २) |
णिउड क [ मस्जू, नि + ब्रुड् ] मज्जन करना, डूबना । रिउड्डुइ (हे १, १०१ ) । a. णिउडुमाण (कुमा) ।
णिउड्ड वि [मग्न, निब्रुडित ] हबा हुआ, निम (१० १५ १५.७४) । णिउणवि [निपुण] १ दक्ष, चतुर, कुशल (पान स्वप्न ५३ प्रासू ११ जी ६) । २ सूक्ष्म, जो सूक्ष्म बुद्धि से जाना जा सके (जो २ राय ) । ३ क्रिवि. दक्षता से, चतुराई से, कुशलता से जीव ३) ।
उणवि [निपुण] १ नियत गुणवाला । २ निश्चित गुण से युक्त (राज)। ३ सुनिश्चित, नित (पंचा ४) । डिणिय वि [नैपुणिक] निपुण, दक्ष, चतुर
(हा ९) ।
णिउत्त वि [नियुक्त ] १ व्यापारित, कार्य में लगाया हुआ (पंचा ८) । २ निबद्ध (विसे TEC) I
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