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पाइअसहमहण्णवो
जिव-जीविओसविय
जिव देखो जीवः 'मायाइ अहं भरिणमो कायव्वा | जीरण न [जीर्ण] १ अन्न पाक । २ वि. जीव न [जीव] सात दिन का लगातार
वच्छ जिवदया तुमए' (धर्मवि ५)। पुराना, पचा हुमाः 'अजीरणं' (पिड २७)। उपवास ( संबोध ५८), 'विसि? न जिव (अप) देखो जिध (कुमाः षड्; हे।
जीरय न [जीरक] जीरा, मसाला-विशेष |
| [विशिष्ट] वही अर्थ (संबोध ५८) । जिह। ४, ३३७)
(सुर १, २२)।
जीवंजीव ' [जीवजीव १ जीव-बल, आत्मजिहा देखो जीहा (षड्)।.
पराक्रम (भग २, १)। २ चकोर-पक्षी, जीअ देखो जीय = जीव् । जीआइ (गा १२४,
जीरव सक [जीरय ] पचाना। जीरवइ | चकवा (राज)।हे १,१०१) । वकृ. जीअंत (से ३, १२; (कुप्र २६६)।
जीवंत देखो जीव = जीव् । मुक्त पुं[°मुक्त] गा ८१६)।
जीव अक [ जीव ] १ जीना, प्राण धारण जीवन्मुक्त, जीवन-दशा में ही संसार-बन्धन से जीअ देखो जीव = जीव (गउड) । ५ पानी, | करना। २ सक. आश्रय करना । जीवइ । मुक्त महात्मा (अच्चु ४७)। जल (से २, ७)।
(कुमा)। वकृ. जीवंत, जीवमाण (विपा जीवग पु [जीवक] १ पक्षि-विशेष (उप
१,५ उप ७२८ टी)। हेकृ. जीविउं (प्राचा)। ५८०)। २ नृप-विशेष (तित्थ)। जीअ देखो जीविअ (हे १, २७१; प्राप्रः सुर |
संकृ. जीविअ (नाट)। कृ. जीविअव्व, जीवजीवग पु[जीवजीवक चकोर पक्षी, २, २३०)। जीवणिज (सूत्र १,७) । प्रयो. जीवावेहि
चकवा (पएह १, १-पत्र ८) । जीअ न [जीत] १ आचार, रिवाज, प्रथा, रूढ़ि (पि ५.२)।
जीवण न [जीवन] १ जीना, जिन्दगी (विसे (प्रौपः राय, सुपा ४३)। २ प्रायश्चित से
३५२१; पउम ८, २५०) । २ जीविका, सम्बन्ध रखनेवाला एक तरह का रिवाज, जीव पुन [जीव] १ आत्मा, चेतन, प्राणी
प्राजीविका (स २२७; ३१०)। ३ वि. जैन सूत्रों में उक्त रीति से भिन्न तरह के (ठा १, १ जी१, सुपा २३५); 'जीवाई'
जिलानेवाला (राज)। वित्ति स्त्री ["वृत्ति प्रायश्चितों का परम्परागत प्राचार (ठा ५,
(पि ३६७)। २ जीवन, प्राण-धारण;
| आजीविका (उप २६४ टी)। २)। ३ प्राचार-विशेष का प्रतिपादक ग्रन्थ 'जीवोत्ति जीवणं पाणधारणं जीवियंति
| जीवमजीव पुं[जीवाजीव चेतन और जड़ (ठा ५, २; वव १)। ४ मर्यादा, स्थिति, पज्जाया' (विसे ३५०८ सम १)। ३ पुं.
| पदार्थ (अाघम)। व्यवस्था (रणंदि) कप्प पुं [कल्प] १ बृहस्पति, सूर-गुरु (सुपा १०८)। ४ बल,
| जोवम्मुत्त देखो जीवंत-मुक्क (उवर १६१)। परम्परा से प्रागत प्राचार । २ परम्परागत पराक्रम (भग २,१)। ५ देखो जीअ =
जा जीवयमई स्त्री [दे] मृगों के आकर्षण के प्राचार का प्रतिपादक ग्रन्थ (पंचा जीत)। जीव । काय j [काय] जीव-राशि, साधन-भत व्याध-मगी (दे ३.४६)।कप्पिय वि [कल्पिक] जीत कल्पवाला जीव-समूह (सूत्र १, ११) 'ग्गाह न
जीवा स्त्री [जीवा] १ धनुष की डोरी (स (ठा १०) धर वि [धर] १ आचार- [ग्राह] जिन्दे को पकड़ना (णाया १, २)।
__३८४) । २ जीवन, जीना (विसे ३५२१) । विशेष का जानकार । २ स्वनाम-ख्यात एक "णिकाय पुं [निकाय] जीव-राशि (ठा |
३ क्षेत्र का विभाग-विशेष (सम १०४)। जैनाचार्य (णंदि)।ववहार [व्यवहार] ६)1 स्थिकाय पुस्तिकाय जीवपरम्परा के अनुसार व्यवहार (धर्म २
|ज वाउ पुं [जीवातु] जिलानेवाला औषध, समूह, जीव-राशि (भग १३,४; अणु)। दय
जीवनौषध (कुमा)। पंचा १६) वि [दय] जीवित देनेवाला (सम १)।
जीवाविय वि [जीवित] जिलाया हुआ (उप जीअण देखो जीवण (नाट-चैत २५८)। दया स्त्री [°दया] प्राणि-दया, दुःखी जीव
७६८ टी)। का दुःख से रक्षण (महानि २४ । देव पुं जीअव वि [जीवितवत् ] जीवितवाला.
["देव] स्वनाम-ख्यात प्रसिद्ध जैन आचार्य
जीवि वि [जीविन] जीनेवाला (गा ८४७)। श्रेष्ठ जीवनवाला ( १)
और ग्रंथकार ( सुपा १)। पएस पुं
जीविअ वि [जीवित] १ जो जिन्दा हो । जीआ स्त्री [ज्या की डोर (कुमा)।
[प्रदेशजीव] अन्तिम प्रदेश में ही जीव की २ न. जीवित, जीवन, जिन्दगी (हे १, २७१; २ पृथिवी, भूमि । ३ माता, जननी (हे २,
स्थिति को माननेवाला एक जैनाभास दाशं- प्राप्र)। 'नाह पुं[नाथ] प्राण-पति ११५, षड्) निक (राज)। पएसिय पुं[प्रादेशिक]
(सुपा ३१५)। "रिसिका स्त्री ["रिसिका] जीण न दे. अजिन] जीन, अश्व की पीठ
देखो पूर्वोक्त अर्थ (ठा ७)। लोग, लोय
वनस्पति-विशेष (पएण १-पत्र ३६)।पर बिछाया जाता चर्ममय आसन (पव ८४)। पुं [ लोक] १ जीव-जाति, प्राणि-लोक, जीविआ स्त्री [जीविका] १ आजीविका, जीमृअ पुं [जीमूत] १ मेघ, वर्षा (पान जीव-समूह (महा)। विजय न [विचय निर्वाह-साधक वृत्ति (ठा ४, २; स २१८; गउड)। २ मेघ-विशेष, जिसके बरसने से जीव के स्वरूप का चिन्तन (राज) विभत्ति णाया १, १)। जमीन दश वर्ष तक चिकनी रहती है स्त्री [°विभक्ति] जीव का भेद (उत्त ३६)। जीविओसविय वि [जीवितोत्सविक] (ठा ४, ४)।
'बुढिय न [वृद्धिक] अनुज्ञा, संमति, जीवन में उत्सव के तुल्य, जीवनोत्सव के जीर देखो जर =ज। अनुमति (एंदि)।
समान (भग ६, ३३, राय)।
(महानि २
जीवित] १
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