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टच्चक-टोलंब पाइअसहमहण्णवो
३६६ टश्चक पुं [दे] लकड़ी आदि के आघात की | टिंबरुणी स्त्री [दे] ऊपर देखो (पि २१८)-टुंबय पुं [दे] आघात-विशेष, गुजराती में आवाज (कुप्र ३०६)।
टिक्क न [दे] १ टीका, तिलक । २ सिर का 'बो' (सुर १२, ६७)।टइआ स्त्री[दे] जवनिका, परदा (दे४,१) स्तबक, मस्तक पर रक्खा जाता गुच्छा (दे | टुट्ट अकटू टूटना, कट जाना। छुट्टइ टप्पर वि [दे] विकराल कर्णवाला, भयंकर | ४, ३)।।
(पिंग)। वकृ. टुटुंत (स ६, ६३)। कानवाला (दे ४, २; सुपा ५२० कप्पू)। टिक्किद (शौ) वि [दे] तिलक विभूषित । टुप्परग न [दे] जैन साधु का एक छोटा पात्र टमर पुं[दे] केश-चय, बाल-समूह (दे ४,१)ल (कप्यू) ।
(कुलक ११)। टयर देखो टगर (कुमा) टिग्घर वि [दे] स्थविर, वृद्ध, बूढा (दे।
टूवर पुं [तूवर] १ जिसको दाढ़ी-मूछ न टलटल प्रक [टलटलाय ] 'टल-टल' पावाज | ४, ३)।
उगी हो ऐसा चपरासो। २ जिसने दाढ़ी-मूंछ करना । वकृ. टलटलंत (प्रासू १६३)।
कटवा दी हो ऐसा प्रतिहार (हे १, २०१६ | टिट्टिभ पुं [टिट्टिभ १ पक्षि-विशेष, टिटि
कुमा)। टलटलिय वि [टलटलित] 'टल-टल' प्रावाज
। हरी, टिटिहा । २ जल-जन्तु विशेष (सुर १०, टेंट दे]१ मध्य-स्थित मरिण-विशेष । वाला (उप ६४८ टो)। १८५) । स्त्री. भी (विपा १, ३)
वि. भीषण (कप्पू)। टलवल प्रक[दे] १ तड़फड़ाना, तड़पना ।
टिट्रियाव सक [दे] बोलने की प्रेरणा करना, टेंटा स्त्रीदा जुमाखाना, जुमा खेलने का २ घबराना, हैरान होना । टलवलंति (धर्मवि
"टि-टि आवाज करने को सिखलाना। अड्डा (दे ४, ३)।३८) । वकृ. टलवलंत (सरि ६०८)।
टिट्टियावेइ (णाया १, ३) । कवकृ. टिट्टिया- टेंटा स्त्री दे] १ अक्षि-गोलक । २ छाती का टलिअ वि [दे] टला हुआ, हटा हुआ (सिरि
वेजमाण (णाया १, ३–पव ६४)। शुष्क व्रण (कप्पू)। ६८३)।
टिप्पणय न [टिप्पनक] विवरण, छोटी ठेंबरूय न [दे] फल-विशेष (माचा २, १, टसर न [दे] विमोटन, मोड़ना (दे ४, १)
टीका (सुपा ३२४)। टसर [वसर] टसर, एक प्रकार का सूता |
टिप्पी स्त्री [दे] तिलक, टीका (दे ४, ३)। (हे १, २०५६ कुमा) ।
टेकर न [दे] स्थल, प्रदेश (दे ४,३)।
टोकण नादादारू नापने का बरतन टसरोट्ट न [दे] शेखर, अवतंस (दे ४, १)। टिरिटिल्ल सक [भ्रम् ] घूमना, फिरना,
टोकणखंड (दे ४, ४)। टहरिय वि [दे] ऊँचा किया हुआ, 'टहरिय- चलना । टिरिटिल्लइ (हे ४, १६१)। वकृ. टोपिआ स्त्री [दे] टोपी, सिर पर रखने का कन्नो जामो मिगुव्व गीइं कह सोउं (धर्मवि | टिरिटिल्लंत (कुमा)।
सिला हुआ एक प्रकार का वस्त्र (सुपा २६३)। १४७; सम्मत्त १५८)।
टिल्लिक्किय वि [दे] विभूषित (धर्मवि ५१) टोप्प [दे] श्रेष्ठि-विशेष (स ४५१)।. टार पुंदे] अधम, अश्व, हठी घोड़ा (दे टिविडिक्क सक [मण्डय] मण्डित करना,
टोप्पर पुन [दे] शिरस्त्राण-विशेष, टोपी ४, २); 'प्रइसिक्खिनोवि न मुमइ, प्रणयं
(पिंग)। विभूषित करना । टिविडिक्कइ (हे ४, ११५; टारम्ब टारत्त' (श्रा २७)। २ टट्टू, छोटा |
टोल पुं[दे] १ शलभ, जन्तु-विशेष । २ कुमा)। वकृ. टिविडिकंत (सुपा २८)।घोड़ा (उप १५५) ।
पिशाच (दे ४, ४, प्रासू १६२) गइ स्त्री टिविडिकिअ वि [ मण्डित] विभूषित, टाल न [दे] कोमल फल, गुठली उत्पन्न होने |
[गति गुरु-वन्दन का एक दोष (पव २) अलंकृत (पास)। के पहले की अवस्था वाला फल (दस ७)
गइ स्त्री [कृति प्रशस्त प्राकारवाला टेंट वि[दे] छिन्न-हस्त, जिसका हाथ कटा टिंट। [दे] देखो टेंटा (भवि) । साला
(राज) टिंटा) स्त्री [शाला] जुमाखाना, जुमा
हुमा हो वह (दे ४, ३, प्रासू १४२; १४३)M टोल [दे] १ टिड्डी, टिडी (पब २)। २ खेलने का अड्डा (सुपा ४६५)।
टुंटुण्ण अक [टुण्टुणाय ] 'टुन टुन आवाज | यूथ (कुप्र५८)। टिंबरु नदे] वृक्ष-विशेष, तेंदू का पेड़ करना। वकृ.टुंटुण्णंत (गा ९८५; कार टोलंब [दे] मधूक, वृक्ष-विशेष, महमा टिंबरुअ)(दे ४, ३, उप १०३१ टी; पाम)ल ६६५)
का पेड़ (दे ४, ४)।
॥ इन सिरिपाइअसहमहण्णवम्मि टयाराइसहसंकलणो
अट्ठारहमो तरंगो समत्तो॥
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