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ठाणग-डंडारण पाइअसहमहण्णवो
३७१ ठाणग न [स्थानक शरीर की चेष्टा-विशेष ठावणया। देखो ठवणा (उप ६८६ टी; ठा| ठिय वि [स्थित १ अवस्थित (ठा २, ४)। (पंचा १८, १५)। ठावणा १ बृह ५)।
२ व्यवस्थित, नियमित (सूम १, ६)। ३ ठाणि वि [ स्थानिन् ] स्थानवाला, स्थान- ठावय [स्थापक] स्थापन करनेवाला (णाया | खड़ा (भग ६, ३३)। ४ निषएण, बैठा हुआ युक्त (सूम १, २, उव)। १, १८ सुपा २३४)।
(निचू १; प्राप्र कुमा)। ठाणिज देखो ठा।
ठावर वि [स्थावर रहनेवाला, स्थायी (मच्तु | ठिर देखो थिर (अच्तु १; गा १३१ प्र)। ठाणिज विदे] १ गौरवित, सम्मानित (दे |
ठिविअ न [दे] १ ऊर्ध्व, ऊँचा । २ निकट, ४, ५)। २ न. गौरव (षड्) iv
ठाविअ वि [स्थापित स्थापित, रखा हुआ समीप । ३ हिक्का, हिचकी (दे ४, ६)। ठाणुकडिय । वि [स्थानोत्कटुक १ उत्क
(ठा ३, १; श्रा १२ महा)।
ठिव्व सक [वि + घुट ] मोड़ना। संकृ. ठाणक्कडयटक प्रासनवाला पिण्ह २, | ठावित्त वि [स्थापयितु] ऊपर देखो (ठा | ठिव्विऊण (सुपा १६) । १, भग)। २ न. प्रासन-विशेष (इक)।
ठोण वि [स्त्यान] १ जमा हुआ (घृत मादि) ठाणु देखो खाणु। खंड न [°खण्ड] १ ठिअअ न [दे] ऊध्वं, ऊँचा (दे ४, ६)। । (कुमा)। २ ध्वनि-कारक, मावाज करनेस्थाणु का अवयव । २ वि. स्थाणु की तरह ठिइनी [स्थिति] १ व्यवस्था, क्रम, मर्यादा, | वाला । ३ न. जमाव । ४ भालस्य । ५ प्रतिऊँचा और स्थिर रहा हुमा, स्तम्भित शरीर- नियमः 'जयठिई एसा'(ठा ४.१७ उप ७२८ ध्वनि (हे १,७४, २, ३३)। वाला (णाया १,१-पत्र ६६)।
टी)। २ स्थान, अवस्थान (सम २)। ३ । ठेठ पुन [दे] ढूंठा, हूँठ, स्थाणु (जं १)। ठाम (अप)। देखो ठाण (पिंग; सण)।
अवस्था, दशा (जो ४८)। ४ प्रायु, उम्र, तुक सक [हा] त्याग करना। ठुक्का (प्राकृ
काल-मर्यादा (भग १४, ५, नव ३१; पएण ठाय पुं [स्थाय] स्थान, आश्रय (सुख २, ४० प्रीप)। क्खय पुक्षय! आयु का ठेर पुंस्त्री [स्थविर] वृद्ध, बूढ़ा (गा ८८३ क्षय, मरण (विपा २, १)1 °पडिया देखो
प्र, पि १६६); ठाव सक [स्थापय ] स्थापन करना, रखना। वडिया (कप्प)। बंध पु [बन्ध]
'पउरजुवाणो गामो, महुमासो ठावइ, ठावेइ (पि ५५३; कप्पा महा)। वकृ. कर्म-बन्ध की काल-मर्यादा (कम्म ४, ८२)।
जोपणं पई ठेरो। ठावंत, ठावित (चउ २० सुपा ८८)। संकृ. वडिया स्त्री [ पतिता] पुत्र-जन्म-सम्बन्धी
जुएणसुरा साहीणा, असई ठावइत्ता,ठावेत्ता (कसः महा) कृ. ठाएयव्व उत्सव-विशेष (णाया १,१)।
. मा होउ किं मरउ ? (सुपा ५४५)।
ठिक्क न [दे] पुरुष-चिह्न (दे ४, ५)। (गा १९७) । स्त्री. री (गा ६५४ प्र)।ठावण न [स्थापन] स्थापन, धारण (पंचा ठिकरिआ स्त्री [दे] ठिकरी, घड़ा का टुकड़ा | ठोड पुं[दे] १ जोतिषी, दैवज्ञ । २ पुरोहित । (श्रा १४)।.
। (सुपा ५५२)।
॥ इस सिरिपाइअसहमहण्णवम्मि ठयाराइसहसंकलणो
एगणवीसइमो तरंगो समत्तो।।
ड पुंड] मूद्ध-स्थानीय व्यजन वर्ण-विशेष | वृश्चिक आदि डसा हो, 'जह सबसरीरगयं डंड न [दे] वन के सीए हुए टुकड़े (दे (प्रामाः प्राप)।
विसं निरुभित्तु डंकमारिणति' (सुपा ६०६)। ४,७)। डओयर न [दकोदर] पेट का रोग-विशेष, | डंकिय देखो डक = दष्ट (वै ८९)।
डंडगा स्त्री [दण्डका] दक्षिण देश का एक जलोदर (निचू १)। डंगा स्त्री [दे] डाँग, लाठी, यष्टि (सुपा २३८;
प्रसिद्ध प्ररण्य-जंगल (सुख)। डंक [दे] १ डंक, वृश्चिक (बिच्छू) मादि का | ३८८ ५४६)
डंडय ' [दे] रथ्या, महल्ला (दे ४, ८)। काँटा (पएह १,१)। २ देश-स्थान, जहाँ पर | डंड देखो दंड (हे १, १२५; प्राप्र)। | डंडारण्ण न [दण्डारण्य] दक्षिण का एक
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