________________
३६८ पाइअसहमहण्णवो
भूसणा-टगर झूसमाण (प्राचा) । संकृ. भूसित्ता, | झोंडलिआ स्त्री [दे] रास के समान एक झोसमाण, झोसेमाण (सुपा २६ प्राचा)। भूसित्ताणं, भूसेत्ता (औपः पि ५८३; प्रकार की क्रीड़ा (दे ३, ६०)
संकृ. 'संलेहणाए सम्म झोसित्ता निययदेहं . अंत २७)
मोड सक [शाटय ] पेड़ आदि से पत्र तु' (सुर ६, २४६) । झूसणा स्त्री [जोषणा] सेवा, आराधना (उवाः
वगैरह को गिराना । झोडइ (पि ३२६)। मोस सक [गवेषय] खोजना, अन्वेषण अंत; प्रौपः णाया १,१)।
झोड न [दे] १ पेड़ आदि से पत्र आदि का करना । झोसेहि (बृह ३)।
गिराना। २ जीर्ण वृक्ष (णाया १, ११.- झोस सक [झोषय ] डालना, प्रक्षेप करना । भूसरिअ वि [दे] १ प्रत्यर्थ, अत्यन्त । २
कृ झोसेयव्व (वव १)। स्वच्छ, निर्मल (दे ३, ६२)।
पत्र १७१)।
झोडण न [शाटन] पातन, गिराना (पण्ह १, झोस [झोष] राशि-विशेष, जिसके डालने भूसिय वि [जुष्ट] १ सेवित, आराधित १-पत्र २३)।
से समान भागाकार हो वह राशि (वव १)। (णाया १, १; प्रौप) । २ क्षपित, क्षिप्त
झोडप्प पुं[दे] १ चना, अन्न-विशेष । २ | झोस पुं[दे] झाड़ना, दूर करना (ठा ५,२)। परित्यक्त (उवाः ठा २, २)। सूखे चने का शाक (दे ३, ५६)।
भोसण न दे] गवेषण, मार्गरण; 'प्राभोगणं भेंडुअ पुं [दे] कन्दुक, गेंद (दे ३, ५६) । | झोडिअपुं[दे] व्याध, शिकारी, बहेलिया ति वा मग्गणं ति वा झोसणं ति वा एगटुं' भेय देखो मा ।
(वय २)। मेर पुंदे] पुराना घण्टा (दे ३, ५६) भोलिआ) स्त्री [दे. झोलिका झोली, झोसणा देखो झूसणा (सम ११६; भग)। झोटिंग [दे] देव-विशेष (कुप्र ४७२) । झोल्लिआ थैली, कोथली (दे ३, ५६; सूत्र झोसणा स्त्री [जोषणा] अन्त समय की भोट्टी स्त्री [दे] अर्ध-महिषी, भैंस की एक २, ४)।।
आराधना, संलेखना (श्रावक ३७८)। जाति (दे ३, ५६)
| झोस देखो झूस। झोसेइ (माचा)। वकृ. झोसिअ देखो झूसिय (प्राचा: हे ४, २५८).
॥ इन सिरिपाइअसद्दमहण्णवम्मि झयाराइसहसंकलणो
सत्तरहमो तरंगो समत्तो॥
ट पुं [2] मूर्द्ध-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण-विशेष । भित्ति, भीत। ५ तट, किनारा (दे ४, ४)। | टंकिया स्त्री [टङ्किका] पत्थर काटने का प्रस्त्र, (प्रामाः प्राप)।
६ खनित्र, कुदाल (दे ४, ४० से ५, ३५)। टॉकी (सम्मत्त २२७)। टउया स्त्री [दे] आह्वान-शब्द, पुकारने की ७ वि. छिन्न, छेदा हुआ, काटा हुमा (दे टंबरय वि [दे] भारवाला, गुरू, भारी (दे आवाजः गुजराती में 'टौको' (कुप्र ३०६)। ४, ४)।
४, २)। टंक पु[टङ्क] चित्र-विशेष, सिका पर का टंकण पुं [टङ्कन] म्लेच्छ की एक जाति,
टक्क [टक] देश-विशेष (हे १, १६५)।' चित्र (पंचा ३, ३५)। (विसे १४४४)।"
टक्क वि [टक्क] १ टक्क देशीय । २ पुं. भाट टंक पुंटङ्क] १ तलवार आदि का अग्र भाग
__ की एक जाति (कुप्र १२) । (पराह १,१-पत्र १८)। २ एक प्रकार टंकवत्थुल [दे] कन्द-विशेष, एक जाति
टक्कर पुंदे] ठोकर, अंग से अंग का प्राघात का सिक्का (श्रा १२, सुपा ५१३)। को तरकारी (श्रा २०) ।।
(सुर १२, ६७ वव १) ३ एक दिशा में छिन्न पर्वत (णाया १,१-टंका स्त्री दे] १ जंघा, जांघ (पास)। २ टकरा श्रीदे] टकोर, मुंड-सिर में उंगली पत्र ६३)। ४ पत्थर काटने का प्रन, टॉकी. स्वनाम-ख्यात एक तीर्थ (ती ४३)।
का प्राघात (वव १ टी)। छेनी (से ५, ३५; उप पृ ३१५)। ५ टकार पुंटङ्कार धनुष का शब्द (भवि) । टक्कारा स्त्री [दे] अरणि-वृक्ष का फूल ( दे परिमाण-विशेष, चार मासे की तौल (पिंग)। टंकार पुं[दे] प्रोजस् , तेज (गउड)।
४,२) ६ पक्षि-विशेष (जीव १)
टंकिअ विदे] प्रसृत, फैला हुमा (दे ४,१) टगर पुतिगर] १ वृक्ष-विशेष, तगर का टंक [दे] १ तलवार, खड्ग । २ खात, टंकिम वि [टङ्कित] टाँकी से काटा हुआ वृक्ष। २ सुगन्धित काष्ठ-विशेष (हे १. खुदा हुमा जलाशय । ३ जङ्घा, जाँध । ४ । (दे ४,५०) ।
२०५; कुमा) 10
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org